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बिजली पहुँच में वृद्धि के बावजूद जनजातीय घरों में प्रकाश के लिए मिट्टी के तेल पर बढ़ती निर्भरता

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निशांत सक्सेना

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एक हैरान करने वाले घटनाक्रम में पता चला है कि झारखंड में जनजातीय समुदायों में बिजली पहुंच में वृद्धि के बावजूद, जनजातीय घरों में ग्रिड के उपयोग में गिरावट और प्रकाश के लिए मिट्टी के तेल पर निर्भरता में वृद्धि हुई है।

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द इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (ISEP) ने आज पावर फॉर ऑल के सहयोग से एक वेबिनार में, झारखंड ग्रामीण ऊर्जा पहुंच: गुणवत्ता, विश्वसनीयता और बिलिंग में स्थायी चुनौतियां शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में राज्य में इन संकेतकों पर दो वर्षों के दौरान और कोविड-19 महामारी के बाद की प्रगति- या उनके अभाव – का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।

अध्ययन का पहला दौर जुलाई 2019 में आयोजित किया गया था और अनुवर्ती दौर, जिसमें से यह रिपोर्ट निष्कर्ष प्रस्तुत करती है, जुलाई 2021 में आयोजित किया गया। यह रिपोर्ट जमीनी स्तर पर घरेलू सर्वेक्षण और विशेषज्ञों से इनपुट के माध्यम से आयोजित की गई, नीचे दिए गए निष्कर्ष 2019-2021 के बीच से विद्युतीकरण दरों में परिवर्तन, खाना पकाने और प्रकाश व्यवस्था के लिए बायोमास ईंधन पर निर्भरता, ऊर्जा सेवाओं से संतुष्टि, ग्रिड और स्वच्छ खाना पकाने की पहुंच पर बाधाएं और कोयले पर निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं।

मोटे तौर पर, रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

· विद्युतीकरण दरों में थोड़ा सुधार, लेकिन सार्वभौमिक विद्युतीकरण पहुंच के बाहर रहता है: जनजातीय बिजली पहुंच में वृद्धि के बावजूद, जनजातीय घरों में ग्रिड के उपयोग में गिरावट और प्रकाश के लिए मिट्टी के तेल पर जनजातीय निर्भरता में वृद्धि: आदिवासियों के लिए बिजली की पहुंच 82% से बढ़कर 86% हो गई।

· बिजली आपूर्ति और मीटरिंग के घंटों में अच्छा सुधार, बिलिंग दक्षता और भुगतान संग्रह में कोई सुधार नहीं, और सौभाग्य के तहत प्रदान किए गए कनेक्शन के अनुपात में कमी आई है।

· बिजली की पहुंच के साथ संतुष्टि में मध्यम सुधार, लेकिन लागत और विश्वसनीयता के कारण पहुंच के प्रति बहुत अधिक बाधाएं: प्रकाश के अपने प्राथमिक स्रोत से संतुष्ट परिवारों का अनुपात 36% से बढ़कर 43% हो गई, आपूर्ति की विश्वसनीयता को एक बैरियर के रूप में हवाला देने वाले घरों का अनुपात भी 21% से बढ़कर 49% हो गया।

· प्रकाश के प्राथमिक स्रोत के रूप में सौर घरेलू प्रणालियों/सौर लालटेन के उपयोग में वृद्धि: प्राथमिक स्रोत के रूप में माइक्रोग्रिड या SHS/सौर लालटेन का उपयोग करने वाले परिवारों का अनुपात 3% से 5% तक बढ़ गया।

· PMUY के तहत LPG पहुंच और कनेक्शन में धीमा सुधार: LPG एक्सेस वाले परिवारों का अनुपात 53% से थोड़ा बढ़कर 56% हो गया, जबकि PMUY के तहत जुड़े लोगों का अनुपात 76% से 80% तक बढ़ गया।

