जम्मू कश्मीर के पहलगाम में जो आतंकी हमला हुआ उसके बाद हालात ऐसे बन गए हैं कि भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिक अब अपने वतन लौटने लगे हैं। अटारी बॉर्डर पर रोजाना दिल तोड़ देने वाले मंज़र देखने को मिल रहे हैं। कोई अपनी बहू को गले से लगा रहा है तो कोई मासूम बच्चे को सीने से चिपकाए बिछड़ने की मजबूरी में रो रहा है।
ऐसा ही एक मंजर उस वक्त देखने को मिला जब फरहीन नाम की एक पाकिस्तानी महिला को उसकी सास खुद बॉर्डर तक छोड़ने आई थी। फरहीन की गोद में उसकी सिर्फ अट्ठारह महीने की बच्ची थी जिसे वो सीने से चिपकाकर बार बार रोती जा रही थी। ऑटो में बैठी उसकी सास बस इतना कह रही थी उतर जा बेटा उतर जा लेकिन फरहीन का दिल कैसे मानता। बच्ची भारत की नागरिक है और मां को अब पाकिस्तान लौटना है। फरहीन कहती है सरकारें बच्चों पर तो रहम करें। उन्हें अपने मां बाप के साथ रहने दिया जाए। बच्चा किसी के लिए खतरा नहीं होता।
फरहीन ने दो साल पहले प्रयागराज के रहने वाले इमरान से शादी की थी और तब से भारत में वीजा पर रह रही थी। लेकिन अब वीजा की शर्तें और सुरक्षा की वजहों से उसे लौटना पड़ रहा है। फरहीन की सास का भी यही कहना है कि हमने लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई किया था लेकिन इतना सब अचानक होगा ये नहीं सोचा था। बच्चा अपनी मां के बिना कैसे रहेगा।
फरहीन की तरह इरा नाम की एक और महिला भी है जो दस साल से दिल्ली में रह रही थी। शादी के बाद उसे यहां का वीजा मिला था लेकिन कोरोना के वक्त उसका वीजा खत्म हो गया था। इस महीने की शुरुआत में ही उसे फिर से वीजा मिला और वह अपने पति और बच्चे के पास वापस आई थी लेकिन अब एक बार फिर उसे पाकिस्तान जाना पड़ रहा है। इरा कहती है जो पहलगाम में हुआ वह बहुत बुरा है। जो दोषी हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए लेकिन सरकारों को हमारे बारे में भी सोचना चाहिए। जो लोग सालों से यहां रह रहे हैं उनके लिए कुछ राहत होनी चाहिए।
इसी भीड़ में समीरा भी थी। कराची से आई समीरा पिछले साल अपने चाचा के घर आई थी और फिर यहां शादी कर ली। अब वो गर्भवती है। समीरा भी बॉर्डर से कुछ मीटर पहले ढाबे पर बैठकर रो रही थी। उसका पति रिजवान कहता है कि जबसे फोन आया है कि इसे जाना होगा ये रोए जा रही है। सरकार को फैसला लेने से पहले ऐसे मामलों को देखना चाहिए था।
आईसीपी गेट पर एक महिला रुबीना भी खड़ी थी। उसका भाई और उसकी पत्नी पाकिस्तान में हैं। दोनों के बच्चे भारत के नागरिक हैं। लेकिन अब पत्नी को भारत आने नहीं दिया जा रहा और भाई अपने परिवार के बिना वापस आना नहीं चाहता। रुबीना की आंखें अपनों की राह ताकते थक चुकी हैं लेकिन उम्मीद अभी बाकी है।
पच्चीस अप्रैल से जो आदेश लागू हुए उसके बाद अब तक सात सौ सत्तासी पाकिस्तानी नागरिक भारत से वापस जा चुके हैं। अटारी बॉर्डर पर इन दिनों सिर्फ लोगों की कतारें नहीं दिखतीं बल्कि हर तरफ बिछड़ते रिश्तों की आहट और आंखों से बहते आंसू नजर आते हैं।