हरेला सोसायटी तैयार करती है प्राकृतिक रंग(natural color)
हरीश चन्द्र अन्डोला
देहरादून: 9 मार्च— भारतीय परंपरा के जितने भी पर्व और त्योहार हैं, वे किसी-न-किसी पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं। मगर उन सभी का कोई-न कोई वैज्ञानिक या पर्यावरणीय पक्ष भी है, जिसे नकारा नहीं जा सकता, जैसे होली ((natural color))का त्योहार।
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जिसमें रंग है, उमंग है और ढेर सारी मस्ती भी। इस मस्ती और उल्लास में सेहत की भी बात है। होली ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव के कारण लोग सुस्ती या थकान महसूस करते हैं। ठंड के बाद मौसम की गर्माहट की वजह से शरीर में सुस्ती आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। ऐसे समय में होली का आना, शरीर की सुस्ती को दूर करने का एक अच्छा माध्यम भी है।
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रंगों (natural color)की मस्ती और ढोल-नगाड़े के बीच जब लोग जोर से गाते हैं या बोलते हैं, ये सभी बातें शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसके अलावा जब शुद्ध रंग और अबीर शरीर पर डाला जाता है, तो इसका उस पर अनोखा प्रभाव होता है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी होली के आगमन पर बाजार में तरह-तरह के रासायनिक रंग और प्लास्टिक की बनी पिचकारियां, खिलौने, मास्क इत्यादि आ चुके हैं।
आधुनिकता की इस चमक-धमक के बीच हरेला सोसायटी(Harela Society), पिथौरागढ़ द्वारा स्थानीय तौर पर मिलने वाले फूलों से निर्मित प्राकृतिक रंग तैयार किए हैं. यह रंग ब्रूज (बुरांश), प्योली, हल्दी बिच्छू घास (सिन्ना), हजारी (गेंदा), डहेलिया, पालक, मूली, चुकुन्दर आदि के इस्तेमाल से तैयार किए गए हैं। इन रंगों को बनाने के पीछे हरेला सोसायटी के वॉलिंटियर्स का हाथ है जो अपने इन प्रयोगों द्वारा आजीविका और प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देना चाहते हैं।
रंगों के निर्माण एवं स्थानीय संसाधनों का दोहन एक सस्टेनेबल मैनेजमेंट प्लान के अंतर्गत किया गया है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है।
रंग बनाने से पहले वनों का सर्वेक्षण कर संसाधनों की उपलब्धता आंकी जाती है, जिसके बाद रंग बनाने की एक न्यूनतम कुल निश्चित मात्रा तय कर ली जाती है. ऐसा करने से सिमित संसाधनों पर अनुचित दबाव नहीं पड़ता ..एक ख़ास विधि द्वारा जंगली पौधों से फूल या पत्तियां चुनी जाती है. इसके अंतर्गत जमीन पर गिरे हुए फूल इकट्ठे किये हैं, और इन फूलों मे भी सिर्फ आधे फूल ही उठाए जाते हैं, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जमीन में ह्यूमस की मात्रा बनी रहे तथा उस फूल-पत्ती पर आधारित वन्य-जीवन को भी नुकसान न हो।
इन पेड़ों और पौधों से जो ताजा फूल चुने जाते हैं, उनकी संख्या भी सिर्फ एक चौथाई होती है, ताकि पौधे को प्राकृतिक रूप से रीजनरेट करने का मौका मिलता रहे।
सम्पूर्ण वन क्षेत्र में सिर्फ एक चौथाई क्षेत्र में मिलने वाले पेड़ों और पौधों को इस कार्य के लिए चुना जाता है. और यह क्षेत्र हर वर्ष एक रोटेशन पैटर्न में बदलता रहता है। रंगों की पैकेजिंग के लिए कपड़ों की थैलियों का प्रयोग कर, प्लास्टिक के प्रयोग से बचा जाता है।
ये रंग पूर्ण रूप से आर्गेनिक, हैवी मेटल फ्री और त्वचा के लिए लाभकारी हैं। स्थानीय और संपूर्ण देश भर के अलग-अलग क्षेत्रों से लोगों द्वारा इन रंगों की गुणवत्ता एवं पहल को सराहा जा रहा है।
