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विश्व पर्वत दिवस-हिमालयी संवेदनशीलता पर सघन अनुसंधान की जरूरत जताई

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World Mountain Day – expressed the need for condensation research on Himalayan sensitivity

अल्मोड़ा,11 दिसंबर 2021- हिमालय की संवेदनशीलता और महत्व को ध्यान में रखते हुए हमें हिमालय में सतत् पर्यटन की दिशा में नीतिगत उपाय और मॉडलों को खड़े होंगे।

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यह बात पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अपर सविव बीवी उमादेवी ने यहां अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2011 के अवसर उद्घाटन संबोधन के दौरान कही।

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उन्होंने हिमालय के योगदान के साथ यहां की चुनौतियों पर प्रकाश डाला और कहा मिशन के तहत इस क्षेत्र में संचालित 14 अनुसंधान परियोजनाओं के अनुसंधान प्रारूप अनुसरणीय होंगे।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर यहां गोविंद बल्लभ राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में ‘सतत् पर्वतीय पर्यटन विषय पर’ राष्ट्रीय विचार गोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक ई0 किरीट कुमार ने देश भर से प्रतिभागियों के समक्ष कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला।

इन विशेषज्ञों ने दी प्रस्तुति

इस अवसर पर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत संचालित परियोजना उपलब्धियों और अनुसंधानों की प्रस्तुति में सोसायटी फॉर डेव्लेपमेंट अल्टरनेटिवस नई दिल्ली की सुश्री गीतिका गोस्वामी, हाईफीड देहरादून के डॉ कमल बहुगुणा, एनईआरआईएसटी अरूणांचल प्रदेश के अवधेष कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ सीमा गुप्ता, त्रिपुरा विश्वविद्यालय से डॉ थारू सेलवान, शेर-ए-कश्मीर विश्वविद्यालय से डॉ खुर्शीद अहमद, और गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान सिक्किम केंद्र से डॉ देवेंद्र कुमार ने अपनी परियोजना उपलब्धियों पर प्रस्तुति दी। और बताया किस प्रकार विभिन्न राज्यों में वन, पर्यावरण, भूगोल, झील और प्रकृति आधारित पर्यटन के विकास की दिशा में कार्य किए जा रहे हैं।

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इस वर्ष केंद्रित बिंदुओं जिपमें जलवायु संवेदी और कम प्रभावी पर्यटन, पर्यटन में पर्वतीय समाजों का नेतृत्व हेतु सशक्तीकरण एवं अभिनव उत्पादों के विकास हेतु सार्वजनिक-निजी भागीदारी के सुदृढ़ीकरण विषयों पर केंद्रित चर्चा में बोलते हुए हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ वनाधिकारी सीसीएफ श्री संजय सूद ने कहा कि हिमालयी राज्यों में आने वाले लाखों पर्यटकों के 10 प्रतिशत भाग को ईको टूरिज्म के क्षेत्र में लाना हम सभी के लिए चुनौतिपूर्ण है।

उत्तराखंड को उत्तरदायी टूरिज्म विकसित करने की आवश्यकता

मुख्य वन संरक्षक उत्तराखण्ड डॉ पराग मधुकर धकाते ने कहा कि आज उत्तराखण्ड में विभिन्न प्रकार का टूरिज्म विकसित हो रहा है। आज हम सभी को सभी प्रकार के टूरिज्म को उत्तदायी/रेसपॉस्टिबल टूरिज्म बनाना होगा। इसके लिए नीतिगत स्तर पर नियम कानून बनाने होंगे। उन्होंने वनाग्नि और पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को एक बड़ी समस्या बताया। उन्होंने हितधारकों के एकजुट होकर हर क्षेत्र का एक एक्शन प्लान बनाने की वकालत की। उन्होंने स्थानीय लोगों के हितों को ऊपर रखने को कहा।

