उत्तराखंड की जनता आज चुन रही है एमपी: विकास, राष्ट्रवाद और स्थानीय मुद्दों के बीच फंसा जनादेश

उत्तरा न्यूज टीम
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देवभूमि उत्तराखंड आज लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपने मताधिकार का प्रयोग करेगी। राज्य की पांचों सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन अन्य दल और निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लगभग 83 लाख मतदाता यह तय करेंगे कि अगले पांच सालों तक उनकी आवाज संसद में कौन उठाएगा।

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चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने जमकर प्रचार किया और एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। भाजपा ने राष्ट्रवाद, विकास और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को प्रमुख मुद्दा बनाया, जबकि कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों, बेरोजगारी, महंगाई और राज्य सरकार की नाकामियों पर ध्यान केंद्रित किया।

भाजपा ने अपने ‘पन्ना प्रमुख’ अभियान के जरिए घर-घर जाकर लोगों से संपर्क किया और उन्हें वोट देने के लिए प्रेरित किया। पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राजनाथ सिंह जैसे स्टार प्रचारकों की रैलियों के माध्यम से भी जनता तक पहुँचने की कोशिश की। वहीं कांग्रेस ने प्रियंका गांधी और सचिन पायलट जैसे स्टार प्रचारकों के सहारे चुनाव प्रचार किया।

हालांकि, राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पहाड़ों से पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, खराब सड़कें, बिजली-पानी की समस्या जैसे स्थानीय मुद्दे मतदाताओं के मन में हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन मुद्दों पर कौन सी पार्टी लोगों का भरोसा जीत पाती है। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में विकास की कमी और पलायन का मुद्दा लोगों को प्रभावित कर सकता है।

उत्तराखंड में लंबे समय से भाजपा और कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2009 में कांग्रेस ने सभी सीटों पर कब्जा जमाया था। इस बार देखना होगा कि क्या भाजपा अपना विजय रथ जारी रख पाती है या कांग्रेस वापसी करने में कामयाब होती है। हालांकि इस बार कुछ अन्य दल और निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।

बता दें गढ़वाल मंडल के हरिद्वार, गढ़वाल और टिहरी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है। वही कुमाऊं मंडल के नैनीताल-ऊधमसिंह नगर और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीटों पर भी मुकाबला कांटे का है।

इस चुनाव में राज्य के सर्विस वोटर की रिकॉर्ड भागीदारी देखी गई, जो इस वर्ग के मतदाताओं की जागरूकता को दर्शाता है। चुनाव आयोग ने दिव्यांग और 85 साल से ऊपर के मतदाताओं के घर जाकर उनके वोट पड़वाने की व्यवस्था भी की थी।

उत्तराखंड की जनता आज अपने मताधिकार का प्रयोग कर तय करेगी कि राज्य का भविष्य कैसा होगा। सभी की निगाहें इस चुनाव के नतीजों पर टिकी हैं। यह चुनाव न केवल उत्तराखंड के लिए बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह 18वीं लोकसभा के गठन की दिशा में पहला कदम है और इसके नतीजे आगे के चुनावी चरणों के माहौल को प्रभावित करेंगे।