Exam result— राजकीय हाईस्कूल पोखरी के शिक्षक सोनू महरा को सलाम,35 रुपया प्रति बच्चे की गुरुदक्षिणा में गणित का परिणाम 95 प्रतिशत

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Exam result- Salute to Sonu Mehra, teacher of Government High School Pokhari

उत्तरा न्यूज, 07 जून 2022—परीक्षा परिणाम (Exam result)अब ग्लेमर या अंकों की बाजीगरी में उलझा दिया गया है। अच्छे अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी बेशक कुसाग्र होते हैं।

उन्हें उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं लेकिन जहां केवल और केवल प्राप्त अंकों के प्रतिशत पर चर्चा घूमती रहें वहां यह प्रश्न जरूर उठता है कि हम बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं कि प्रतिशत की चकरघिन्नी में घुमाने की साजिश में जाने अनजाने में शामिल हो रहे हैं।

Exam result
Exam result


इस वर्ष भी प्रदेश के सरकारी बोर्ड यानि उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाओं का परिणाम(Exam result) निकला है। सरकारी बोर्ड है तो जाहिर है कि कुछ विद्यालयों को छोड़कर समस्त विद्यालय सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त ही हैं। और यहां पढ़ने वाले बच्चे अपेक्षाकृत सामान्य परिवारों से हैं।

मैदान हो या पहाड़ इन विद्यालयों की स्थिति वर्तमान में कई प्रकार से कमजोर है या कमजोर बना दी गई है। शिक्षकों की कमी, मानकों के अनुरूप शिक्षक नहीं होना, एक शिक्षक के भरोसे कई कक्षाएं और अन्त में सीमित या कम हो रही छात्र संख्या का का बहाना, सवाल उठाने वालों का यह जन्म सिद्ध अधिकार हो गया है कि किसी ना किसी बहाने यहां के कार्मिकों या इन स्कूलों पर सवाल उठाए जाय।


लेकिन यदि हम इस स्कूलों की स्थापना और संचालनों की जटिलता की बात करें तो आज भी पहाड़ों में यह स्कूल शिक्षा की लाइफ लाइन हैं मैदानों में भी शिक्षा में इन विद्यालयों ने आर्थिक रूप से
सामान्य वर्ग को शिक्षा ग्रहण करने में बहुत बड़ी राहत दी है।

लेकिन मैदान में वह दुरहता नहीं है जो पहाड़ में है। पहाड़ में आज भी कई गांवों के बच्चें 2 से 5 किमी की दूरी तय कर स्कूल पहुंचते हैं। घरो के काम काज में सहयोग करते है। कहीं यह दूरी 8 किमी भी है। लेकिन इसके बाद जब यह मेहनती बच्चा स्कूल जाता है तो वहां लंबे समय से विषयाअध्यापक के पद को रिक्त पाता है। वहां कैसे वह परीक्षा में बिना शिक्षक के अपनी तैयारी कर पाएगा। इसे सिस्टम को सोचना हैं बधाई देने वालों भीऔर सरकारी स्कूलों को कोसने वाले भी एक बार थोड़ा सांस लें लें सोच लें ओर फिर गरियायें तो बहतर रहेगा।


हाई स्कूल तक के विद्यालय को उदहारण के तौर पर लें वहां गणित, संस्कृत और गृह विज्ञान में शिक्षक का पद रिक्त हो तो परिणाम(Exam result) कैसा होगा। उसके बाद भी यदि बच्चें संतोषजनक परिणाम ला रहे हैं तो उन्हें एकलब्य ही कहा जायगा।


सोशल मीडिया में अंको को सफलता का प्रतीक मानते हुए ​प​रीक्षा परिणाम (Exam result)आने से लगातार बधाइयों का सिलसिला जारी है। इस उत्साह या उत्तेजना के रौ में लोग सरकारी स्कूलों को कोसने का काम भी कर रहे हैं लेकिन एक बार भी वहां की मूलभूत व्यवस्थाओं का जिक्र मन ही मन कर लें तो शायद उनकी धारणा बदल जाएगी।


पिथौरागढ़ जिले में एक विद्यालय है राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पोखरी यहां स्थानीय स्तर पर एक गणित के शिक्षक की व्यवस्था की गयी है क्योंकि सरकारी स्तर पर नियमित पद पर लंबे समय से नियुक्ति नहीं हो पाई है। जिस शिक्षक की व्यवस्था की गई है उनका नाम है सोनू मेहरा(Salute to Sonu Mehra)।


यह बच्चों को गणित पढ़ाते हैं और बदले में हर बच्चा प्रतिमाह उन्हें 35 रुपया फीस(माफ कीजिएगा गुरुदक्षिणा) देता है। कई बच्चें इस धनराशि की व्यवस्था करने में भी असमर्थ है। उस कमी को स्कूल के शिक्षक और सहयोगी पूरा करते हैं। सोनू(Salute to Sonu Mehra) पूरे मनोयोग से पढ़ाते हैं। परिणाम यह है कि उनकी कक्षा में विद्यार्थियों का उत्तीर्ण प्रतिशत 95 है।

