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एक देश बारह दुनिया- असल भारतीय चेहरों पर रोशनी डालती किताब

Newsdesk Uttranews
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समीक्षक: रजनीश दुबे-

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वह कल मर गया
पिंजरेनुमा कोठरियों में जिंदगी
अपने देश के परदेसी
कोई सितारा नहीं चमकता
गन्ने के खेतों में चीनी कड़वी
सूरज को तोड़ने जाना है
मीराबेन को नींद नहीं आती!
वे तुम्हारी नदी को मैदान बना जाएंगे!
सुबह होने में देर हैं
दंडकारण्य यूं ही लाल नहीं है
खंडहरों में एक गाइड की तलाश
धान के कटोरे में राहत का धोखा

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ये बारह शीर्षक हैं देश की अलग-अलग जगहों से जुड़ी विसंगतियों के, जो पिछले दिनों आई शिरीष खरे की पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ में हैं।

इस पुस्तक की गंभीरता और इसमें लिखे शब्दों की चोट को पढ़ते हुए पाठक बीच-बीच में कुछ समय के लिए रुकता है, फिर उस बारे में सोचने के लिए मजबूर हो जाता है।

‘वे तुम्हारी नदी को मैदान बना जाएंगे!’ का ही उदाहरण लें तो इस रिपोर्ताज में नर्मदा जैसी जीवनदायी नदी के किनारे आने वाले नए संकटों को जब पाठक पढ़ता है, तो उसकी व्यथा लेखक द्वारा उठाए गए ज्वलंत प्रश्नों से उलझती जाती है, जहां एक नदी का किनारा सबकी आस्था का ढांचा तो है, मगर सरकारी सिस्टम के नजरिए से यह महज ज्यादाद रह गई है, जिसे सगे-सौतेले और सभी नाते-रिश्तेदार किसी तरह बस हड़प लेना चाहते हैं।

लेखक शिरीष ने अपनी कलम को कैमरा बनाया और जो देखा वह शब्दों में उतार दिया। बात करूंगा नर्मदा के उद्गम अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक लेखक की चिंता हम सब की साझी चिंता है, पर धन्य है हमारा सरकारी सिस्टम जो केवल धन कूटने वाले उद्योगपतियों को यह नदी बेच रहा है और हम आम लोगों को विकास की कहानी सुनाकर बहला रहा है।

पूरी पुस्तक अपने शीर्षक से कदमताल कराते हुए इस देश की बारह दुनियाओं की यात्रा और वहां के त्रासदीपूर्ण विवरणों से परिचय कराती है. यदि आप इससे नहीं पढ़ रहे हैं, तो आप किसी और दुनिया मे रह रहे हैं। इसलिए बस पढ़ लीजिए!

अंत में इस पुस्तक के लिए लेखक को धन्यवाद कहना सही शब्द नहीं लगता है, क्षमा मांगना ही सही लगता है, क्योंकि आज भी हम सब समझकर भी गलत होते हुए देख रहे हैं, पर कर कुछ नहीं पा रहे हैं और जो कुछ कर सकते हैं, वे कुछ समझना नहीं चाह रहे हैं। 

उपेक्षितों की आवाज
पिछले कुछ वर्षों में हमारे शहरों और दूरदराज के गांवों के बीच भौतिक अवरोध तेजी से मिट रहे हैं, तब एक सामान्य चेतना में गांव और गरीबों के लिए सिकुड़ती जा रही है. ऐसे में एक ग्रामीण पत्रकार शिरीष खरे की पुस्तक में देश के बारह जगहों के उपेक्षित लोगों की आवाजों को तरहीज दी गई है। इसमें लेखक ने सांख्यिकी आंकड़ों के विशाल ढेर में छिपे आम भारतीयों के असली चेहरों पर रोशनी डाली गई है. पुस्तक में देश के सात राज्यों के कुल बारह रिपोर्ताज शामिल किए गए हैं, जो वर्ष 2008 से 2017 तक की अवधि में भारत की आत्मा कहे जाने वाले गांवों से जुड़े अनुभवों को साझा किया गया है।

इस दौरान महाराष्ट्र में कोरकू जनजाति और तिरमली व सैय्यद मदारी जैसी घुमन्तु या अर्ध-घुमन्तु समुदाय बहुल क्षेत्रों, मुंबई, सूरत जैसे बड़े शहरों में बहुविस्थापन की मार झेलनी वाली बस्तियों, नर्मदा जैसी बड़ी और सुंदर नदी पर आए नए तरह के संकटों के अलावा छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजस्थान के थार और मराठवाड़ा के संकटग्रस्त गांवों के बारे में विस्तार से विवरण रखे गए हैं. लेखक अपनी प्रस्तावना में लिखते हैं कि उन्होंने अधिकांश पात्र और स्थानों के नाम ज्यों के त्यों रखे हैं।

लेखक परिचय
पिछले दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय शिरीष खरे वंचित और पीड़ित समुदायों के पक्ष में लिखते रहे हैं। राजस्थान पत्रिका और तहलका में कार्य करते हुए इनकी करीब एक हज़ार रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं। भारतीय गाँवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ और वर्ष 2009, 2013 और 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर स्टोरीज़ के लिए ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित शिरीष खरे की अभी तक दो पुस्तकें ‘तहक़ीकात’ और ‘उम्मीद की पाठशाला’ प्रकाशित हो चुकी हैं।

प्रतिक्रियाएं:
1. जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गाँवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है।’’
                                                 -हर्ष मंदर, सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक

2. ‘‘यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है।’’
                                                 – आनंद पटवर्धन, डॉक्युमेंट्री फिल्मकार

3. ‘‘इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की ज़िन्दगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिन्दुस्तान को पेश करते हैं, हिन्दुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है।’’
                                                   -रामशरण जोशी, वरिष्ठ पत्रकार

पुस्तक: एक देश बारह दुनिया
लेखक: शिरीष खरे
श्रेणी: नॉन-फिक्शन , रिपोर्ताज (समाज व संस्कृति)
प्रकाशक: राजपाल प्रकाशन, नई-दिल्ली
पृष्ठ: 208

पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है:
https://www.amazon.in/-/hi/Shirish-Khare/dp/9389373603

        (सामाजिक मुद्दों को लेकर स्थानीय समुदाय के बीच सक्रिय रहने वाले रजनीश दुबे मध्य-प्रदेश के जबलपुर शहर में रहते हैं।)