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अल्मोड़ा, 29 अगस्त 2021- छंजर सभा अल्मोड़ा के तत्वाधान में प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठी वर्तमान कोरोना काल (कोविड-19)के कारण पुनः आज दि.28 अगस्त की सायं 7बजे से वर्चुअली ऑनलाइन आयोजित की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डॉ.दिवा भट्ट जी द्वारा की गई,काव्य गोष्ठी का संचालन पिथौरागढ़ से नीरज पंत (प्रधानाचार्य) द्वारा किया गया।
गोष्ठी में कवि साहित्यकारों द्वारा राष्ट्र प्रेम, लोक संस्कृति, प्रचलित परंपरा आधारित रचनाओं के साथ अन्य वर्तमान विविध ज्वलंत एवं समसामयिक विषयों पर भी आधारित हिंदी व कुमाउनी में रचनाएं प्रस्तुत किए।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. दिवा भट्ट द्वारा विभिन्न विधाओं/विविध विषयों पर आधारित रचनाओं की समीक्षा व पश्चपोषण करते हुए महत्वपूर्ण साहित्यिक मार्गदर्शन दिया, अनेक अस्वस्थ चल रहे कवियों के स्वास्थ्य लाभ हेतु शुभकामनाएं प्रेषित कीं,छंजर सभा के संस्थापक सदस्य एवं स्थानीय संयोजक रमेश चंद्र लोहुमी जी के पूज्य पिताजी के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना एवं शोक व्यक्त किया।
काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत रचनाए---
हे वीर भगत हे क्रांतिकारी तुमको प्रणाम में करती हूं।
अपनी कविता में पुष्प पिरो तुमको मैं समर्पित करती हूं।
हे शहीद भगत, हे क्रांतिकारी तुमको प्रणाम में करती हूं।
प्रियतम तुम कहाँ और हम कहाँ
बस चाँद हमको एक करता ।
छवि चाँद में देखू तेरी बस देखती रहूं।
फिर भी पागल मन न भरता।
प्रियतम तुम कहाँ और हम कहाँ
बस चाँद हमको एक करता।
--- चन्द्रा उप्रेती
तहज़ीब, अदब, अपनत्व से,
रिश्तों को संजो कर रखती ...
शीतल रिमझिम सी बूंदें,
कर देतीं सराबोर ,
मन के कोर कोर को सींच,
चाय की चुस्कियों के बीच।
कितने सावन बीते तुम संग,
कितनी आशाएं बोयी हैं।
एक शाम की धूप के टुकड़े संग,
कितनी यादें संजोयी हैं।
-- मीनू जोशी
जेहन को आखिरी दम तक खपाने की जरुरत
और हमें जाने ज़िगर कहते हैं.....
-- मनीष पंत
हूं खुशनसीब कि जिंदा हूं मैं ,
हूं तो जिंदा पर कहां जिंदा हूं मैं ।
उड़ती रही अफ़वाह मेरे मर जाने की
लौटे मायूस जाने जब जिंदा हूं मैं ।
सिर्फ बातों को तबज्जू नहीं देता कोई
देखी जब नब्ज़ माने जिंदा हूं मैं ।
वो आए तो चुपचाप मगर दिल को खबर थी
धड़का फिर एक बार कि जिंदा हूं मैं ।
(ग़ज़ल )
जब हिटलि हाथ पकड़ि
ऊंचा नीचा डाना
तब जाणलि मेरि सुवा
म्यार दिल बाता ।
जब हिटलि हाथ पकड़ि
ऊंचा नीचा डाना....
जिंदगकि गाडि छू यो
ट्याड़ म्याड़ बाटा
जब हिटला तब जाणला
कै कै उनि बाधा
तबै हंसलि जिंदगी
जब तू हंसलि बाना....।
जब हिटलि हाथ पकड़ि
ऊंचा नीचा डाना....
बखत बितण में नि लागन
के लै टैम तारा
आंग हैजां बुढ़ हमर
मन रै जां जवाना
बतै दे कै मन में छू त्यार
भैर खैड़ किसाना ...।
जब हिटलि हाथ पकड़ि
ऊंचा नीचा डाना
तब जाणलि मेरि सुवा
म्यारा दिल बाता ।
(कुमाउनी गीत )
--- नीरज पंत
एक मां की गुहार और पिता की पुकार सुन लो
उसकी जीवन रक्षा कर 'अभयदान' दे दो
असह्य वेदना से व्यथित है पूरा परिवार
विश्वास न टूटे उनका,श्रद्धा का न हो अपमान
बहुत हुआ अब तो दया करो हे दयानिधान !!!...
बांसुरी की धुन में हो मगन
लीलामय हुआ बिरज धाम
गोपियों के रंग में रंगकर..
कहे राधा मुझे भूल न जाना श्याम...
-- नीलम नेगी
माँ चल देती थी धूल भरी धरती पर
अपने पैरों के निशान बनाती हुई
फिर लौटती थी उन्ही निशानों पर पाँव रख कर
पगडण्डियाँ रचती हुई
माँ चल देती थी उजालों की खोज में
उजाला होने से पहले
और उजली हो जाती थीं पगडण्डियाँ
-- डॉ.दिवा भट्ट