यानि कक्षा में गणित में 95 फीसदी बच्चें पास हुए हैं। लेकिन यहां शिक्षक को महिने में प्रति बच्चा 35 रुपये के हिसाब से कितना मानदेय मिलता होगा इसका आंकलन कर लीजिएगा सरकारी स्कूलों को कोसने से पहले। यहां यह बता दें कि विद्यालय में बच्चों की संख्या 168 है।


अब महंगाई के इस दौर में जहां मानदेय की राशि प्रति माह बामुश्किल 6 हजार की संख्या को छू रही हो वहां एक शिक्षक की कक्षा में 95 प्रतिशत बच्चों का उत्तीर्ण होना क्या बड़ी उपलब्धि नहीं है, क्या इस स्कूल के सभी छात्रों को एकलब्य की तरह मेधावी या एकाग्र नहीं माना जाना चाहिए या बधाई व शुभकामनाओं के दौर में एक बधाई मिलनी चाहिए या नहीं यह सब सोचने, समझने और महसूस करने की चीज है।


सोशल मीडिया में विद्यालय के शिक्षक कंचन जोशी ने एक पोस्ट की है। उसे हम यहां ज्यों का त्यों उतार रहे हैं। आप भी पढ़िए और आत्मचिंतन कीजिए।


‘इस बार हाईस्कूल में हमारे स्कूल रा0उ0मा0वि0 पोखरी में 30 बच्चे थे, पर स्वास्थ्य कारणों से 02 ने परीक्षा नहीं दी। 28 बच्चों ने परीक्षा दी, 26 उत्तीर्ण हैं। गणित और गृहविज्ञान में 01-01 विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हैं। हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान,सामाजिक विज्ञान, संस्कृत का परीक्षा परिणाम 100% है। ये गौरतलब है कि हमारे विद्यालय में गणित ,संस्कृत और गृहविज्ञान में शिक्षक पद रिक्त है। 09 बच्चे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हैं, अधिकतम अंक 78.4% हैं।


मेरे अपने विषय अंग्रेजी में परीक्षा परिणाम 100% है। 28 में से 14 बच्चों के 60 से अधिक अंक हैं। 05 बच्चे विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण हैं और 02 बच्चों के अंक 85 से अधिक हैं। कमोबेश यही हाल अन्य विषयों का भी है। सबसे शानदार प्रदर्शन हमारे Sonu Mahara सर का है,जो प्रत्येक बच्चे को केवल 35 रुपये/प्रतिमाह के मानदेय पर गणित पढ़ाते हैं और उनका परिणाम 95% है। हमारे विद्यालय में गणित शिक्षक नहीं हैं,इसलिए वे ही बच्चों के खर्च पर गणित पढ़ाते हैं।


यह सारी मेहनत इन साधनहीन,श्रमशील ग्रामीण बक्वहों की है। क्योंकि इनमें से कई बच्चे पढ़ने के लिए 10 किमी0 से ज्यादा रोज चलते हैं। खेतों और घर का काम भी करते हैं। हमारे स्कूल में साधन संपन्न होने का अर्थ है कि आप बस पूरी किताब ,कॉपियाँ और सामूहिक खर्च पर रखे गणित अध्यापक के लिए महीने के 35 रुपये जुटा सकें। कमोबेश यही हालत पहाड़ के सभी दूरस्थ विद्यालयों की है।

हमारा विद्यालय कोई अपवाद नहीं। हम इस कार्य की सरकार से तनख्वाह लेते हैं औऱ पढ़ाना हमारा दायित्व भी है।साथ ही मैं अंकों की दौड़ में बच्चों को घोड़े बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ। पर यह सब इसलिए लिखना पड़ रहा है कि कल उत्तराखंड बोर्ड का रिजल्ट आने के बाद सोशल मीडिया के कई विद्ववानों के बीच सरकारी शिक्षकों के वेतन और रिजल्ट के आधार पर लानत मलानत का दौर शुरू हो जाएगा।


एक सरकारी अध्यापक के तौर पर मुझे इस बात का संतोष है कि हम उन विद्यार्थियों तक अपना 100% पहुँचा पा रहे हैं जो पैसे से खरीदी जा चुकी इस शिक्षा व्यवस्था में अस्पृश्य करार दिए जा चुके हैं। ऐसे सभी साथियों की मेहनत को सलाम जिनके बच्चे प्रदेश की योग्यता सूचि में नहीं हैं, पर ये वो बच्चे हैं जिनके अध्यापकों की बदौलत ही उनकी शिक्षा जारी है।’