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Newsdesk Uttranews
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आखिर किसे और क्यों बचा रहा है एसएसजे परिसर का विधि विभाग

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अल्मोड़ा। अपनी लचर कार्यप्रणाली से कुमाऊॅ विश्वविदयालय उबरने का नाम नहीं ले रहा है। बीते सालों में जहां विश्वविदयालय ने अपनी कार्यप्रणाली से अपनी छवि को धूमिल किया है वहीं लगातार विश्वविदयालय की शिक्षा में भी भारी गिरावट आई है। भ्रष्टाचार और शिक्षा में गिरावट की कहानी बयां कर रही है विश्वविदयालय के एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में विधि संकाय के एक छात्र अनिल कुमार यादव की कहानी। यह कहानी पूरे विश्वविदयालय को सफेद हाथी साबित कर रही है। साथ ही इस बात के कारणों को भी साफ कर रही है कि यह विश्वविदयालय बीते दो दशकों से राज्य में किस प्रकार बौद्धिक योगदान दे रहा है।
अल्मोड़ा में विधि संकाय का दूर दूर तक नाम है, कम फीस में अच्छी पढ़ाई और दूर तक कोई विधि पाठयक्रम न होने के कारण हर साल बड़ी संख्या में यहां छात्र विधि स्नातक की पढ़ाई करने आते हैं। हर साल 100 निर्धारित सीटों के लिए यहां छात्रों में प्रतिस्पर्धा रहती थी और 50 स्वपोषित सीटें भी भर जाती थी। प्रवेश हेतु विश्वविदयालय में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है और हर छात्र को नियम सम्मत बार काउंसिल ऑफ इण्डिया के नियमों के तहत प्रवेश देने का नियम है। बीते चार पांच साल पूर्व तक यहां अनेक प्रकार की आंतरिक राजनीति के बावजूद भी विधि संकाय में पढ़ाई का स्तर अपेक्षाकृत अच्छा था। अनिल कुमार यादव की कहानी बताती है कि आज विश्वविदयालय का स्तर किस रसातल में पहुंच गया है। अनिल कुमार यादव मुख्य रूप से केंद्र सरकार के तहत संचालित गोविंद बल्लभ पंत राश्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान में स्थायी तौर पर प्रशासनिक अधिकारी है। 2015 में सरकारी संस्थान में पूर्णकालिक जॉब होने के बावजूद उन्होंने यहां विधि संकाय में प्रवेश लिया। प्रवेश की प्रक्रिया और नियम साफ बताते हैं कि यह पाठ्यक्रम नियमित है और यहां पर्याप्त उपस्थिति के साथ छात्र को नियमित आकर पढ़ना होता है। अन्य स्थानों पर काम करने वाले इस प्रकार के कर्मचारियों को अपने विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी लाना होता है।
तंत्र की लचर कार्यप्रणाली के बल पर अनिल कुमार यादव ने अपने संस्थान की ओर से जो अनापत्ति वहां प्रस्तुत की उसमें साफ तौर पर संस्थान ने कहा है कि उन्हें अनापत्ति नहीं दी जा सकती वे चाहें तो अपने अवकाश आदि से इसे व्यवस्थित कर सकते हैं। संस्थान की अनुमति न होने के बाद भी अनिल कुमार यादव ने यहां प्रवेश लिया और आज वे पांच समेस्टर तक परीक्षा बिना रोक टोक के दे भी चुके हैं।
ज्ञातव्य है कि विश्वविदयालय अनुदान आयोग का रेगुलेशन 2003 के बिंदु संख्या 5.8 में स्पष्ट है कि किसी छात्र को कक्षा में व्याख्यान,प्रयोगात्मक, सेमिनार आदि शैक्षिक क्रियाकलापों में न्यूनतम 75 प्रतिशत उपस्थिति देने पर ही परीक्षा के लिए योग्य समझा जाएगा। सेमेस्टर प्रणाली में यह और भी आवश्यक हो जाता है।

