उत्तराखंड में जंगलों से लगी आग से मचा हाहाकार, क्यों सोती रही सरकार?

उत्तरा न्यूज टीम
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हेमराज सिंह चौहान

उत्तराखंड के अनेक ज़िलों के जंगलों में लगी आग से हाहाकार मचा हुआ है। अभी तक जो जानकारी आ रही है, उसके मुताबिक़ एक हज़ार हेक्टेयर से ज्यादा वन विभाग की ज़मीन आग की भेंट चढ़ चुकी हैं।ये आंकड़ा हालांकि पिछले 6 महीनों का है लेकिन अप्रैल के बाद जंगलों में लगने वाली आग ने ज़्यादा नुक़सान किया है। आपको बता दें कि राज्य में लोकसभा चुनाव 20 अप्रैल को पहले चरण में हुए थे। वन विभाग के कई कर्मचारियों की ड्यूटी इसमें लगी थी।

राज्य की धामी सरकार भी चुनावों में बिजी थी,इसका नतीजा ये हुआ कि समय पर आग लगने की घटनाओं को रोकने के प्रयास नहीं किए गए जिसका नतीजा आपके सामने हैं। दरअसल मैं ये इसलिए कह रहा हूँ कि क्योंकि पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि सर्दियों के सीजन के ख़त्म होने के बाद जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई है। ये भी कटु सत्य है कि मानवीय चूक के कारण जंगलों में आग लग रही है।

इसके अलावा उत्तराखंड के जंगलों में भारी संख्या में चीड़ के पेड़ है,जिसकी पत्तियां सूखने के बाद ज़मीन पर गिरती है इन्हें लोकल भाषा में पिरुल कहा जाता है। ये काफ़ी ज्वलनशील होती है और जंगलों में आग लगने के लिए किसी उत्प्रेरक जैसा काम करती है। मीडिया में तब शोर मचता है जब आग विकराल रूप ले लेती है। फिर दौर शुरू होता है हेडलाइन मैनेजमेंट का। आपने वायुसेना के हेलीकॉप्टर से जंगलों में लगी आग बुझाने के वीडियो ज़रूर देखे होंगे लेकिन सच्चाई ये है किे प्रयास ऊँट के मुँह में जीरे जैसे थे।

नैनीताल ज़िले के कई हिस्सों में जंगलों में लगी आग थमने का नाम नहीं ले रही है।लोगों को सांस लेने में खासी दिक़्क़त हो रही है।चारों तरफ़ धुंए की चादर फैली हुई दिख रही है। बेटे गुरुवार को आग लगने की 43 घटनाएं रिकॉर्ड की गई,इसमें से 30 से ज़्यादा कुमाऊं मंडल में थी। फ़ॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंजन के एक डेटा के अनुसार देवभूमि के जंगलों में 25 अप्रैल से 2 मई के बीच सबसे ज़्यादा आग लगने की घटनाएं हुई। इस साल ओड़िशा के बाद उत्तराखंड देश का ऐसा दूसरा प्रदेश है जहां जंगलों में आग लगने की सबसे ज़्यादा घटनाएं हुई। आग लगने की वजह से 3 लोगों की मौत की खबर भी सामने आ रही है।

ये मौतें अल्मोड़ा जिले में हुआ जहां लीसा निकालने के लिए गए 2 महिलाओं सहित 4 मज़दूर आग की चपेट में आ गए,जिनमे से पति पत्नी सहित 3 ने दम तोड दिया,जबकि महिला का सुशीला तिवारी अस्पताल में इलाज चल रहा है। कुमाऊं में नवंबर 2023 के बाद लगी आग से वन विभाग की क़रीब 575 हेक्टेयर ज़मीन को नुक़सान हुआ वहीं गढ़वाल की बात करें तो यहाँ की क़रीब 363 हेक्टेयर ज़मीन को नुक़सान हुआ। जंगलों में लग रही इस आग के मामले में 315 केस दर्ज किए गए हैं जिसमें 52 लोग नामज़द हैं बल्कि 267 लोग नामज़द नहीं है।

सोशल मीडिया पर लोग लगातार सवाल उठा रहे हैं कि आग पर अभी तक क़ाबू क्यों नहीं पाया जा सका है। उत्तराखंड के सीएम ने एक रिव्यू मीटिंग ली थी लेकिन इसके बाद वो लोकसभा के चुनाव प्रचार के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं।उत्तराखंड में ज़मीन के साथ स्थानीय लोगों का काफ़ी करीबी रिश्ता है लेकिन जिस तरह अधिकतर जंगल वन विभाग के क़ब्ज़े में हैं और लोगों को जंगलों से दूर किया जा रहा है उस वजह से आग लगने की घटनायें बढ़ रही हैं।

हालांकि आप ज़मीन पर देखेंगे तो स्थानीय लोग जंगलों में लगी आग को बुझाने की पूरी कोशिश करते हैं और वन विभाग को इसकी जानकारी भी देते हैं क्योंकि ये आग उनके खेतों और घरों तक पहुँचने लगी है। उनके मवेशियों के लिए चारे की समस्या इस आग से होती थी, कई बार लीसा माफिया भी इस आग को भड़काते हैं ताकि वो जंगलों का दोहन कर सके। कुल मिलाकर उत्तराखंड के लोगों के सामने जंगलों में लगी आग ने नई समस्या खड़ी कर दी है और हर साल उन्हें इसका सामना करना पड़ रहा है। लोग अब इंद्र देवता के भरोसे हैं. उन्हें लगता है कि बारिश ही ये आग और दमघोंटू हवा से उन्हें बचा सकती है क्योंकि हमारे हुक्मरानों को देहरादून और हल्द्वानी से ये आग दिखती नहीं है।