जब एक वोट से चुनाव हार गए दिग्गज, कीमती है हर वोट

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा, 14 फरवरी 2022- लोकतंत्र में एक एक वोट क़ीमती है, आंकड़े भी इस बात की तक्सीद करते हैं। भारत के संसदीय लोकतंत्र में हर वोट को कीमती माना गया है। वर्ष 1999 में केवल 1 वोट के लिए तत्कालीन अटल बिहारी सरकार को सत्ता से बेदखल हो गई थी।

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यही नहीं गाजीपुर में 1967 के विधानसभा चुनाव में दिलदारनगर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कृष्णानंद राय ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से 1 वोट अधिक पाकर विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और तत्कालीन प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी बने थे। 2012 में उत्तराखंड के रानीखेत में हार जीत का आंकड़ा 76 वोट का रहा था।

1 वोट के अंतर से मिली जीत से विधायक बन गए थे कांग्रेस प्रत्याशी

1967 के विधानसभा चुनावों में यूपी के गाजीपुर की दिलदारनगर विधानसभा सीट से कांग्रेस के नेता कृष्णानंद राय 1 वोट से चुनाव जीत गए। राय का सीधा मुकाबला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रामजी कुशवाहा से था। दोनों बड़े जनाधार वाले नेता थे। चुनाव हुए और जबरदस्त मुकाबले के बीच कृष्णानंद राय अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रामजी कुशवाहा से महज 1 वोट अधिक पाकर विजयी हो गए। राय को 13,563 वोट मिले वहीं कुशवाहा को 13,562 वोट हासिल हुए।


रामजी कुशवाहा ने इसे हाइकोर्ट में चुनौती दी। अपने वकील के तौर पर उन्होंने देश के माहिर वकील और नेहरू कैबिनेट में रक्षा मंत्री रहे वीके कृष्ण मेनन को अपना वकील रखा। दूसरी तरफ कृष्णानंद राय ने न्यायालय में अपना पक्ष खुद ही रखने का फैसला लिया। राय उस दौर में गाजीपुर जनपद के अच्छे वकीलों में गिने जाते थे। कोर्ट से भी राय के हक में फैसला मिला और वह विधायक बन गए। सूबे में उसके बाद चंद्रभान गुप्त की सरकार बनी। इस सरकार में कृष्णानंद राय को स्वास्थ्य और सहकारिता विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया।