उत्तरा न्यूज डेस्क— पहाड़ के रीति रिवाज और मान्यताएं तो अपनी जहग पर विशिष्ट हैं ही यहां किसी वस्तु या काम की चीज पर हक जताने की परंपराए भी खास हैं. जंगल में गिरा पेड़,टहनी या कोई पत्थर ही क्यों ना हो उसे जिसने पहले देखा है यदि उस पर वह अपना हक जताना चाहता है तो एक पत्थर का टुकड़ा ही काफी है. यकीं मानिए उस वस्तु को कोई दूसरा नहीं हथिया सकता .
पहाड़ में किसी पेड़ या काम की चीज पर अपना हक जताना शब्द को हथियाना कहा जाता है.पहाड़ों के गांवों,जंगलों या अन्य स्थानों पर आपने भी कई बार ऐसे टूटे पेड़ देखें होंगे जिन पर एक या दो पत्थर रखे दिखते हैं. बस मान लीजिए यह पेड़ किसी और की संपत्ति बन चुके हैं. यही पत्थर हक की गारंटी होते हैं और सभी इस हक का सम्मान करते हुए उसे छोड़ देतें है चाहे उसे उस पेड़ की कितनी भी जरूरत क्यों ना हो.
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भले ही यह एक सामान्य प्रक्रिया लग रही हो लेकिन यदि इसे समाज के वर्तमान दृष्टिकोण के हिसाब से देखा जाय तो यह ईमानदारी की पराकाष्ठा ही कही जाएगी जब इस प्रकार के नियम पूरे समाज के लिए मान्य होते हैं. अब यह केवल दूरदराज के गांवों में ही देखे जाते हैं.
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पहाड़ों में आज भी कई ऐसे नियम है जिन्हें जबरन या कानूनी रूप से मनवाना टेड़ी खीर है.भगवान के मंदिर को साक्षी मानना, वनो की रक्षा के लिए उसे भगवान को समर्पित कर देना,पानी के नौलों को मंदिर की संज्ञा देना या फिर घराटों से पिसे गेहूं के आटे का एक हिस्सा ईमानदारी से घराट संचालक के लिए रख देना यह सभी तत्कालिक समाज की जरूरत के हिसाब से बनाए गए लेकिन आज भी लोग पूरी ईमानदारी से इन नियमों का पालन करते हैं.
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किसी वस्तु पर अपना हक जताने की छोटी सी कोशिश और उसका पूरी ईमानदारी से पालन करने की प्रचलित मान्यताएं केवल पहाड़ में ही दिखेंगी.आज भी पहाड़ में इस प्रथा का पूरा पालन होता है.
फोटो— फेसबुक मित्र गजेन्द्र कुमार पाठक जी के फेसबुक वॉल से साभार
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