मां की लाचारी को बनाया सौदा: भूख से जूझ रही महिला से तीन महीने के मासूम को छीनने की कोशिश

बुरहानपुर जिले के खकनार थाना क्षेत्र में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। देड़तलाई गांव में एक आदिवासी…

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बुरहानपुर जिले के खकनार थाना क्षेत्र में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। देड़तलाई गांव में एक आदिवासी महिला के तीन महीने के मासूम बेटे का सौदा करने की घिनौनी कोशिश की गई। इस दिल दहला देने वाली वारदात का वीडियो कैमरे में कैद हो गया, जो सुबह होते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और पूरे इलाके में सनसनी फैल गई।

बताया जा रहा है कि यह आदिवासी महिला अपने तीन बच्चों के साथ भूख और बेबसी की हालत में गांव आई थी। बच्चों का पेट भरने के लिए वह काम की तलाश में दर-दर भटक रही थी। इसी दौरान इम्तियाज़ पठान नाम के शख्स और उसके कुछ साथियों ने महिला की हालत का फायदा उठाने की कोशिश की। महिला को पहले बहलाया-फुसलाया गया, फिर लालच देकर उसके तीन महीने के दूधमुंहे बच्चे का सौदा करने की बात की गई।

वीडियो में जो दिखा, वो किसी भी संवेदनशील इंसान को अंदर से झकझोर देने वाला था। एक मां की बेबसी और उसकी गोद में पल रहे मासूम को जिस तरह एक सौदे की तरह देखा गया, उसने समाज के उस कड़वे सच को उजागर कर दिया जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

जैसे ही इस घिनौनी हरकत की सूचना पुलिस तक पहुंची, खकनार थाने की टीम तुरंत देड़तलाई गांव पहुंची। पुलिस ने महिला और उसके बच्चों को मौके से सुरक्षित रेस्क्यू कर वन स्टॉप सेंटर भेजा। साथ ही मुख्य आरोपी इम्तियाज पठान और उसके साथियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। एसपी देवेंद्र पाटीदार ने खुद मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू करने के आदेश दिए हैं।

इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या गरीबी और मजबूरी अब इंसान की गोद तक को खरीदने का जरिया बन चुकी है? क्या आदिवासी और गरीब समुदायों की महिलाओं के जीवन से अब कोई सरोकार नहीं बचा? और सबसे अहम बात, ऐसे इंसानियत के सौदागरों को आखिर पनाह कौन दे रहा है?

इस पूरी घटना ने प्रशासन को भी झकझोर दिया है। लेकिन असली सवाल तो यह है कि क्या कार्रवाई सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी, या ऐसे मामलों में दोषियों को सच में सख्त सजा दी जाएगी। क्योंकि अगर अब भी आंखें बंद रहीं, तो अगली बार किसी और मां की गोद उजड़ सकती है।

यह मामला सिर्फ एक महिला या एक गांव का नहीं है। यह उस सिस्टम की कहानी है, जिसमें गरीब की चीखें नक्कारखाने में तूती बनकर रह जाती हैं। जरूरत है अब ऐसे मामलों पर सिर्फ अफसोस जताने की नहीं, बल्कि ऐसी सख्त और निर्णायक कार्रवाई की, जो आगे किसी दरिंदे को ऐसा सोचने से पहले भी सौ बार डराए।