नसीहत— बोर्ड परीक्षाओं का तनाव ब दबाव कर सकता है बीमार

Newsdesk Uttranews
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लाल सिंह वाणी का विश्लेषण

लाल सिंह वाणी शिक्षक



— कक्षा दस व बारह की बोर्ड परीक्षा के निकट आते ही छात्रों के व्यवहार में अनेक प्रकार के परिवर्तन दिखने लगते हैं। कुछ बच्चों को लगता है कि उनको सब कुछ अच्छी तरह याद है, परीक्षाऐं ठीक से निपट जाएंगी लेकिन सबको को ऐसा नहीं लगता। परीक्षाओं में अधिक अंक लाने के दबाव के चलते वे रात-दिन पढ़ाई में जुटे रहते हैं तथा खाने-पीने पर कम ध्यान देते हैं। लगातार पढ़ाई में जुटे रहने से सिर दर्द, थकान भी हो सकता है। अतः छात्रों को बीच-बीच में कुछ अन्तराल पर आराम भी करना चाहिये। कुछ समय के लिये संगीत सुनने व टहलने के लिये घर से बाहर जाने से मन पुनः ताजा हो जाता है और पढ़ी गयी विषयवस्तु याद भी हो जाती है। परीक्षा के दौरान स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिये। ठंड के मौसम में खान-पान पर विशेष ध्यान देने के अलावा होली व दूसरे त्योहारों के दौरान भीगने से बचना चाहिये। माता-पिता को परीक्षाओं के दौरान घर में शान्तिपूर्ण माहौल बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। इस दौरान यदि बिजली नहीं रहती है तो छात्रों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। पास-पड़ोस में चलने वाले समारोह में जोर-जोर से बज रहे लाउडस्पीकर की वजह से भी परीक्षाओं की तैयारी में बड़ी बाधा पहुंचती है। अतः समाज के हर व्यक्ति को छात्रों की सुविधा का ध्यान रखना चाहिये।

छात्रों ने प्रश्न पत्र अच्छी तरह पढ़ने के बाद उत्तर लिखना चाहिये। यदि कोई प्रश्न गलत भी हो गया तो भी घबराना नहीं चाहिये। उसे एक तिरछी लकीर देकर काट देना चाहिये। जो प्रश्न अच्छी तरह आते हैं उन्हें पहले हल करना चाहिये व कठिन को बाद में। यदि कोई प्रश्न पत्र खराब भी हो गया हो तो उम्मीद करनी चाहिये कि अगला प्रश्न पत्र अच्छा जायेगा। परीक्षा के दौरान कक्ष निरीक्षक या उड़नदस्ते द्वारा तलाशी लेना आम बात है। इससे घबराना नहीं चाहिये वरन अपने काम पर ध्यान देना चाहिये। परीक्षाऐं ठीक-ठाक निपट जाने पर छात्रों के साथ माता-पिता भी राहत की सांस लेते हैं। इस दौरान बच्चों को घुमाने के लिये बाहर ले जा सकते हैं ताकि वे परीक्षाओं की थकान से उबर सकें।

फिर सबको बेसब्री से उस दिन का इन्तजार रहता है जब परीक्षाफल घोषित होना होता है। कुछ को मेरिट में स्थान पाने की उम्मीद होती है तो कुछ को अच्छे परीक्षाफल की। लेकिन अंक कम या अधिक जितने भी आयें, उनको लेकर तनाव नहीं पालना चाहिये। कम अंक लाने वाले छात्र भी सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं। यदि दसवीं में अपेक्षित परीक्षाफल नहीं आता है तो छात्रों ने और अधिक परिश्रम करके बारहवी में अच्छा परीक्षाफल लाने की ठाननी चाहिये। इसी तरह यदि बारहवी में अपेक्षित परीक्षा परिणाम नहीं आता है तो छात्रों ने स्नातक स्तर पर अच्छा परीक्षाफल हासिल करने की ठाननी चाहिये न कि हार माननी चाहिये। जो एक बार ठान लेगा कि उसे अगली बार अच्छा करना है वह अवश्य ही कामयाब इंसान बन जाता है।

जो छात्र दसवी में उत्तीर्ण हो जाते हैं उन्हें इण्टरमीडिएट स्तर पर वाणिज्य, विज्ञान या कला में से कोई एक शाखा चुननी होती है। बच्चों की क्षमता का आकलन किये बगैर पर उन पर माता-पिता का विज्ञान वर्ग के साथ गणित लेने का खाशा दबाव होता है। यदि स्नातक स्तर पर मन माफिक विषय नहीं मिल पाते हैं तो भी निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि प्रत्येक विषय भविष्य निर्माण में समान रूप से मददगार होता है, बस यह अपने परिश्रम पर निर्भर होता है। माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों की रूचि व क्षमता का भी ध्यान रखें अन्यथा बच्चा पढ़ाई का आनन्द नहीं ले पायेगा। वह उसे बोझ समझने लगेगा।