हरेला सोसायटी के अन्य मॉडलों की भांति इस प्रयोग द्वारा प्राप्त सहयोग का एक भाग स्थानीय वनों के संवर्धन एवं प्रबंधन पर भी खर्च किया जाएगा. जिसके अंतर्गत आने वाले माह में वनों में लगने वाली आग, खरपतवार एवं कचरा प्रबंधन, रंगों मे प्रयुक्त पेड़-पौधों के नर्सरी निर्माण जैसे मुद्दों पर हरेला सोसायटी के इन्हीं वॉलिंटियर्स द्वारा ग्रामीणों एवं स्थानीय जन-सहभागिता के सहयोग से कार्य किया जाएगा ।
भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक लगभग लाखों साल पहले भारत में पहली बार जंगल की प्राकृतिक आग के बारे में सोचा गया था।
जंगल की आग जंगल के संसाधनों, पर्यावरण, मनुष्यों और सम्पत्ति को बड़ी क्षति पहुँचाती है। जंगलों में सबसे आम खतरा जंगलों की आग है। जंगलों की आग उतनी ही पुरानी है जितनी कि खुद जंगल।
आग न केवल वन संपदा के लिए बल्कि संपूर्ण शासन व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है। यह जैव-विविधता और क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण का जीवन चक्र बदल देती है। कई मामलों में, वनभूमि खराब हो जाती है या अन्य गतिविधियों के लिए निहित स्वार्थों के कारण ले ली जाती है।गर्मियों के दौरान, जब महीनों तक बारिश नहीं होती है, पेड़ों की सूखी पत्तियां और टहनियां लिटिर का रूप ले लेती हैं, जो थोड़ी सी चिंगारी से प्रज्जवलित हो जाती हैं और ज्वाला का रूप ले लेती हैं।
यह प्रकृति में असंतुलन का कारण बनती है और जीव-जंतुओं और फूलों की संपदा को कम करके जैव विविधता को खतरे में डालती है। आग से बचाव के परंपरागत तरीके कारगर साबित नहीं हो रहे हैं और अब इस मामले पर लोगों में जागरूकता लाना आवश्यक है, खासकर उन लोगों में जो जंगलों के निकट या वनाच्छादित क्षेत्रों में रहते हैं।
उत्तराखंड वन क्षेत्र आग के लिए अतिसंवेदनशील हैं, इनमें लगने वाली आग ज्यादातर मानव निर्मित होती है। जंगल की आग से उत्तराखंड के जंगल के संसाधनों का भारी विनाश होता है और साथ ही जंगली जीवन में खलल पड़ता है।
वन की आग मुख्य रूप से हवा के तापमान, सापेक्षिक आर्द्रता, हवा की गति, पिछले दिन की वर्षा, ओस बिंदु तापमान, हवा के दबाव, संभावित वाष्पीकरण, भूमि की सतह के तापमान, वर्षा दर, वन प्रकार, ढलान, ऊंचाई, अल्बेडो, सड़क नेटवर्क, रेल नेटवर्क, मानव आबादी और ईंधन पर निर्भर करती है, उत्तराखण्ड राज्य को अस्तित्व में आए 19 साल हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश से अलग होकर नए राज्य की परिकल्पना इतनी आसान नहीं थी. कई राज्य आंदोलनकारियों ने अपनी जान गंवाई तो न जाने कितनों को पुलिस और प्रशासन की प्रताड़ना झेलनी पड़ी। तब जाकर वर्ष 2000 में भारत के मानचित्र में 27वें राज्य के रूप में उत्तराखण्ड शामिल हुआ।
यहां की सूरत स्थानीय लोग ही बदल सकते हैं कृत्रिम रंगों में मौजूद रसायन नुकसानदेह होते हैं और भिन्न किस्म की समस्याओं का कारण बनते हैं। इनमें त्वचा की गड़बड़ी, रंग खराब होना, जलन-खुजली और खुश्की आदि शामिल हैं। होली के रंग में मौजूद कठोर रसायन खुजली और जलन का कारण बन सकते हैं और खुजली करने पर ये एक्जीमा का रूप ले सकते हैं और यह रंगों से होने वाली सबसे आम किस्म की प्रतिक्रिया है। केमिकल वाले रंगों से रहें दूर-घर पर ऐसे बनाएं हर्बल रंग।
रंग हटाने के लिए अपनी त्वचा को ज्यादा न रगड़ें।इससे ब्लिस्टर्सए रैशेज या एलर्जिक रीऐक्शन हो सकते हैं। इसकी बजाय अपनी त्वचा को गुनगुने पानी से गीला करके 10.15 मिनट छोड़ दीजिए और देखिए रंग अपने आप बहकर काफी हल्का हो जाएगा।
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रुखे और कठोर साबुन की बजाय हल्के क्लिंजर का उपयोग किया जाना चाहिए। होली के रंग से बचाव के लिए क्या-क्या करना चाहिए। कृतिम् और घरेलू क्लिंजर जैसे दूध और बेसन मिलाकर लगाने से भी आपका शरीर अच्छी तरह साफ होता है।