वेलनेस टूरिज्म वक्ती जरूरत

जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे ने अपने संबोधन में कहा कि निजी हितधारकों, सरकार और अन्य विभिन्न हितधारकों समग्रता को एक साथ आना होगा। हम पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों में समाज के भरोसे पर्यटन को नहीं छोड सकते। हिमालयी पर्यटन नीति को और सशक्त बनाने में वैज्ञानिक समाज की बड़ी भूमिका हो सकती है। केरल की भॉति हम वेलनेश पर्यटन को उत्तराखण्ड में आगे बढ़ा सकते हैं। हमें पर्यटन सेवाओं में भी विविधता लानी होगी और पर्यटकों की जरूरतों और इच्छाओं को चिन्हित और लीपिबद्ध करना होगा। राजस्थान की भॉति हमें स्थानीय भोजन को प्रोत्साहित करना होगा। उन्होंने बताया कि हिमाचल और उत्तराखझड में मध्य भारत खासकर एनसीआर का अधिक पर्यटन आ रहा है।

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इनहेयर की सलाहकार डॉ सोनाली बिष्ट ने कहा कि पर्वतीय समाज एकल गतिविधियों पर निर्भर नहीं रह सकते। सामूहिकता यहां के समाज में पूर्व से निहित है। हमें समुदाय आधारित पर्यटन और आजीविका गतिविधियों को एकीकृत करना होगा।

उन्होंने कहा कि हर पर्वतीय गांव की अपनी एक विशेषता और इतिहास है और हमारे यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं है। उन्होंने कहा कि हिमालय वैश्विक स्तर पर माना जाना ब्राण्ड हैं।


आईयूसीएन की राष्ट्रीय समन्वयक सुश्री अर्चना चटर्जी ने कहा कि पर्यटन वैश्विक तापवृद्धि और प्रदूषण में अन्य क्षेत्रों से कम प्रभाव डालता है। उन्होंने कि हिमालयी भागों से देश का बड़ा समाज पर्यावरणीय सेवाऐं लेता है। उन्होंने हिमालयी भूगोल की अनिश्चिताओं को ध्यान में रखकर समुदाय आधारित नीतियां बनाने पर जोर दिया। कैंप हॉर्नबिल रामनगर से नवीन उपाध्याय, ने रामनगर क्षेत्र के अनुभव के आधार पर बताया कि वर्तमान पर्यटन और ईको-टूरिज्म की गतिविधियां एक दूसरे के प्रतिगामी सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में पर्यटन की वहन क्षमता का आंकलन कर पर्यटन विकास की योजना बनाने की वकालत की।


लोक प्रबंधन ग्राम संस्थान ताकुला से ईश्वर जोशी, ने कहा कि हिमालय में टूरिज्म का स्पष्ट मॉडल बनाना होगा। उन्होंने अनियोजित पर्यटन के कारण समाज में पैदा होने वाले अलगाव पर प्रकाश डाला।

उन्होंने समुदाय आधारित पर्यटन को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने विनसर वन्य विहार का उदाहरण देते हुए वन नीतियों के कारण होने वाले पलायन और टूरिज्म से आने वाले राजस्व के प्रबंधन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने हिमालयी राज्यों में वनाग्नि को भी बड़ी समस्या बताया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन की भी नीति बनाने पर भी जोर दिया। नार्थईस्ट रिजनल सेंटर प्रमुख इं0 महेंद्र सिह लोदी ने भी इस अवसर पर ईको टूरिज्म से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया।

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यह विशेषज्ञ रहे मौजूद

संस्थान की ओर से डॉ0 जे0सी0 कुनियाल, डॉ. आई0 डी0 भटट, रंजन जोशी, डॉ जी0सी0एस नेगी, डॉ संदीपन मुखर्जी , डॉ सुबोध ऐरी, डॉ चंद्र सीकर, इं0 आशुतोष तिवारी, डॉ प्रोमिता घोष, इं0 वैभव गोसावी, डॉ वसुधा अग्निहोत्री, डॉ हर्षित पंत, इं0 सैयद अली, पुनीत सिराड़ी, दिनेश बिष्ट आदि ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। प्रतिभागियों का आभार जताते हुए संस्थान की ओर से इस विचारगोष्ठी में आए सुझावों पर कार्य करने और इन्हें आगे बढ़ाने का आश्वास दिया गया।

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