मुंह बाएं खड़ा है राेजी रोटी का सवाल -देश बेरोजगारी दर हुई दोगुनी

उत्तरा न्यूज डेस्क
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वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रशेखर जोशी की फेसबुक वाल से साभार)

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डेस्क :-
बेरोजगारी पर एक रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें भयानक स्थिति सामने आई है। इस रिपोर्ट में गांवों की बेरोजगारी और कामचलाऊ रोजगार शामिल नहीं है। इसे भी जोड़ दिया जाए तो देश की नौजवान पीढ़ी का भविष्य बर्बादी के कगार पर है। बताया गया है कि देश में 2018 तक के पिछले आठ साल के दौरान बेरोजगारी की दर दोगुना हो गई है। नवंबर 2016 में नोटबंदी के दो साल के दौरान 50 लाख रोजगार घटे हैं।
…अमित बसोले की अगुवाई में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा नए जल्दी-जल्दी किए जाने वाले श्रम बल सर्वे की रिपोर्ट अभी जारी नहीं की है, इसलिए इस अध्ययन में 2016 से 2018 के दौरान रोजगार की स्थिति को समझने के लिए सरकार सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों का इस्तेमाल कर रही है। विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर डाली गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 से सामान्य तौर पर बेरोजगारी बढ़ी है। पीएलएफएस और सीएमआईई-सीपीडीएक्स दोनों की रिपोर्ट में 2018 में बेरोजगारी की दर को करीब छह प्रतिशत आंका गया है, यह 2000 से 2011 की औसत दर का दोगुना है। इसमें कहा गया है कि भारत में बेरोजगार लोगों में ज्यादातर उच्च शिक्षा प्राप्त और युवा हैं।
…इसमें कहा गया है कि सीएमआईई-सीपीडीएक्स के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016 से 2018 के दौरान 50 लाख लोगों का रोजगार छिना। नवंबर 2016 में नोटबंदी की गई थी। एनएसएसओ की समय-समय पर श्रम बल सर्वे पर आधारित लीक रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी की दर छह प्रतिशत से अधिक यानी 45 साल के उच्चस्तर पर थी। हालांकि सरकार ने आधिकारिक रूप से अभी इस रिपोर्ट को जारी नहीं किया है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट के अनुसार शहरों में कामकाज की आयु वाली महिलाओं में 10 प्रतिशत स्नातक हैं, लेकिन इनमें 34 प्रतिशत बेरोजगार हैं। वहीं 20 से 24 साल के वर्ग में बेरोजगारों की संख्या कहीं अधिक है। उदाहरण के लिए शहरी पुरुषों में कामकाज लायक आबादी में इस आयु वाली आबादी 13.5 प्रतिशत है, पर इसमें 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं।
…रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी बढ़ी ही है, कम शिक्षित (असंगठित क्षेत्र) श्रमिकों के लिए भी 2016 से रोजगार के अवसर घटे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रशेखर जोशी की फेसबुक वाल से साभार)