उत्तराखंड: यहां कास्तकारों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बना रेशम कीटपालन (Silkworm rearing), 40 हजार कोकून का किया उत्पादन

UTTRA NEWS DESK
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Silkworm rearing

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बागेश्वर, 26 मई 2020
बागेश्वर जिले के कपकोट विकासखंड के अनुसूचित जनजाति गांवों में कास्तकारों ने इस बार 40 हजार कोकून का उत्पादन किया है. ग्रामीणों ने खेती व अन्य कार्यों के साथ रेशम कीटपालन (Silkworm rearing) का भी कार्य किया. जिससे उन्हें अच्छी आय अर्जित हो रही है.

दरअसल, उत्तराखंड ओक तसर विकास परियोजना (टीएसपी) के तहत रेशम निर्देशालय देहरादून के निर्देशन में कार्यदायी संस्था संजीवनी विकास एवं जन कल्याण समिति, रानीखेत द्वारा विकासखंड कपकोट के अनुसूचित जनजाति गांवों में ओक तसर रेशम कीटपालन (Silkworm rearing) का कार्य कराया जा रहा है.

संस्था द्वारा माह मार्च व अपैल में फरशाली पल्ली गांव में नारायण सिंह मर्तोलिया, मल्लादेश गांव में केदार सिंह राणा, गुलेर में दलजीत सिंह मर्तोलिया, राजेन्द्र सिंह, धाम सिंह व पनोरा कपकोट में नन्दन सिंह कपकोटी के यहां कीटपालन का कार्य किया गया. यह कीटपालन (Silkworm rearing) मणीपुरी बांज व स्थानीय बांज पर किया गया.

इन सभी कास्तकारों ने इस बार कुल 40,000 कोकून का उत्पादन किया है. कोकून तैयार कर ग्रामीणों ने उसके बीज उत्पादन के लिए उसे क्षेत्रीय रेशम अनुसंधान केंद्र भीमताल भेजा है. जहां कोकुन का बीज बनने के बाद इस उसके रेशे से धागा तैयार किया जाएगा.

संस्था सदस्यों ने बताया कि यह रेशम कीट (Silkworm rearing) 50 से कम दिन में यह कोकून बना कर तैयार कर देता है. उन्होंने कहा कि रेशम ​कीटपालन (Silkworm rearing) से पहाड़ से पलायन रोकने में मदद मिल सकती है और लोग इससे अच्छी आय अर्जित कर सकते है.

कपकोट क्षेत्र के 5 गांवों के 25 से 30 कास्तकार वर्तमान में इस कार्य से जुड़े हुए है. कीटपालन (Silkworm rearing) के साथ सभी गांवों में मनरेगा के तहत मणीपुरी बांज के पौधों का रोपण किया जा रहा है. ताकि इन पेड़ों पर भविष्य में कीटनालन का कार्य किया जा सकें. मणीपुरी बांज का पौधा काफी तेजी से बढ़ता है. कीटपालन के साथ ही यह पौंधा जलस्रोतों को रिर्चाज करने व भू—स्खलन रोकने में भी कारगर है.

ओक तसर एक कृषि आधारित ग्रामीण कुटीर उद्योग है. जिस में कम समय पर फसल तैयार हो जाती है. स्थानीय बांज, मणीपुरी बांज, खरसु, मोरू के पत्तों पर कीट को पाला जाता है. कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल व ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मई व जून माह में कीटपालन (Silkworm rearing) का कार्य किया जा सकता है. संस्था की ओर से किसानों को कीटपालन, पौंधा रोपण से सम्बंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम भी कराये जाते है.

संस्था की ओर से संतोष जोशी, विनोद सिंह घुघतियाल, दीवान सिंह कपकोटी, कैलाश सिंह मर्तोलिया द्वारा यह कार्य कराया गया.