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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: आरटीआई के दायरे में आएगा सीजेआई दफ्तर, पढ़े पूरी खबर

Supreme Court rejected the petition of the dismissed employees of the Uttarakhand Legislative Assembly

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डेस्क। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने आज दिन में एक सुप्रीम फैसला सुनाया है। अब मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर (CJI office) भी सूचना अधिकार कानून के दायरे में आएगा। सीजेआई दफ्तर को सार्वजनिक कार्यालय बताते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई समेत जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पांच सदस्यीय पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत में अपने फैसले में कहा कि मुख्य न्यायाधीष का दफ्तर एक सार्वजनिक कार्यालय है। जो पारदर्शिता एवं सूचना का अधिकार (RTI) के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि सभी न्‍यायमूर्ति भी RTI के दायरे में आएंगे। फैसले में यह भी कहा कि पारदर्शिता और आरटीआइ के मसलों को निपटाने के दौरान न्‍यायिक स्‍वतंत्रता को भी ध्‍यान में रखना होगा। अदालत ने कहा कि कोलेजियम द्वारा सुझाए गए जजों के नामों का तो खुलासा किया जा सकता है लेकिन नाम सुझाए जाने के पीछे की वजहों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्‍यायालय के 10 जनवरी 2010 के उस फैसले को सुरक्षित रखा जिसमें कहा गया था कि सीजेआइ का दफ्तर आरटीआइ के दायरे में आता है। अदालत ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है वरन यह एक जिम्मेदारी है जो उसे सौंपी गई है। बता दे कि सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 में आए इस फैसले को चुनौती दी थी। नवंबर 2007 में आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आरटीआई याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी मांगी थी जो उन्हें देने से इनकार कर दिया गया। उनके वकील प्रशांत भूषण ने अदालत में आरटीआइ के दायरे में जजों को नहीं लाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सवाल उठाया था कि क्या न्यायाधीश किसी दूसरी दुनिया से आते हैं। अदालत के इस फैसले को सूचना अधिकार कानून को और अधिक मजबूती मिलने के लिहाज से एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

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