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Snake- सांपो के बारे में क्या आप यह जानते है, पढ़िये कुछ रोचक तथ्य

Newsdesk Uttranews
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सुमित कुमार

सांप यानि Snake ’ यह नाम सुनने ही लोगों के मन में भय क्यों अनुभव होने लगता है जबकि साँपों की अधिकांश प्रजातिया विष विहीन हैं। इस आलेख में आपको सांपो के सीधेपन से अवगत कराते हुए उनकी उपयोगिता के बारे में भी बताया जायेगा।

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विषविहीन सर्प (non venomous snake)

भारत में पनिया, घोड़ा-पछाड़, गेहुँआ, मटिया, गिलहरिया, हरा धौरिया, सीता की लट (बफ़ स्ट्रिप्ड कीलबेक) एवं अजगर (python) इत्यादि सर्प पूर्णतया विषविहीन होते हैं जो यदि अपनी प्राणरक्षा के प्रयास में किसी को काट भी लें तो भी कोई हानि नहीं होने वाली, काटने की जगह पर बस दर्द हो सकता है।

सीता की लट (बफ़ स्ट्रिप्ड कीलबेक) 


विषैले सर्प(venomous snake
)

कोबरा, करैत, रसैल वाइपर एवं सॉ स्केल वाइपर साँप (Snake) जैसी कुछ ही प्रजातियाँ हैं जिनमें विष होता है फिर भी कोई साँप कभी सरलता से अपनी ओर से आक्रमण नहीं करता।

रसैल वाइपर


‘सांप ( Snake) आक्रमण कब करते हैं? अन्य जीवों के समान साँप भी आत्मरक्षा के लिये, अनजान जगहों पर लोगों से घिर जाने पर, रास्ते में कोई बाधा आ जाने पर ही आक्रमण किया करते हैं जिनमें उनका उद्देष्य अपना बचावमात्र करना होता है, सामने वाले मनुष्य को मारना नहीं क्योंकि मनुष्य उनकी आहार-सूची में सम्मिलित नहीं है तथा वैसे भी अधिकांष साँप इतने बड़े नहीं होते तो मनुष्य को निगल सकें तो फिर बिना बात के क्यों काटेंगे? चूहों व पक्षियों को तो इसलिये काटते हैं ताकि उन्हें निगलने में अथवा ज़हर से अचेत करके आहार बनाने में सरलता हो जाये।

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सर्पदंष की आषंका होने पर क्या करें?

झाड़-फूँक, तन्त्र-मन्त्र आदि के बजाय सीधे स्थानीय जिला चिकित्सालय अथवा अन्य ऐसे स्थान पर पहुँचें जहाँ सर्पविषविरोधी (Anti-venom) औषधिः एण्टिवेनम इन्जेक्शन उपलब्ध हो जिसमें विभिन्न प्रसिद्ध साँपों के ज़हरों को एकत्र करके उनकी तैयार काट(antidot) होती है, अर्थात् सर्पविषों (वेनम्स) का तोड़- प्रतिसर्पविष (एण्टिवेनम) बिना समय बिताये हो सके तो काटकर जा रहे साँप की फ़ोटो खींच लें ताकि जांच में चिकित्सक को सरलता हो, हो सकता है कि वह अधिक विषैला हो अथवा अधिकांश मामलों जैसे उसमें विष हो ही ना एवं आप बिना चिंता किये हंसते-मुस्कुराते तुरंत घर जा सकते हों।

अपने कार्यालय-मोहल्ले में ऐसे कागज़ किसी दीवार पर लटकायें जिनमें आपातकालीन स्थितियों में सम्पर्क किये जाने वाले दूरभाष-क्रमांक सम्मिलित हों, जैसे कि स्थानीय सर्पविषेषज्ञ एवं प्रतिसर्पविष की उपलब्धता वाले चिकित्सालय ताकि यदि सर्प भीतर आकर बैठ गया हो व शीघ्र बाहर न निकल रहा हो तो सर्प पकड़ने वालों को बुलाया जा सके एवं यदि साँप ने काट लिया हो तो तुरंत सम्बन्धित चिकित्सालय जाया जा सके।


मनोदैहिक प्रभाव(Psycho-physical effect) मन में सोचने से तन,देह पर प्रभाव पड़ने को मनोदैहिक अथवा मनो शारीरिक अथवा मनोजैविक (psychobiological) प्रभाव कहा जाता है।

ऐसे प्रकरण सामने आते रहते हैं जब काटकर गये सांप ( Snake) में ज़हर नहीं था फिर भी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी, ऐसा इसलिये होता हैं क्योंकि लोगों के मन में साँपों की छवि ‘ज़हरीली’ बनाकर रखी गयी है कि साँप देखते-से ही लोग उसे विषैला समझ बैठते हैं इस कारण उनका रक्तचाप बढ़ना, अचानक हृदय-रुधिरपरिसंचरण अनियमित होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है एवं बिना बात के ही घबराकर व्यक्ति स्वयं ही अपनी स्थिति को बिगाड़ लेता है एवं मानसिक आघात का असर शरीर पर पड़ता है


पयोगिताएं-

  1. सांप( Snake) किसानों का सच्चा साथी है एवं अनाज-गोदामों को चूहों के प्रकोप से बचाने में बड़ी भूमिका निभाता है, अन्यथा सबको पता है कि यदि चूहे बढ़े तो अनाज की बर्बादी इतनी ख़तरनाक हो सकती है कि अनाज अभूतपूर्व रूप से महंगा हो जाये।
  2. सांपों के बिलों से भूमि की जल-संधारण क्षमता बनी रहती है जिससे भूमि अधिक जल अवषोषित कर पाती है।
  3. पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-system) के रक्षकः यदि साँप न हो तो वनस्पति-भक्षी/शाकाहारी प्राणियों गिलहरियों, मूषकों, पक्षियों की संख्या इतनी अधिक हो सकती हैं कि नये पौधों का उगना व बीजों का बनना मुश्किल हो जाये। इस प्रकार सर्प-महत्त्व हमारी समझ से भी अधिक व्यापक है।
  4. भोले-भाले सापों को बिना बात के ही इतना बदनाम कर दिया गया है कि ‘सांप सूंघ जाना’ मुहावरा तक गढ़ लिया गया जिसमें व्यक्ति बुरी तरह डरकर निष्क्रिय हो जाता है। इस आलेख को पढ़कर आशा है कि अब आप साँपों की निरपराधिता को समझेंगे एवं उन्हें मार या मरवा देने का विचार नहीं करेंगे।