डॉ. माइकल ऐकलिन, एसोसिएट डायरेक्टर, ISEP ने झारखंड सरकार को दी गई सलाहों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि सरकार को निम्नलिखित पर ध्यान देना चाहिए:

1. जनजातीय परिवारों पर विशेष ध्यान देते हुए, न केवल बिजली की पहुंच बल्कि लागत प्रभावशीलता और गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयासों को तेज़ करना।

2. मीटरिंग, बिलिंग की दक्षता और भुगतानों के संग्रहण को सुदृढ़ बनाना।

3. जहां संभव हो गुणवत्ता और किफायती सौर घरेलू प्रणालियों और सौर लालटेन, और माइक्रो-ग्रिड को अपनाने का समर्थन करना।

4. निरंतर उपयोग और ईंधन स्टैकिंग को समाप्त करना सुनिश्चित करने के लिए LPG की लागत प्रभावशीलता के आसपास संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना, और

5. कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए स्वच्छ और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों के सृजन में निवेश करें।

प्रो. जोहान्स उरपेलेनन, ISEP के संस्थापक निदेशक, ने विचार विमर्श कि, “झारखंड ने ऊर्जा की पहुंच में सुधार करने में अच्छी प्रगति की है, लेकिन ISEP में हमारे शोध से पता चलता है कि आदिवासी समुदाय राज्य के बाकी हिस्सों से पीछे हैं। लक्षित स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम राज्य भर के परिवारों की मदद कर सकते हैं।”

कीनोट एड्रेस (मुख्य भाषण) में डॉ. अरबिंद प्रसाद, IAS (आईएएस), पूर्व अध्यक्ष, JSERC ने कहा, “जैसे-जैसे देश स्वच्छ ऊर्जा के बढ़ते उपयोग की ओर बढ़ रहा है, न्यायसंगत संक्रमण का प्रश्न बहुत ज़रूरी हो जाता है। झारखंड के आदिवासी और दूरदराज के गांवों के अध्ययन पर आधारित ISEP रिपोर्ट, दोनों मुद्दों के नीतिगत आयामों को सामने लाती है: हाशिए के लोगों के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच और कोयला उद्योग में लगे लोगों के लिए वैकल्पिक रोज़गार।”

कुल मिलाकर, रिपोर्ट के निष्कर्ष राज्य के कोने-कोने तक ग्रिड की पहुंच में समग्र वृद्धि दर्शाते हैं, विश्वसनीयता, गुणवत्ता अभी भी ख़राब बनी हुई है। मुख्य रूप से कम लागत और सुरक्षा के कारण पिछले सर्वेक्षण के बाद से DRE और सोलर की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। LPG का निरंतर उपयोग रिफिल की लागत और समय के कारण एक चुनौती साबित होता है। अंत में, कम कोयला निर्भरता को बनाए रखने के लिए स्वच्छ और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों के निर्माण में निवेश करने की सख्त आवश्यकता है:

घटी हुई कोयला निर्भरता मौसमी प्रवास के पैटर्न, नियमित वेतनभोगी नौकरियों की कमी, आकस्मिक श्रम की व्यापकता और महामारी के बाद से वेतन में कमी के साथ-साथ मौजूद है। इस प्रकार, स्वच्छ नौकरियों में निवेश करने की स्पष्ट आवश्यकता है जो आय सुरक्षा प्रदान करें, और इसमें कोयला उद्योग के अनौपचारिक और संविदात्मक श्रमिकों को शामिल करना चाहिए- न कि केवल उद्योग में औपचारिक रोज़गार रखने वाले।

वेबिनार में प्रो. एस.के.समदर्शी, CUJ, सुश्री दीक्षा बिजलानी, वर्ल्ड बैंक और विजय शंकर, WRI जैसे राज्य के प्रमुख थिंक टैंकों के वक्ता भी थे, जिन्होंने झारखंड में ऊर्जा गरीबी को समाप्त करने और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए मौजूदा नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने और इन नई सलाहों को अपनाने के बारे में अपने विचार साझा किए।