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वायु प्रदूषण के खिलाफ़ मज़बूत नीतियां बढ़ा सकती हैं जिंदगी,2 साल तक बढ़ सकती है मानव की उम्र

Newsdesk Uttranews
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निशांत सक्सेना
 

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जो स्वच्छ वायु नीतियां जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम और जलवायु परिवर्तन को संभालने में मदद कर सकती हैंवही नीतियां सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में लोगों के जीवनकाल में 5 साल तक जोड़ सकती हैंऔर विश्व स्तर पर जीवनकाल में औसतन 2 साल की बढ़त दिला सकती हैं।

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एक्यूएलआई की इस नई रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया धरती के सबसे प्रदूषित देशों को अपनी आगोश में समाए हैं। इसमें बसे बांग्लादेशभारतनेपाल तथा पाकिस्तान में पूरी दुनिया की आबादी के लगभग एक चौथाई हिस्से के बराबर लोग रहते हैं और यह देश दुनिया के 5 सबसे प्रदूषित मुल्कों में लगातार अपना स्थान बनाए हुए हैं।

रिपोर्ट की प्रमुख बात यह है कि यदि ये चार दक्षिण एशियाई देश WHO के मानक स्तरों का अनुपालन करते हैं तो यहाँ रहने वालों की औसत जीवन प्रत्याशा 5.6 वर्ष बढ़ जाएगी।

भारत को दुनिया में सबसे प्रदूषित देश के रूप में सूचीबद्ध किया गया है- 480 मिलियन लोग भारत के  इंडो-गैंजेटिक प्लेन (IGP) में रहते हैं जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर “परिमाण के क्रम में दुनिया में कहीं और पाए जाने वालों से अधिक” के रूप में सबसे अधिक प्रभावित है।

एक्यूएलआई के मुताबिक अनुमानित प्रभावों की तीव्रता संपूर्ण उत्तर भारत में कहीं ज्यादा है। यह वह इलाका है जहां वायु प्रदूषण के स्तर दुनिया में सबसे ज्यादा खतरनाक हैं। अगर वर्ष 2019 जैसा प्रदूषण संघनन जारी रहा तो इस क्षेत्रजिसमें दिल्ली और कोलकाता जैसे महानगर भी शामिल हैंमें रहने वाले लोग अपनी जिंदगी के 9 से ज्यादा साल खो देंगे।

रिपोर्ट के अनुसारअगर प्रदूषण का स्तर 2019 में जैसा थावैसा ही बना हुआ रहता है तो देश की यह 40% आबादीजिसमें दिल्ली और मुंबई जैसे मेगा शहरों के निवासी भी शामिल हैंअपने जीवन से 9 साल से अधिक समय गवा सकती है।

प्रदूषण अब इंडो-गैंजेटिक प्लेन (IGP) से आगे मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फैल गया है जहां लोग एयर क्वालिटी (वायु गुणवत्ता) के कारण 2.5-2.9 साल की जीवन प्रत्याशा खो सकते हैं।

धूम्रपान जैसे अन्य स्वास्थ्य जोखिमों की तुलना मेंवायु प्रदूषण जीवन प्रत्याशा को 1.8 वर्ष तक कम कर देता हैअनसेफ़ (असुरक्षित/ गन्दा ) पानी और स्वच्छता/ सफाई 1.2 साल तक और शराब और नशीली पदार्थों के सेवन से जीवन के लगभग एक वर्ष के जीवनकाल का नुकसान होना तय है ।

NCAP लक्ष्य राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा को 1.7 तक बढ़ाने में मदद कर सकते हैंजबकि दिल्ली के निवासियों के लिए 3.1 वर्ष।

एक खतरनाक संकेत यह है कि भारत में समय के साथ वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों का भौगोलिक दायरा बढ़ा है। पिछले कुछ दशकों से तुलना करें तो पार्टिकुलेट मैटर सिर्फ सिंधु-गंगा के मैदानों की ही समस्या नहीं रह गया है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में प्रदूषण के स्तर में काफी वृद्धि हुई है। उदाहरण के तौर पर इन राज्यों में वर्ष 2000 के शुरू के मुकाबले हर व्यक्ति की जिंदगी की अवधि में औसतन 2.5 से 2.9 साल अतिरिक्त कमी हो रही है।

एक्यूएलआई के निदेशक केन ली ने कहा “वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर दक्षिण एशिया पर बना हुआ है। यह एक बुरी खबर है। मगर अच्छी खबर यह है कि इस क्षेत्र के देशों की सरकारें अब इस समस्या की गंभीरता को समझ रही हैं और उसके निदान के लिए काम शुरू कर रही हैं। साफ हवा और लंबी जिंदगी सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन किया जाना महत्वपूर्ण कदम है।

दक्षिण एशिया में, AQLI डाटा से पता चलता है कि यदि WHO के दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए प्रदूषण को कम किया जाता हैतो औसत व्यक्ति का जीवनकाल 5 साल से अधिक समय तक बढ़ेगा। स्वच्छ वायु नीतियों का लाभ उत्तरी भारत जैसे क्षेत्र के प्रदूषण हॉटस्पॉट में और भी अधिक हैजहां दुनिया में कहीं और पाए जाने वाले प्रदूषण के स्तर से 10 गुना खराब प्रदूषण के स्तर में 480 मिलियन लोग सांस लेते हैं।

