Lok Sabha Election-क्यों खास है रायबरेली सीट,इमरजेंसी से है यह ताल्लुक

Newsdesk Uttranews
6 Min Read

उत्तरप्रदेश में अमेठी और रायबरेली की सीटो की चर्चा सबसे ज्यादा की जाती है। देश में मोदी लहर के बाद भी राज्य की यही वो सीट थी जहां साल 2019 में कांग्रेस को जीत मिली थी।

new-modern


साल 1957 में अस्तित्व में आई ये रायबरेली सीट काफी हाई प्रोफाइल मानी जाती है। आपको बता दें की साल 1951-52 के दौर में जब पहले लोकसभा चुनाव हुए तब रायबरेली और प्रतापगढ़ को मिलाकर एक लोकसभा सीट थी। इस चुनाव में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते,फिर साल 1957 में रायबरेली अलग सीट बन गई, लेकिन फिर भी फिरोज गांधी का वर्चस्व इस सीट पर बरकरार रहा। सांसद बनने के महज 3 साल बाद फिरोज गांधी का निधन हो गाय और साल 1962 में रायबरेली सीट के लिए उप चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी बैजनाथ कुरील ने जनसंघ के प्रत्याशी तारावती को हरा दीया।


फिरोज गांधी के निधन के चार साल बाद साल 1966 में इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। इसी के साथ साल 1967 में इंदिरा ने रायबरेली सीट से ही अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की जहां उन्हें जीत भी हासिल हुई।


देश में इसलिए लगी इमरजेंसी
साल 1971 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए इस बार भी कांग्रेस की तरफ से इंदिरा मैदान में थी और उनके विपक्ष में सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण थे। इस चुनाव में इंदिरा को 1,83,309 और राज नारायण को 71,799 वोट मिले लिहाजा इसके बाद इंदिरा पर सरकारी तंत्र का दुरुपयोग और चुनाव में हेराफेरी का आरोप लगाते हुए राजनारायण ने इस चुनाव के नतीजों को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी।


राज नारायण की चुनाव याचिका पर फैसला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इंदिरा ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अपना इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया, फिर कुछ दिन बाद ही इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी
लागू कर दी जिसका जिम्मेदार आज तक इसी घटना को माना जाता है।


साल 1971 के बाद देश में अगले चुनाव साल 1977 में हुए जिसके बाद इंदिरा को रायबरेली सीट से बड़ा झटका लगा। इस चुनाव में इंदिरा हार गई उन्हें भारतीय लोक दल के प्रत्याशी राज नारायण ने 55,202 वोटों के अंतर से हराया इसके बाद इंदिरा कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से उप-चुनाव लड़ी और जीती।


इंदिरा ने रायबरेली सीट से दिया था इस्तीफा
साल 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी कांग्रेस उम्मीदवार बनकर रायबरेली सीट से सामने आई आपको बता दें की इसी साल इंदिरा आंध्र प्रदेश की तत्कालीन मेंडक और आज की तेलंगाना सीट भी जीती। इस चुनाव के बाद उन्होंने रायबरेली से इस्तीफा दे दिया और मेंडक से सांसद बन गई।
इस वजह से रायबरेली में दोबारा चुनाव कराए गए जिसमें नेहरू गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले अरुण नेहरू को प्रत्याशी बनाया गया और अरुण नेहरू ने यहां से जीत हासिल ही नहीं की बल्कि इस जीत को साल 1984 तक बरकरार रखा। साल 1989 में भी इस सीट पर नेहरू गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाली शीला कौल ही जीती।


कांग्रेस की जमानत भी हो गई थी जब्त
साल 1996 में रायबरेली सीट से शीला कौल ने अपने बेटे विक्रम कौल को उम्मीदवार बनाया लेकिन ये कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती साबित हुई क्योंकि इस चुनाव में जीतना तो दूर कांग्रेस मैदान से ही बाहर हो गई। इस चुनाव में सुनील कौल को 25,457 वोट मिले जो कुल पड़े वोट का महज 5.29 थे इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुनील कौल की जमानत तक जब्त हो गई थी। इस चुनाव में भाजपा के अशोक सिंह ने बाजी मारी और वो रायबरेली से सांसद बन गए। इसके बाद साल 1998 के आम चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह का दम-खम बरकरार रहा। साल 1998 के इस चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार शीला कौल की बेटी दीपा कौल थी और साल 1996 के चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस प्रत्याशी दीपा की जमानत जब्त हो गई।
कांग्रेस की लगातार 2 बार हार के बाद साल 1999 के लोकसभा चुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा ने इस सीट पर कांग्रेस को एक बार फिर जीत दिलाई।


सोनिया ने बरकरार रखा गांधी परिवार का दबदबा
साल 2004 के चुनाव से सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट पर एंट्री ली और फिर इस सीट पर उनकी जीत का सिलसिला लगातार बना रहा साल 2004, के बाद 2006 के उपचुनाव, 2009, 2014 और 2019 में भी सोनिया गांधी ने लगातार पांच जीत हासिल की 2014 के चुनाव में जब देश में हर जगह मोदी लहर का असर दिखा था तब भी सोनिया गांधी ने यहां से 3,52,713 मतों के अंतर से बीजेपी के अजय अग्रवाल को हराया था।