shishu-mandir

लोहे का हल बचा रहा है बांज के पेड़ो को

उत्तरा न्यूज डेस्क
3 Min Read

वी एल स्याही हल यात्रा  लेख हमें पर्यावरण के क्षेत्र  में कार्य कार रहे गजेन्द्र कुमार पाठक ने भेजा है , इसमें काट-छांट ना करते हुए हम लेख को हुबहू प्रकाशित कर रहे है ।

new-modern
gyan-vigyan

उत्तराखण्ड राज्य जैव विविधता बोर्ड के सचिव एस एस रसायली जी की पहल पर इंडो जर्मन बायो डायवर्सिटी के अनिल जोशी जी का फोन आया कि अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर देहरादून में नवधानया संस्था द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसमें वी एल स्याही हल का भी प्रदर्शन होना है ।मिस्त्री रमेश भाई से अनुरोध किया कि हल के बीम को पोर्टेबल बना दो ताकि ले जाने में आसानी हो ।

saraswati-bal-vidya-niketan

कुशल कारीगर रमेश भाई नें बङी ही खूबसूरती से हल के लगभग 8 फीट लंबे लठयूङे को आधा कर पोर्टेबल बना दिया ।कार्यालय से अवकाश लेकर छोटे भाई रमेश भंडारी के साथ देहरादून कार्यक्रम में भागीदारी की ।उत्तरकाशी के पुरोला निवासी सुरेश कुमार, जो एक स्टाल का संचालन कर रहे थे ,नें हल देखा तो खुश हो गये और खुद ही बताने लगे कि किस तरह हल ,नहेङ के लिए उनके इलाके में लोग बांज के पेङो को काटने को विवश हैं और किस तरह हर साल सैकड़ों पेङो को काटने से पानी ,जैव विविधता पर बुरा असर पङ रहा है । सुरेश कुमार जी  द्वारा हल खरीदने की इच्छा भी जताई गयी ।

  नवधानया के निदेशक डा प्रकाश भट्ट जी भी हल से खुश हुए और हल खरीद कर संस्था में ही रखवा दिया । वनों के अनियंत्रित व अवैज्ञानिक दोहन तथा जंगलों की आग के कारण राज्य की बहुमूल्य जैव विविधता के संरक्षण में वी एल स्याही हल बङा योगदान दे सकता है इस समय लगभग 4,000 किसानों द्वारा इस हल का प्रयोग करने से प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में बांज आदि पेङो को कटने से बचाया जा रहा है।चिपको आंदोलन से जुड़े चंडी प्रसाद भट्ट जी इस हल को परंपरागत लकड़ी के हल के विकल्प के रूप में बढावा दे रहे हैं और उनकी संस्था द्वारा लाखों रूपये की कीमत के लगभग 500 हल निशुल्क ग्रामीणों में बांटे गये हैं

उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र ,देहरादून नें भी जंगलो,जैवविविधता को बचाने में इस हल की उपयोगिता को देखते हुए मदद के लिए हाथ बढ़ाये हैं ।
यदि सभी जिम्मेदार लोग इस हल के प्रचार प्रसार में मदद करें ,राज्य के हर जरूरत मंद किसान तक यह हल पहुंचाया जा सके तो हम हर साल लाखों पेङो को कटने से बचा सकते हैं और सूख रहे जल स्रोतों ,नष्‍ट हो रही जैवविविधता को नया जीवन मिल सकता है ।