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सिमटती जा रही अब घरों की देहली पर ऐपण बनाने की कला

Newsdesk Uttranews
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बदलते जमाने के साथ अब आ रहे रेडीमेड ऐपण

ललित मोहन गहतोड़ी

 चावल पीसकर उसके घोल से बनाये ऐंपण से इतर रेडीमेड प्लास्टिक कोटेड प्रिंटेड और पेंट से बने ऐंपण का बढ़ता प्रचलन देखकर गांव घरों में अलसुबह मां बहनों के द्वारा देहली लिपाई करते हुए ऐंपण डालने की बातें अब यादें ही बनकर रह गई है।
नवरात्र, दीपावली सहित अनेक तीज त्योहारों में अभी हाल ही के एक दो दशक पहले तक लोग दरवाजे घरों और चारदीवारी में चावल पीस कर ऐंपण डाल उत्सव का स्वागत किया करते थे। लेकिन अब इन पारंपरिक हस्त कलात्मक ऐंपणों की जगह रेडिमेड पेपर कोटेड और पेंट से तैयार किए जा रहे ऐंपणों ने ले ली है।
इन दिनों गांव गांव में त्योहारों की धूम मची हुई है। इन त्योहारों के मद्देनजर दीपावली से पहले से ही रेडीमेड प्रिंटेड ऐंपणों से बाजार पटने लगे हैं। बाजार की बात तो दूर अब काली कुमाऊं के दूर दराज के इलाकों में इन प्रिंटेड ऐंपणों का चलन शुरू हो गया है । बाजार में १० रूपए से लेकर अलग अलग रेटों में प्रति पत्ते के हिसाब से बिक्री हो रहे रेडीमेड ऐंपणों में लक्ष्मी खोज, रंगोली, ऐंपण कलेंडर आदि बिक्री किये जाते हैं। हाल के वर्षों में समय की कमी और पहल के चलते तो इन रेडीमेड ऐंपणों का चलन और ज्यादा बढ़ गया है। इन प्रिंटेड ऐंपणों के प्रचलन में आने से महिलाओं के बीच अब यह कला महज यादों में सिमटकर रह गई है।

सिलबट्टे में पीसकर बनता है ऐंपण पेस्ट

चावल को कुछ देर भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद इसे सिलबट्टे या मिक्सी में डालकर खूब बारीक पीसा जाता है। एक कपड़े से छान कर तैयार पेस्ट से विभिन्न प्रकार के ऐंपण बनाये जाते हैैं। ऐंपण बनाने की यह विधा धीरे-धीरे वक्त के अनुसार बदलती जीवनशैली का हिस्सा बनती जा रही है। ऐंपण की यह पारंपरिक विधा अब महज परंपरा के निर्वाह तक सीमित होकर रह गई है।

परंपरा के साथ ही लोगों के मनोरंजन का साधन भी है ऐंपण कला

ऐंपण डालना परंपरा निर्वहन के साथ ही कलात्मक है। घर की दहलीज पर ऐंपण डालते हुए एक से बढ़कर एक कालाओं को दिखाने का मौका महिलाओं की सामुहिकता को दर्शाता है। अलग अलग कलाओं में माहिर महिलाएं जब रंगोली बनाने में एकजुट हो जातीं तो तो वहां पर उनकी इस हस्तकला ऐंपण को देखने वाले कद्रदानों का तांता लग जाता है।