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एनएफएच सर्वे(NFH Survey—5):: उत्तराखंड में नवजात मृत्यु दर के आंकड़े चिंताजनक

Newsdesk Uttranews
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NFH Survey—5 :: The figures of neonatal mortality in Uttarakhand are worrying

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उत्तरा न्यूज डेस्क, 27 नवंबर 2021— उत्तराखंड जो स्वास्थ्य के मामले में कई कमियों से जूझ रहा है। वहां नवजात शिशु मृत्यु दर के आंकड़े चिंताजनक है। (NFH Survey—5) के अनुसार यह आंकड़े सामने आए हैं।


राज्य के शहरों में लिंगानुपात चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFH Survey—5) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य के शहरी इलाकों में कुल आबादी में प्रति एक हजार लड़कों पर केवल 943 लड़कियां हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 1052 है।

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लिंगानुपात में गिरावट की वजह को जानकार भ्रूण के लिंग परीक्षण भी एक कारण बता रहे हैं यही नहीं बुधवार यानि 24 नवंबर को जारी (NFH Survey—5)रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में बालिका जन्मदर भी 2.1 से घटकर 1.9 पर पहुंच गई है। हालांकि परिवार नियोजन अपनाने वालों की संख्या 70 फीसदी तक पहुंच गई है।

रिर्पोट(NFH Survey—5) का चिंताजनक पहलू शिशु मृत्यु दर भी बढ़ी


रिर्पोट के अनुसार रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में नवजात मृत्यु दर 27.9 से बढ़कर 32.4 तक पहुंच गई है। अस्पतालों में एनआईसीयू की भारी कमी इसकी बड़ी वजह है यानि सरकार नवजात बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में नाकाम रही है। । NFH Survey—5 रिर्पोट में राहत की बात यह है कि बाल मृत्यु दर में मामूली कमी दर्ज हुई है। वर्तमान में प्रदेश में बाल मृत्यु दर 39.1 है।

राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family and Health Survey) की रिपोर्ट अनुसार उत्तराखंड राज्य की जनसंख्या के हिसाब से प्रति हजार पुरुषों पर कुल 1016 महिलाएं हैं। जहां शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 943 है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 1052 महिलाएं प्रति हजार पुरुष हैं।

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पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में महिलाओं की संख्या बढ़ना अच्छी खबर है, लेकिन रिपोर्ट में पिछले पांच साल (2016-2021) के बीच बच्चों के जन्म का लिंगानुपात (sex ratio at birth) प्रति हजार लड़के 984 लड़कियां हैं।

शहरी क्षेत्रों में हजार लड़कों में 1094 लड़कियों का अनुपात है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति हजार लड़कों पर 937 लड़कियां हैं। हालांकि सरकार की सख्ती की वजह से भ्रूण परीक्षण (embryo test) और भ्रूण हत्या (feticide) के मामलों में कमी आई है। बावजूद इस ओर और प्रयास करने की जरूरत है।


केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बुधवार को जनसंख्या, प्रजनन, बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य के साथ-साथ 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 2019-21 एनएफएचएस-5(NFH Survey—5) के चरण दो के तहत प्रमुख संकेतकों की फैक्टशीट जारी की गई है।जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, पुडुचेरी, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली के एनसीटी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।


उत्तराखंड की रिपोर्ट के मुताबिक, जनसंख्या के हिसाब से यहां प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1016 है। इस रिपोर्ट में प्रदेश में महिलाओं की सारक्षता दर में सुधार देखा जा रहा है।


एनएचएफएस 2015-16 में सारक्षता दर 76.5 के अपेक्षा NFHS-5 (2020-21) में बढ़कर 79.8 हुई है। जबकि महिलाओं के प्रजनन दर में कमी आई है, जो 2.1 से घटकर 1.9 हो गई है।


नवजात मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है। 2015-16 के रिपोर्ट के अपेक्षा 2020-21 में मृत्यु दर 27.9 से बढ़कर 32.4 हो गई है।

शिशु मृत्युदर दर में कमी:


सर्वे(NFH Survey—5) के आंकड़ों के अनुसार 5 वर्ष तक के शिशु मृत्यु दर में गिरावट (decrease in infant mortality rate) आई है।
2015-16 में शिशु मृत्यु दर 47 फीसदी थी। जो 2020-21 में घटकर 45.6 फीसदी हो गई है। अब अस्पतालों में महिलाएं प्रसव के लिए ज्यादा पहुंच रही है। रिपोर्ट के अनुसार संस्थागत प्रसव 2015-16 में 68.6 फीसदी से बढ़कर 83.2 फीसदी दर्ज की गई है।

देश में पहली बार पुरुषों से ज्यादा हुई महिलाओं की आबादी, प्रजनन दर में भी कमी ::—

देश के 23 राज्य ऐसे हैं, जहां प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की आबादी इससे ज्यादा है, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में प्रति 1 हजार पुरुषों पर 1017, बिहार में 1090, राजस्थान में 1009, छत्तीसगढ़ में 1015, झारखंड में 1050 महिलाएं हैं।
यहीं नहीं रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की प्रजनन दर में भी कमी आई है। सर्वे के मुताबिक, देश में प्रजनन दर 2 पर आ गई है.।
2015-16 में ये 2.2 थी।
बता दें, सभी 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ में 1.4 से लेकर उत्तर प्रदेश में 2.4 हो गई है।

सर्वे (NFH Survey—5)के अनुसार एनीमिया बना चिंता का विषय:

बच्चों और महिलाओं में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है. एनएफएचएस-4 की तुलना में सभी चरण-दो राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर गर्भवती महिलाओं द्वारा 180 दिनों या उससे अधिक समय तक आयरन फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों के सेवन के बावजूद आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) एनीमिया से ग्रस्त हैं। 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान कराने से अखिल भारतीय स्तर पर 2015-16 में 55 प्रतिशत से 2019-21 में 64 प्रतिशत तक सुधार हुआ है।