त्वचा को अच्छी तरह साफ करने और शावर से निकलने के बाद त्वचा को कोमल तौलिए से हल्के-हल्के पोछ कर सुखाइए और पोषण देने वाला मॉयश्चराइजर पूरे शरीर में लगाइए।
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लाली या ब्लिस्टर्स की स्थिति में कैलामाइन लोशन लगाया जा सकता है। आपकी त्वचा सांस ले पाए इसके लिए कोमल सूती कपड़े पहनिए। होली के रंगों का मजा लेने बाहर निकलने से पहले बरती जाने वाली कुछ सावधानियां आपके शरीर को जितना ज्यादा संभव होए ढंककर रखें।
इस तरह अगर आप पर कोई ऐसा रंग लगाया गया जो त्वचा के लिहाज से खराब है तो यह त्वचा तक पहुंच ही नहीं पाएगा और संवेदनशील त्वचा सुरक्षित रहेगी। सनस्क्रीन या बेबी ऑयल की एक मोटी परत त्वचा पर एक रक्षात्मक आवरण बनाएगी।
इससे रंगों के लिए त्वचा में अंदर जाना मुश्किल हो जाएगा। यही नहींए होली खेलने के बाद इससे रंगों को हटाना या त्वचा को साफ करना आसान होगा। होली के रंग से बचाव के लिए लाल या गुलाबी शेड का उपयोग करना चाहिएजिसे आसानी से हटाया जा सके।
ब्लैक, ग्रे, पर्पल और ऑरेंज जैसे रंग त्वचा से हटने में समय लगाते हैं। होली के रंग से बचाव के लिए अपनी कोहुनी और घुटनों पर वेसलिन या पेट्रोलियम जेली पहले ही लगा लें।
नाखून में रंग लग जाएं तो बहुत खराब लगते हैं और इन्हें तुरंत साफ करना लगभग असंभव है। होली के रंग से बचाव के लिए लिप बाम होठों पर लगाना चाहिए। होठों पर निशान न पड़ें इसलिए उनकी रक्षा करें। होली के रंग से बचाव के लिए बालों को रंगों के नुकसानदेह रसायनों से बचाने के लिए बालों में तेल लगाएं।
इससे धोने के दौरान भी रंगों को हटाने में सहायता मिलती है।अगर आप को एलर्जी है या रैशेज हो जाते हैं तो त्वचा रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
जानकार की सलाह लेना अच्छा रहता है वरना रसायन आपके लिए वाकई कठोर हो सकता है।रंग साफ करने के दौरान बेबी ऑयल के साथ मॉयश्चराइज्ड साबुन लगाइए और सुनिश्चित कीजिए कि आप इसे जोर से न रगड़ें क्योंकि इससे आपकी त्वचा क्षतिग्रस्त हो सकती है।
शरीर से रंग छुड़ाने के लिए नींबू के छिलके का उपयोग कीजिए क्योंकि ब्लीचिंग के इसके प्राकृतिक गुण हैं। पर सुनिश्चित कीजिए कि ऐसा करने के बाद पूरे शरीर को मॉयश्चराइज करें। रंग साफ करने के लिए ठंडे पानी का उपयोग करें। गर्म पानी का उपयोग न करें क्योंकि यह त्वचा में चिपकता है और रंगों को धोकर अलग करना बहुत मुश्किल होता है।बालों और त्वचा के साथ नाखून का भी ख्याल रखें।
पारदर्शी नेल पेन्ट लगा दें ताकि रासायनिक रंग आपके नाखून में न फंसें। इन्हें निकालने में सबसे ज्यादा समय लगता है। इसलिए आंखों की रक्षा के उपाय करें। होली खेलने के समय या तो ग्लेयर्स पहनें या फिर भरपूर पानी से आंखों को धोते रहें। सुनिश्चित करें कि आप अपनी आंखें न रगड़ें।और अपने शरीर तथा त्वचा को हाइड्रेटेड रखें क्योंकि सूखी त्वचा में रंग ज्यादा समय तक बने रहते हैं।
इसके अलावाए तरल पदार्थों के सेवन से ऊर्जा का आपका स्तर बना रहता है।
अपनी त्वचा को कृत्रिम रंगों के हानिकारक रसायनों से सुरक्षित रखने के लिए ऑर्गेनिक रंगों का उपयोग करें। न केवल ऑर्गेनिक रंग त्वचा के अनुकूल हैं वे पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। होली के जीवंत त्यौहार का आनंद लेने के लिए इन नुस्खों का ख्याल रखें और सुनिश्चित करें कि आपकी होली शानदार हो तथा जीवनभर के लिए यादगार हो।
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