हिलजात्रा(Hiljatra): डेढ़ माह की कार्यशाला से संरक्षण व विकास में मिलेगी मदद

UTTRA NEWS DESK
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Hiljatra

खेती-पशुपालन से जुड़ा है मुखौटा नृत्य-हिलजात्रा(Hiljatra)

Hiljatra:Workshop will help in conservation and development

पिथौरागढ़, 06 जुलाई 2020
हिमालय की लोक संस्कृति के एक महत्वपूर्ण रूप हिलजात्रा(Hiljatra) यानि मुखौटा नृत्य पर डेढ़ माह की एक प्रस्तुतिपरक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन पिथौरागढ़ में शुरू हो गया है.

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इस कार्यशाला में जिले के तीन विकासखंडों के अनेक कलाकार भागीदारी कर रहे हैं. कार्यशाला का उद्देश्य इस लोक संस्कृति का संरक्षण और विकास कर उसे नयी पीढ़ी को हस्तांतरित करना है.

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के दोनों मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल में मुखौटा नृत्य की परंपरा पाई जाती है. कुमाऊं में खासकर नेपाल से लगे हिस्से में इसे हिलजात्रा(Hiljatra) के नाम से जाना जाता है.

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खेती और पशुपालन से जुड़ी इस परंपरा में हर साल विभिन्न स्थानों पर हिलजात्रा(Hiljatra) का आयोजन किया जाता है, जिसमें ग्रामीण मुखौटा पहनकर खुद बैल बनते हैं और खुद ही हल जोतते किसान का रूप धारण करते हैं.

इस दौरान उस स्थल पर एक तरह का मेला होता है, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग भागीदारी करते हैं और मुखौटा नृत्य का आनंद उठाते हुए उसके जरिये खेती-पशुपालन के महत्व को आत्मसात करते हैं. वहीं गढ़वाल मंडल में भी मुखौटा नृत्य की एक अलग परंपरा है, जिसे रम्माण के नाम से जाना जाता है.

हिमालय की लोक सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं विकास योजना के तहत यह कार्यशाला भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की ओर से प्रायोजित है.

इसका आयोजन कर रही पर्वतीय सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कला समिति के अध्यक्ष एवं निदेशक हेमराज बिष्ट ने बताया कि 1 जुलाई से शुरू हो चुकी यह कार्यशाला 15 अगस्त तक समिति के सांस्कृतिक सभागार में चलेगी, जिसमें विण, मूनाकोट और कनालीछीना विकासखंड के अनेक लोक कलाकार भागीदारी कर रहे हैं. पूरी कार्यशाला का डाक्यूमेंटेशन करने के साथ ही इस पर एक पुस्तिका भी निकाली जाएगी.

गौरतलब है कि हेमराज बिष्ट व उनके सहयोगियों के सतत प्रयासों के चलते ही क्षेत्र की प्राचीन लोक संस्कृति हिलजात्रा(Hiljatra) को आज देश-विदेश में लोग जानने लगे हैं.

हेमराज बिष्ट ने लोक कलाकारों के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में हिलजात्रा का प्रस्तुतिकरण भी किया है. उम्मीद की जा रही है कि इस कार्यशाला के माध्यम से लोक संस्कृति के इस रंग हिलजात्रा(Hiljatra) को संरक्षित करने तथा उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी.

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