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हिमाचल और उत्तराखंड त्रासदी: अब भी सबक नही लिया तो झेलने पड़ेंगे गंभीर परिणाम

disaster in uttarakhand—Those 3 days never to be forgotten, a travelogue

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हिमाचल प्रदेश में बारिश और उसके बाद हुए भूस्खलन में कम से कम 75 लोगों की जान जाने के बाद वहाँ की सरकार ने वहाँ राज्य स्तरीय आपदा घोषित कर दी,उत्तराखंड में भी हाल कुछ मिलता जुलता ही है।


विशेषज्ञों की मानें तो हम प्रकृति को मार रहे हैं, वो हमें मार रही है. उनका मानना है कि अब वक़्त पहाड़ी राज्यों में प्रकृति की इस विनाश लीला पर शोक मनाने का नहीं है. अब वक़्त है जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्यवाही करने का। दरअसल वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम के लिए बदलती जलवायु और हमारी अक्रियाशीलता सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है।


चरम मौसम पर दिख रहे हैं जलवायु परिवर्तन की उँगलियों के निशान
इन विनाशकारी घटनाओं को बढ़ावा देने वाली मूसलाधार बारिश को जलवायु परिवर्तन से प्रभावित मौसम के पैटर्न में बदलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विशेषज्ञ इस भीषण भारी वर्षा के पीछे एक प्रमुख कारक के रूप में मानसून एक्सिस के उत्तर की ओर बढ़ने की ओर इशारा करते हैं। नेशनल सेंटर फ़ॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के मौसम विज्ञानी और अनुसंधान वैज्ञानिक डॉ. अक्षय देवरस के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने ऐसी घटनाओं की तीव्रता को बढ़ाने में एक निश्चित भूमिका निभाई है।
वो कहते हैं, “ग्लोबल वार्मिंग कि वजह से हवा में नमी या मौइश्चर रखने की ज़्यादा क्षमता बढ़ जाती है।बारिश के मौसम में गरम हवा में यह अपेक्षाकृत अधिक नमी भीषण बारिश की शक्ल में ऐसे ही तबाही मचा सकती है।”

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खतरे में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र
दुनिया के सबसे कमजोर पारिस्थितिक तंत्रों में से एक, हिमालय, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु के इन परिवर्तनों का खामियाजा भुगत रहा है। बढ़ते तापमान के कारण क्रायोस्फीयर – ग्लेशियर, बर्फ और पर्माफ्रॉस्ट – में अपरिवर्तनीय बदलाव हो रहे हैं, जिसका इन जल स्रोतों पर निर्भर डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।


इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों पर तेजी से गर्मी बढ़ने, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और अधिक अनियमित बर्फबारी के पैटर्न की चेतावनी दी है. जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जा रहा है, इन परिवर्तनों के दूरगामी परिणाम होंगे-जैव विविधता के नुकसान से लेकर जल असुरक्षा और प्रकृतिक आपदाओं के खतरे में वृद्धि तक।


जलवायु कार्रवाई: अब नहीं तो कब?
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में होने वाली विनाशकारी घटनाएं वैश्विक और स्थानीय जलवायु कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को एक बार फिर सामने रखती हैं. विशेषज्ञ वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए ठोस प्रयासों के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर तत्काल अनुकूलन और शमन रणनीतियों की वकालत करते हैं.
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल स्थानीय स्तर पर डिसास्टर-प्रूफिंग की आवश्यकता पर जोर देते हैं. वह कहते हैं, “स्थानीय स्तर पर जलवायु कार्रवाई और एडाप्टेशन वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर मिटिगेशन के समानांतर चलना चाहिए. हमें उप-जिलावार मूल्यांकन के आधार पर स्थानीय स्तर पर डिसास्टर-प्रूफ करने की आवश्यकता है।”


आगे, भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (अनुसंधान) और अनुसंधान निदेशक अंजल प्रकाश, जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं के परस्पर संबंध पर प्रकाश डालते हैं। उनका दावा है, “जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है, प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ रही है।” एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल शिवालिक रेंज की नाजुक प्रकृति पर जोर देते हैं। वह चेतावनी देते हैं, “बढ़ता मानवजनित तनाव केवल आपदा को जन्म देगा।”

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पर्यटन और पर्वतारोहण दांव पर
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम तात्कालिक सुरक्षा चिंताओं से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। इन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन और पर्वतारोहण क्षेत्रों को हिमस्खलन, भूस्खलन, बाढ़ और हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) जैसे बढ़ते खतरों के कारण पर्याप्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु प्रभावों का अंतर्संबंध जलवायु संबंधी आपात स्थितियों से निपटने के लिए एक व्यापक, एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करता है।


जैसे-जैसे मानसून के प्रकोप से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन इन क्षेत्रों की संवेदनशीलता को बढ़ा रहा है। तत्काल और निरंतर जलवायु कार्रवाई अब एक विकल्प मात्र नहीं है, बल्कि जीवन,आजीविका और हिमालय के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य है।

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