कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी अल्मोड़ा लोकसभा सीट,जानें बीजेपी ने कैसे पलटा इतिहास?

Newsdesk Uttranews
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हेमराज सिंह चौहान


उत्तराखंड में पांच लोकसभा सीटों में चुनाव पहले चरण में 19 अप्रैल को होगा। उत्तराखंड की अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ सीट पर एक बार फिर सबकी नजरें हैं। कभी ये सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थ, लकिन राम मदिर के आंदोलन के बाद इस सीट पर हुए चुनाव में बीजेपी आज तक सिर्फ एक चुनाव हारी है। इस बार भी बीजेपी को इस सीट पर मजबूत माना जा रहा है। बीजेपी को इस सीट पर हैट्रिक लगाने का पूरा भरोसा है। ये सीट साल 2009 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बीजेपी ने यहां से लगातार चौथी बार अजय टम्टा को टिकट दिया है,जो इस बार हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरेंगे।


कांग्रेस ने प्रदीप टम्टा पर लगाया दांव
कांग्रेस ने अल्मोड़ा संसदीय सीट से प्रदीप टम्टा को टिकट दिया है,वो साल 2009 में यहां से पहली बार लोकसभा चुनाव जीते थे,इसके बाद से वो पिछले दो बार से चुनाव हार रहे हैं. साल 2019 के चुनाव में उन्हें अजय टम्टा ने 2.32 लाख वोटों से मात दी थी। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा को इस चुनाव में 4,44651 लाख वोट मिले थे, वहीं प्रदीप टम्टा को 211665 लाख वोट मिले थे। चौथी बार लोकसभा चुनाव में एक बार फिर ये दोनों आमने सामने हैं।


मुरली मनोहर जोशी जीत चुके हैं चुनाव
भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य डॉ मुरली मनोहर जोशी जो मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले है। बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल मुरली मनोहर जोशी इस सीट से साल 1977 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने कांग्रेस के नरेंद्र सिंह बिष्ट को इस चुनाव में हरा दिया। हालांकि इसके बाद साल 1980 में हरीश रावत ने मुरली मनोहर जोशी को हराकर सबको चौंका दिया था, वो यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीत।

राम मंदिर के आंदोलन के बाद बीजेपी की लहर में हरीश रावत साल 1991 में जीवन शर्मा से चुनाव हार गए। इसके बाद वो यहां से कभी चुनाव नहीं जीत सके। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को यहां से चार चुनाव में मात मिली। यहां तक कि साल 2004 के चुनाव में उनकी पत्नी रेणुका रावत को भी यहां से हार का मुंह देखना पड़ा। साल 2004 में ये सीट आरक्षित हो गई और तबसे बीजेपी अजय टम्टा और कांग्रेस हरीश रावत के नजदीकी माने जाने वाले प्रदीप टम्टा को मौका दे रही है।


साल 1957में हुआ पहला आम चुनाव
उत्तराखंड का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर कहे जाने वाले अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर पहला आम चुनाव साल 1957 में हुआ। जंग बहादुर सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के टिकट पर ये चुनाव जीता।इसके बाद साल 1971 तक कांग्रेस ने लगातार इस सीट पर चुनाव जीते। पार्टी के टिकट पर हर गोविंद पंत,जंग बहादुर बिष्ट,नरेंद्र सिंह बिष्ट ने यहां से चुनाव जीता। इस सीट पर आमतौर पर इस दौरान काफी कम मतदान हुआ जो 30 फीसदी से भी कम रहा।साल 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव मे पहली बार कांग्रेस को शिकस्त मिली. हालांकि तीन साल बाद कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया और हरीश रावत ने यहां से जीत की हैट्रिक लगाई।इस सीट पर अब तक कुल 16 लोकसभा चुनाव हुए है. इसमें से 10 बार कांग्रेस को जीत मिली है।


नेपाल-चीन से लगी है इस संसदीय सीट की सीमाएं
अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ संसदीय सीट की बात करें तो ये चार जिलों अल्मोड़ा, पिथोरागढ़, बागेश्वर और चंपावत से मिलकर बनी है।पिथोरागढ़ और बागेश्वर जिलों की सीमाएं चीन, नेपाल और तिब्बत से मिलती हैं।इस नजरिए से ये लोकसभा क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। आजादी से पहले अंग्रेजों और फिर चंद शासकों ने अल्मोड़ा से कुमाऊं और यहां तक कि गढ़वाल के कुछ हिस्सों में शासन चलाया। यहां से भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत, बिपिन चंद्र जोशी जैसी शख्सियतों का संबंध हैं. इस संसदीय क्षेत्र के अंदर 14 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें से 9 में बीजेपी का और 5 सीटो पर कांग्रेस का कब्जा है।


अल्मोड़ा सीट में है इतने वोटर
अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ संसदीय सीट पर 13,59815 लाख मतदाता हैं। इसमें से 6,50677 लाख पुरुष मतदाता और 6,79943 लाख महिला मतदाता हैं। वहीं कुल जनसंख्या की बात करें तो साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी लगभग 16,25,491 है। इस संसदीय क्षेत्र की 90 फीसदी आबादी आज भी गांवों में रहती है। इस सीट पर ठाकुर सबसे ज्यादा 55 फीसदी है। वहीं इसके बाद 23 फीसदी ब्राह्मण हैं,इस सीट पर करीब 20 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग,दो फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं,ये सीट उत्तराखंड की पांच सीटों में से एकमात्र आरक्षित सीट है।