दक्षिण पूर्व एशिया मेंबैंकॉकहो ची मिन्ह सिटी और जकार्ता जैसे महानगरों में वायु प्रदूषण एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। यदि प्रदूषण के स्तर को WHO के दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए नियंत्रित किया जाता हैतो इन शहरों में औसत निवासी जीवन प्रत्याशा के 2 से 5 वर्ष प्राप्त कर सकते हैं। साथ हीमध्य और पश्चिम अफ्रीका मेंजीवन प्रत्याशा पर कण प्रदूषण के प्रभाव एचआईवी/एड्स और मलेरिया जैसे जाने-माने खतरों के बराबर हैंफिर भी उन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। उदाहरण के लिएनाइजर डेल्टा क्षेत्र मेंयदि प्रदूषण की प्रवृत्ति जारी रहती हैतो औसत निवासी लगभग 6 वर्ष की जीवन प्रत्याशा खोने की राह पर है।

AQLI के निदेशक केन ली कहते हैं, “पिछले साल की घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि वायु प्रदूषण कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसे अकेले विकासशील देशों को हल करना चाहिए। जीवाश्म-ईंधन संचालित वायु प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए हर मोर्चे पर ठोस नीतियों की आवश्यकता होती हैजिसमें विश्व जलवायु नेगोशिएटर (मध्यस्थ) शामिल हैं जो आने वाले महीनों में मिल रहे हैं। AQLI का नवीनतम डाटा ठोस स्वच्छ वायु नीतियों के लिए नेताओं और नागरिकों को लंबे जीवन के रूप में औचित्य देता है।

इस डेटा की मानें तो जब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण को कम नहीं किया जाता हैतब तक औसतन एक व्यक्ति के लिए अपने जीवन से 2.2 साल गंवाना तय है। दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों के निवासी अपने जीवन से 5 साल या उससे अधिक समय गवा सकते हैं।

चीन का माडल- चीन एक महत्वपूर्ण मॉडल है जो दिखा रहा है कि नीति शार्ट आर्डर (अल्प क्रम) में प्रदूषण में काफ़ी कमी ला सकती है। जब से देश ने 2013 में “प्रदूषण के खिलाफ युद्ध” शुरू किया हैचीन ने अपने कण प्रदूषण को 29 प्रतिशत तक कम कर दिया है— जो दुनिया भर में वायु प्रदूषण में आई कमी का तीन-चौथाई हिस्सा है। नतीजतनचीन के लोगों ने अपने जीवनकाल में लगभग 1.5 साल जोड़े हैंयह मानते हुए कि ये कटौती निरंतर रहती है। चीन की सफलता को संदर्भ में देखने के लिएचीन जितनी प्रदूषण में कमी लेन में 6 वर्षों में सक्षम रहासंयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप को वही हासिल करने में कई दशकों और मंदी की अवधियों का समय लगा।

चीन की सफलता दर्शाती है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में भी प्रगति संभव है।

मानव शरीर के अंदर अनदेखी कार्य करता हुआकण प्रदूषण का जीवन प्रत्याशा पर ट्यूबरक्लोसिस (तपेदिक) और HIV/AIDS (एचआईवी / एड्स) जैसी संचारी बीमारियोंऔर धूम्रपान (सिगरेट पीने) जैसे बिहेवियरल किलर्स (स्वभाव संबंधी जानलेवा रोग) और यहां तक कि युद्ध की तुलना में भी अधिक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

पिछले वर्ष के दौरानकोविड –19 लॉकडाउन दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में फिर से नीला आसमान ले आयाजबकि सूखे और गर्म जलवायु के कारण जंगल की आग ने हजारों मील दूर तक शहरों के आमतौर पर साफ रहने वाले आसमान में धुआं भर दिया।

ये असंगत घटनाएँ भविष्य के दो दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। दोनों भविष्यों के बीच का अंतर जीवाश्म ईंधन को कम करने की नीतियों में निहित है।

माइकल ग्रीनस्टोनजो कि अर्थशास्त्र में मिल्टन फ्रीडमैन विशिष्ट सेवा प्रोफेसर और शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) में सहयोगियों के साथ AQLI के निर्माता हैं कहते हैं- “वास्तव में एक अभूतपूर्व वर्ष के दौरानजहां गंदी हवा में सांस लेने के आदी कुछ लोगों ने स्वच्छ हवा का अनुभव किया और स्वच्छ हवा के आदी अन्य लोगों ने अपनी हवा को गंदा होते देखायह बिलकुल स्पष्ट हो गया कि नीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और स्थानीय वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन दोनों में योगदान देने वाले जीवाश्म ईंधन को कम करने में निभा सकती है। AQLI उन लाभों को प्रदर्शित करता है जो इन नीतियों से हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और हमारे जीवन को लंबा करने में मदद कर सकते हैं।”