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इस बाबत सूचना अधिकार से सूचनाएं एकत्र करने विश्वविदयालय की ओर से कहीं भी सहयोग नहीं दिया जा रहा है। और न ही समय पर पूर्ण सूचनाएं दी गई है। आरटीआई से प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इस छात्र का मामला सुर्खियों में आने के बाद भी विश्वविदयालय उसे बचा रहा है या यूं कहें कि स्वयं को बचा रहा है। मामला स्वयं कुलपति के संज्ञान में भी डाला जा चुका है। लेकिन कुलपति के स्तर पर भी अभी तक कोई कार्यवाही नही हुई है।
जंहा एक ओर विश्वविद्याल पूर्व के सालों में छात्रों को यहां 180 दिन की उपस्थिति न होने पर परीक्षाओं से वंचित रहना पड़ा है, विधि करने की इच्छा होने के बाद भी अनेक छात्र बीते सालों में कम उपस्थिति के कारण विधि संकाय से बाहर किये जा चुके है। लेकिन उक्त छात्र पर किन कारणों से विश्वविदयालय व विधि संकाय मेहरबान है,यह रहस्य बना हुआ है। बीते सितम्बर माह से यह मामला सुर्खियों में है लेकिन विश्वविदयालय के कर्ताधर्ताओं के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। छात्र की तीन साल की उपस्थिति पर नजर डालें तो यह छात्र तीन साल में लगभग 72 दिन ही कालेज में उपस्थित दिखाया गया हैं। हालांकि इस सत्र में विभाग में लगभग 6 दर्जन छात्रों की उपस्थिति है और उनमें से अधिकांश कक्षाओं से नदारद है। अनिल कुमार यादव का मामला और भी रोचक है। यह छात्र प्रथम सत्र 2016 में साल में मात्र 11 दिन, 2017 में 24 दिन और वर्ष 2018 में 37 दिन ही उपस्थित है। उपस्थिति पंजिका में अनेक स्थानों पर कूट रचना भी की गई है, अर्थात उपस्थिति के शब्द पी को ए अथवा ए को पी किया गया है। विधि जैसे पाठयक्रम में इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। हैरानी पूर्ण यह भी है कि अनिल यादव महोदय के लिए 10 दिन अकेले कक्षा लगी है। अर्थात इन 10 दिनों में कक्षा में वह अकेले हैं। वहीं कार्यालय उपस्थिति से इसका मिलान करने पर ज्ञात होता है कि यह महाशय लगभग 25 दिन दोनों स्थानों पर है। अनेक राजकीय अवकाशों में भी यह कालेज में उपस्थित दिख रहे हैं। अनेकों दिन वह अपने संस्थान में भी उपस्थित है और विधि संकाय में भी। यही नहीं अनेकों दिन उक्त छात्र की अकेले उपस्थिति दिखाई गई है अर्थात उक्त दिवस को कोई अन्य छात्र कक्षा में उपस्थित ही नहीं है। अनेक शिक्षक यह दलील देते नहीं थक रहे हैं कि उपस्थिति कम होने पर 10 प्रतिशत छूट का अधिकार कुलपति व विभागाध्यक्ष के है। छात्र की उपस्थिति अत्यंत न्यून होने के बाद भी यह 10 प्रतिशत भी उसे अधिकार नहीं देता कि वह विधि संकाय में परीक्षा दे सके।
हैरानी की बात यह भी है कि विश्वविदयालय द्वारा 2016 के स्नातक कक्षाओं हेतु जारी अध्यादेश में स्पष्ट है कि एनसीसी या एनएसएस शिविरों में जाने पर , विश्वविदयालय अथवा राज्य स्तर पर खेलने पर, लंबी बीमारी पर और राज्य स्तर अथवा विश्वविदयालय स्तर पर किसी विशेष गतिविधि में शामिल होने पर छात्र को विभागाध्यक्ष स्तर पर 5 प्रतिशत और अनुरोध पर कुलपति की ओर से 10 प्रतिशत उपस्थिति में छूट मिल सकती है। वहीं प्रोफेशनल प्रोग्राम ऑर्डिनेस 2018 में विश्वविदयालय ने स्वयं कहा है कि समेस्टर प्रणाली में छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है और चार स्थितियों में उसे 10 प्रतिशत उपस्थिति की छूट मिलेगी। छात्र अनिल कुमार
यादव इनमें से किसी दायरे में नहीं आते हैं। उनके मामले में ऐसी कोई परिस्थितियां स्पष्ट नहीं है और न ही इस बात का उल्लेख कि उन्होंने उपस्थिति कम होने पर विश्वविदयालय से छूट का अनुरोध किया हो। हालांकि विधि संकाय में अनेक छात्र इसी परिपाटी पर चल रहे हैं। अत्यंत कम कक्षाओं का चलना, छात्रों की गलत उपस्थिति दिखाना आदि सूचना अधिकार में स्पष्ट तौर पर दिख रहा है लेकिन उक्त छात्र जो कि केंद्र सरकार के अधीन एक संस्थान में एक स्थायी कर्मचारी है, यह जानने के बाद भी संकाय संचालकों द्वारा यह कारगुजारी करना स्वयं में एक रहस्य है। अनेक शिकायतों के बाद भी न तो कुलपति की ओर से और न ही विभाग की ओर से उक्त छात्र के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई। इसके अलावा इसी संस्थान की वैज्ञानिक बसुधा अग्निहोत्री के भी इसी तरह से प्रवेश लेकर एलएलबी की छात्रा के रूप में पढ़ाई करने की बात सामने आई है।
सब चलता है के सिद्धांत पर किया गया यह प्रवेश और उक्त छात्र की पूरे हो चुके पांच समेस्टर की सूचना से छात्रों में भारी रोष है। अनेक लोग उक्त प्रकरण में विभाग व विश्वविदयालय को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी भी कर चुके हैं।
उक्त प्रकरण को लेकर अनेक जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दल अनेकों बार जिलाधिकारी कार्यालय में ज्ञापन भी दे चुके हैं।
ज्ञातव्य है कि भारत की विभिन्न न्यायालयों में अनेक बड़े विश्वविदयालय से 75प्रतिशत से कम उपस्थिति होने पर विधि परीक्षा से वंचित छात्रों ने न्यायालय की शरण लेकर उपस्थिति में छूट मांगी और समय समय पर न्यायालय ने इसपर अपने निर्देश भी दिए।

