“कतरा कतरा तमाम हो जाये,वो न आएं ओ शाम हो जाये,” जयंती पर काव्य गोष्ठी के माध्यम से याद किए गए छायावादी कवि (Sumitra nandan pant) सुमित्रानंदन पंत

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा, 21 मई 2021- प्रकृति के छायावादी सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitra nandan pant) की 21वीं जयंती के सुअवसर पर अध्यक्ष, सुमित्रानंदन पंत स्मारक समिति स्यूनराकोट व रमेश चंद्र लोहुमी संयोजक छंजर सभा के संयुक्त तत्वाधान में वर्चुअल काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, यह गोष्ठी गुरुवार को आयोजित हुई।

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काव्य गोष्ठी में अल्मोड़ा, हल्द्वानी, चम्पावत, नैनीताल, देवरिया उ. प्र., बागेश्वर सहित अन्य स्थानों से अनेक कवि व उत्कृष्ट हिंदी साहित्यकारों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डॉ. दिवा भट्ट ने की, मुख्य अतिथि डॉ. तिलकराज जोशी चम्पावत एवं विशिष्ट अतिथि दयाशंकर कुशवाहा देवरिया उ.प्र. रहे, कार्यक्रम का संचालन नीरज पंत ने किया।

काव्य गोष्ठी का शुभारंभ निर्मल पंत संगीतज्ञ द्वारा कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitra nandan pant) की एकमात्र कुमाउनी कविता के गायन के साथ हुआ, तत्पश्चात संचालन कर रहे नीरज पंत द्वारा कविवर पंत के जीवन परिचय, व्यक्तित्व/कृतित्व एवं प्राप्त सम्मान आदि पर चर्चा की. सभी कवियों द्वारा अपनी एक प्रतिनिधि रचना, काव्य पाठ, गीत काव्य, समसामयिक तथा पंत की कविताओं पर आधारित प्रस्तुत कीं।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफ़ेसर डॉ.दिवा भट्ट ने वर्तमान विकट स्थितियों में वर्चुअल आयोजन की सार्थकता, कविवर पंत की कविताओं पर विश्लेक्षणात्मक चर्चा, समस्त प्रस्तुतियों का पश्चपोषण, वर्तमान में दिवंगत कवि, साहित्यकारों का स्मरण/ शोक संवेदना प्रेषण, समीक्षा आधारित सराहना एवं आभार व्यक्त किया. कुमाउनी भाषा के प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार शेरदा ‘अनपढ़’ की पुण्य तिथि पर उन्हें सादर स्मरण किया गया।

कार्यक्रम के समापन पर दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार, “आधारशिला’ पत्रिका के संपादक, कवि एवं साहित्यकार दिवाकर भट्ट के निधन पर शोक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए 2मिनट का मौन रखा गया,तत्पश्चात संचालक नीरज पंत द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया,
काव्य गोष्ठी में वाचन एवं गायन कुछ कविताओं /गीत काव्य की एक झलक—-

कला साधना सौन्दर्य उपासना
ध्येय तुम्हारा रजतशिखर
हे शब्द शिल्पी हे महाकवि रहे
तेज तुम्हारा अजय अमर।
— किरन पंत “वर्तिका’ हल्द्वानी

सूरज की किरणों में चमकती औंस की बूंदे,
मानो हरी घास में मोती बिखर आये हो,
नीले आसमान के नीचे।
प्रकृति का खजाना मिल गया।
खुशियों का तराना मिल गया।
लॉकडॉउन में जीने का बहाना मिल गया
— चन्द्रा उप्रेती

यहां हरियाली है,खुश हाली है, स्वच्छ जलवायु और जीवन है।
वहां गंदगी है, धूल है, धुवां है, प्रदूषण है।
यहां नौले हैं, धारे हैं, बहता जिनमें निर्मल जल है।

वहां बोतलों में बिकता पानी, कहते हैं इसमें मिनरल है।
— हिमांशु जोशी ‘यहां और वहां’ चंपावत

