यह है लाख टके की बात— वनों को वन ही बनाते हैं,पौधरोपण ही नहीं है समाधान, स्याहीदेवी के ग्रामीणों ने दिखाई अनूठी पहल,छह सौ हेक्टेयर में विकसित हुआ है सघन वन

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा। यूं तो मानव,वन और पर्यावरण शुरू से ही एक दूसरे के पूरक रहे हैं लेकिन बदलते परिवेश में जिस तरह कुछ दशक पूर्व से वन संरक्षण और पौधरोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की एक बहस चली है उसने इस पूरी मुहिम को रश्मी बनाकर रख दिया है।अधिकांश कार्यक्रम केवल रश्मअदायगी तक के लिए सीमित होकर रहे गए हैं। ऐसे में अल्मोड़ा जिले के शीतलाखेत के स्याहीदेवी रिजर्व फारेस्ट में ग्रामीणों द्वारा अपनाई गई पहल ने इस मुहिम को एक नया सकारात्मक रूप दे दिया है।
यहां पौधरोपण की हर वर्ष की रश्म अदायगी की बीच ग्रामीणो ने एएनआर यानी साहयतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन विधि पर अमल किया जिसका सीधे शब्दों में मतलब है कि वनो को छेड़छाड़ से दूर रख दिया जाय केवल मानव हस्तक्षेप व प्राकृतिक नुकसान से बचा दिया जाय तो जंगल खुद को निखारने लगता है। यहां के ग्रामीणों ने छह सौ हेक्टेयर वन क्षेत्र को पिछले आठ साल से केवल और केवल आग से बचाया है। आपसी समन्वय से 40 गांवों के लोगो ने इस वन क्षेत्र में 2012 से आग नहीं लगने दी और नतीजा सबके सामने है।

इस क्षेत्र में कोई पौधरोपण अभियान नहीं हुआ केवल वन को आग से बचाया गया लेकिन अब पूरा वन क्षेत्र सघन और जैवविविधता से परिपूर्ण होकर निखर चुका है। गांववालों का भी कहना है कि यदि पर्यावरण संरक्षरण की औपचारिक शोरगुल के बीच यदि इस प्रकार की पहल को बढ़ावा मिले तो प्रदेश में कई वन संरक्षित हो सकते हैं। वन विभाग के अधिकारी भी ग्रामीणों के सहयोग और पहल का स्वागत कर रहे हैं। स्याहीदेवी विकास मंच के सलाहकार गजेन्द्र कुमार पाठक, गणेश पाठक, विपिन पाठक सहित अनेक ग्रामीणों का कहना है कि इस जंगल को वन विभाग और ग्रामीणों की मदद से केवल आग से बचाने का प्रयास किया आज इस क्षेत्र में सघन वन विकसित हो गया है। जिसमें बांज, बुरांश, फल्यांट जैसे सदाबहार पौधे हैं तो अग्यांर जैसी पौधों के झुरमुट लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।वहीं सिलफोड़ा,हिसालू, किलमोड़ा जैसे औषधीय विविधता भी वन की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं। ग्रामीण गजेन्द्र कुमार पाठक,विपिन पाठक,गणेश पाठक, दिनेश पाठक सहित अनेक ग्रामीणों का कहना है कि आपसी सहयोग और वन विभाग की सहायता से वह इस कार्य को कर पाएं हैं लेकिन यदि ऐसी ही योजना बने तो प्रदेश के अधिकांश स्थानों पर जंगल विकसित हो सकते है।

अधिकांश ग्रामीणों का मानना है कि केवल और केवल पौधरोपण से वनों का विकास या नए जंगल बनाने की कल्पना करना कठिन है। मालूम हो कि यह वही क्षेत्र है जहां ग्रामीण वन विभाग के सहयोग से एक लाख लीटर का वर्षाजल संग्रहण टैंक बना चुका है। अभी भी यह टैंक पानी से लबालब भरा हुआ है। स्याहीदेवी के इस उत्तरी कंपार्टमेंट के विकास में ग्रामीणों के सहयोग की वनक्षेत्राधिकारी संचिता वर्मा ने भी सराहना की है। उन्होंने कहा कि यहां ग्रामीणों ने जागरूकता और आपसी समन्वय से जो मिशाल पेश की है वह सराहनीय है।