एडवोकेट एक्ट 1961 का हवाला देते हुए बार काउंसिल ऑफ इण्डिया ने भी कहा है कि किसी अधिवक्ता को तैयार करने के लिए सेमिनार, व्याख्यानों की नितांत आवश्यकता है और उसे अपने हर प्रश्नपत्र में कम से कम 66 प्रतिशत उपस्थिति देनी आवश्यक होगी।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत में न्यायालयों ने शिक्षा के स्तर को गिराने का सदैव विरोध किया था।

हर देश को उत्कृष्टता और उच्चतम शैक्षणिक मानकों का प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। एक समाज जो बहुत अधिक अक्षमता को सहन करता है वह कभी भी समृद्ध नहीं हो सकता। यह न्यायालय की राय है कि शिक्षा के मानकों को बिल्कुल निम्न स्तर पर गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह बात अप्रैल 2013 में किसी कर्मचारी द्वारा नियमित विधि स्नातक करने किए जाने के मामले में न्यायालय ने कही। दिल्ली विश्वविदयालय कें इस मामले में एक कर्मचारी अवधेश कुमार जो कि केंद्र सरकार का कर्मचारी भी था ने अपना विधि स्नातक पूरा करने की अनुमति मांगी थी। न्यायाधीश मनमोहन सिंह ने इस मामले में सेना में शामिल होने वाले जवानों की ​शिक्षा बाधित होने का भी हवाला दिया था और ​विषय की गुणवत्ता का भी पक्ष रखते हुए उक्त छात्र की याचिका को खारिज किया था।

छात्र द्वारा दिया गया शपथ पत्र

देर से ही सही कॉलेज प्रशासन जागा तो

अल्मोड़ा। अब देर से ही सही सोबन सिंह जीना परिसर के विधि विभाग की कार्यवाही उम्मीद जगा रही है। विधि विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 केडी भट्ट ने बताया कि विधि विभाग ने तत्काल निर्णय लेते हुए अनिल कुमार यादव और बसुधा अग्निहोत्री के छठे सैमेस्टर के प्रवेश पर रोक के साथ ही उनके विधि संकाय की कक्षाओं, प्रैक्टिकल आदि कार्यो पर रोक लगा दी है। इस मसले पर विभिन्न संगठनों और जनप्रतिनिधियों द्वारा जिलाधिकारी को की गई शिकायतों के बाद जिलाधिकारी द्वारा जांच के आदेश देने के बाद विधि विभाग द्वारा एक कमेटी का गठन कर इसकी जांच भी की जा रही है।

इस प्रकरण को उत्तरा न्यूज ने सबसे पहले उठाया था। हमारी तथ्यपरक खबर प्रकाशित होने के बाद हमारे पास कई रसूखदार लोगों के फोन आने लगे और आगे इस मसले को प्रकाशित ना करने की ​गुजारिश करने लगे। इस मसले पर हमारा स्टैंड बिल्कुल साफ है। उत्तरा न्यूज वेब पोर्टल को शुरू करने के पीछे हमारा एक ध्येय यह भी था कि खबरों की भीड़ के बीच खो जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण खबरों को हम प्रकाशित करेगें। और अपने सीमित संसाधनों से हमने जितना हो पाया करने का प्रयास किया है।
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