प्रकृति के सभी वे चितेरे हुए हैं
जिन्होंने भी हृदय पसारा हुआ है,
वही रास रचते सरित तट, वनों में
जिन्होंने उसे ही निहारा हुआ है !
— डॉ. तिलकराज जोशी चंपावत

वर्षा होती रहती है / मिट्टी खिसकती है/ पहाड़ द रखते हैं/
नदियां बहकती हैं /और डूबने लगता है देश।
— डॉ.दिवा भट्ट

वीणा, पल्लव, ग्रंथि, गुन्जन काव्य कालजयी रच गये,
शब्द शिल्पी तुम कविवर साहित्य अनुपम रच गये,
सौंदर्य प्रेमी मन तुम्हारा भाव शिल्पी तुम हुए।।
— सोनू उप्रेती “साँची”

प्रकृति के सुकुमार तुम फिर से पधारो,
नव रूप में आकर पुनः इसको संवारो,
मौन आमंत्रण सहज स्वीकार कर लो,
प्रेम का फिर विश्व में प्रसार कर दो।
— मीनू जोशी

सच लिखूं तो कोई रुठ न जाये
झूठ लिखूं तो कुछ छूट न जाये
कागज बहुत कमसिन से है
जोर से लिखूं तो लेखनी टूट न जाये।
— डॉ. कुंदन सिंह रावत

जाजिम बिछाना पलक- पावड़े बिछाने के
भावार्थ नहीं हुआ करते घोड़े ने जीत ली दौड़कर
सरपट की रेस और उधर संकट में फंसे मृग ने
पूरे शरीर से खींची ऊर्जा और भाग खड़ा हुआ
दौड़ना कभी भागने के भावार्थ नहीं हुआ करते
— मोती प्रसाद साहू

लफ़्ज़ अश्क़ों में भिगोता जा रहा हूँ
याद काग़ज़ में संजोता जा रहा हूँ उलझनों का एक जंगल बो रहा हूँ
और ख़ुद उसमें ही खोता जा रहा हूँ वो मदद की आस में तकता है मुझको
मैं यहाँ ख़ुद बोझ होता जा रहा हूँ हाँ सिवा तड़पन के कुछ हासिल नहीं पर
ज़ख्म में ख़न्जर चुभोता जा रहा हूँ
— मनीष पंत

हे प्रकृति महाकवि,जन्मभूमि रवि,
तुम पहाड़ के, गुरुवर हो।
तुम महान ज्ञानी, सुरमय दानी,
हिमालयी सुत, कविवर हो

तुम देवभूमि के, धरा दीप से,
याद रहोगे, युग युग तक।
यह प्रकृति प्रेम की, कविता मधुरी,
गूंजेगी इन, शिखरों तक…
—डॉ.धाराबल्लभ पांडेय ‘आलोक’

रात ब्याणौक तार…
— त्रिभुवन गिरी महाराज

आशा का प्लावन बन बरसो
नव सौंदर्य रंग बन बरसो
प्राणों में प्रतीति बन हरसो
अमर चेतना बन नूतन
बरसो हे घन…
— नीलम नेगी
(आह्वान – सुमित्रानंदन पंत जी)

एक नन्हा पौंधा फिर रोपा गया है नीम का नन्हे हाथों से
लेकिन बरसों लगेंगे तुम्हें अब फिर फलने-फूलने में
पहले जैसा होने में नीम का पेड़ बनने में।
— मोहन सिंह रावत जी (नैनीताल)

बज़्मे दिल से जो हो जाना तो खबर कर देना
कोई सूझे न बहाना तो खबर कर देना। जख़्म हमको तो जमाने से मिले हैं साकी
जुल्म तुमको भी हो ढाना तो खबर कर देना।

— डॉ.राजीव जोशी (बागेश्वर)

कतरा कतरा तमाम हो जाये,
वो न आएं ओ शाम हो जाये।
— नीरज पंत