Pithoragarh- संकट से गुजर रही लोक कथाओं को बचाने की जरूरत

Newsdesk Uttranews
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कुमाऊं की लोक कथाएं पुस्तक का लोकार्पण, वक्ताओं ने कहा- लोक कथाएं अपने सामाजिक परिवेश से जुड़ी संस्कृति को अगली पीढ़ियों को करती आई है हस्तांतरित

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पिथौरागढ़। लोक कथाएं सामाजीकरण का सबसे बड़ा माध्यम हैं। लोक कथाएं क्षेत्रीय भाषाओं और स्थानीय बोलियों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई हैं। लेकिन भूमंडलीकरण के दौर में, जब एक भाषा का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है, तब लोक कथाओं के अस्तित्व पर संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे दौर में लोक कथाएं, किस्से तभी बच पाएंगे जब इन कहानियों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए नए माध्यमों को तैयार किया जाएगा और अलग-अलग क्षेत्रों में लोक कथाओं को संकलित करने का कार्य किया जाएगा।

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इस आशय के विचार शनिवार को जिला सूचना विभाग के सभागार में आयोजित ‘कुमाऊं की लोक कथाएं’ पुस्तक के लोकार्पण समारोह में विभिन्न वक्ताओं ने व्यक्त किए। पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार प्रेम पुनेठा ने कहा कि आज जिस तरह से नई पीढ़ी स्मार्ट फोन से चिपकी हुई है और उसके पास दादी-नानियों की कहानियां सुनने के प्रति रुचि कम दिखाई पड़ रही है, उससे इस बात के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं कि आने वाले समय में न तो लोक कथाओं को सुनने वाला कोई दिखाई पड़ेगा और न ही उन्हें सुनाने वाला। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में लोक कथाओं के साथ ही लोक बोलियां भी खत्म होती चली जाएंगी, जिन्हें बचाने के गंभीर प्रयास करने होंगे।

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समारोह में अपनी बात रखते हुए साहित्यकार महेश पुनेठा ने कहा कि लोक कथाएं न केवल एक सामाजिक परिवेश से जुड़ी संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करती आई हैं बल्कि लोक भाषाओं और बोलियों को भी संरक्षण देती आई हैं। उन्होंने कहा कि बाल शिक्षा के क्षेत्र में लोक कथाएं बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उन्होंने लोक कथाएं या दास्तानगोई की परंपरा लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास में किस तरह भूमिका निभाती हैं, इसके लिए यूरोप से लेकर भारतीय समाज में लोक कथाओं के संरक्षण और विकास में बड़ी भूमिका निभाने वाले लोक कथाकारों के प्रयासों का भी जिक्र किया। और कहा कि लेखक, पत्रकार, शिक्षक या समाज का अन्य वर्ग लोक कथाओं को संकलित करने और विकास में अपने-अपने तरह से भूमिका निभा सकते हैं।

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हिमाल प्रसंग के संपादक प्रकाश पांडेय ने कहा कि इस पुस्तक में प्रकाशित कहानियों को आधार बनाकर लघु फिल्में भी बनाई जा सकती हैं, जिससे इनका संरक्षण भी होगा और नई पीढ़ी को अपने समाज-संस्कृति से जुड़ी लोक कहानियां हस्तांतरित भी हो सकेंगी। पब्लिक स्कूल एसोसिएशन पिथौरागढ़ के सचिव नवीन कोठारी ने कहा कि इस पुस्तक में प्रकाशित लोक कथाएं बेहद रोचक हैं और बच्चों में अपनी संस्कृति को लेकर साहित्यिक अभिरूचि बढ़ाने में काफी सहायक हैं। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में संकलित कहानियों को स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए और इसके लिए स्कूल एसोसिएशन अपनी तरफ से भरपूर सहयोग करेगा।


लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक एंव शिक्षाविद पंदमादत्त पंत ने कहा कि कुमाऊंनी समाज की तरह ही देश-दुनिया के हर समाज में अपनी लोक कथाएं होती हैं। कई बार उनमें समानता देखने को मिलती है तो अनेक कहानियों में अपने समाज व परिवेश की खासियत भी मौजूद होती है। ऐसी कहानियों को सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से भी बचाए रखना जरूरी है। कार्यक्रम में पर्वतीय पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजयवर्धन उप्रेती, कुमाऊंनी लेखिका सरस्वती कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता बबीता पुनेठा आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम की आयोजक संस्था हिमाल प्रकाशन और अभिलाषा समिति की ओर से किशोर पंत ने उपस्थित सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन नन्हीं चौपाल के संपादक विप्लव भट्ट ने किया। कार्यक्रम में पत्रकार कुन्डल चौहान, रमेश गढ़कोटी, राजेश पंगरिया, नरेश कांडपाल, सुशील खत्री, प्रकाश पांडेय, विपिन गुप्ता, लेखक प्रकाश पुनेठा, एनको संस्था के ललित पंत, रमेश चन्द्र शर्मा, रेखा कुंवर आदि उपस्थित थे।

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