इंसानों के लिए खतरा बने आदमखोर गुलदार अब सलाखों के पीछे, उत्तराखंड के चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर में मिल रही जिंदगी की दूसरी शुरुआत

वैसे तो कहा जाता है कि कायदे, कानून और नियम केवल इंसानों के लिए बनाए जाते हैं, जानवरों के लिए नहीं। लेकिन क्या आप जानते…

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वैसे तो कहा जाता है कि कायदे, कानून और नियम केवल इंसानों के लिए बनाए जाते हैं, जानवरों के लिए नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जंगल में राज करने वाले खूंखार जानवरों के लिए भी एक तरह के नियम-कानून होते हैं। जैसे इंसान अगर गलती करता है तो उसे सजा मिलती है, वैसे ही जब कोई जानवर इंसानों के लिए खतरा बनता है तो उसे भी सजा के तौर पर एक खास जगह कैद कर दिया जाता है। वहां उसे नियमों के तहत रखा जाता है और पूरी निगरानी में उसकी जिंदगी गुजरती है।

उत्तराखंड के नजीबाबाद रोड पर बना चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर अब आदमखोर गुलदारों का घर बन चुका है। करीब 35 हेक्टेयर में फैला यह सेंटर पहले घायल जानवरों के इलाज के लिए बनाया गया था, लेकिन अब यहां उन गुलदारों को भी रखा जा रहा है, जिन्होंने इंसानों को अपना शिकार बनाया था। इस सेंटर में फिलहाल पौड़ी, जोशीमठ, कोटद्वार और हरिद्वार जैसे इलाकों से लाए गए 14 आदमखोर गुलदार कैद हैं।

शुरुआत में यहां सिर्फ छह गुलदारों को रखने की व्यवस्था थी, लेकिन अब यहां 16 से ज्यादा गुलदारों को रखने की क्षमता विकसित की गई है। वन विभाग इसे और बढ़ाने पर भी काम कर रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर और आदमखोर गुलदारों को भी यहां रखा जा सके।

यहां रहने वाले गुलदारों की देखभाल के लिए वन विभाग की टीम तैनात है। वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. अमित ध्यानी पिछले दस साल से इन गुलदारों की निगरानी कर रहे हैं। डॉ. ध्यानी के मुताबिक जब गुलदारों को यहां लाया जाता है तो शुरू में उन्हें संभालना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन समय के साथ उनकी देखभाल, इलाज और नियमित निगरानी से उनका व्यवहार काफी बदल जाता है। इन गुलदारों को अब जंगल में छोड़ना संभव नहीं है, क्योंकि एक बार आदमखोर बन चुके जानवर इंसानों के लिए हमेशा खतरा बने रहते हैं।

रेस्क्यू सेंटर में ‘रॉकी’, ‘जोशी’, ‘मोना’, ‘रूबी’, ‘दारा’ और ‘सिंबा’ जैसे नाम वाले गुलदार रखे गए हैं। इनमें से ‘मोना’ पौड़ी से लाई गई थी, जिसने चार लोगों को शिकार बनाया था। जब उसे सेंटर लाया गया, तब उसकी उम्र चार साल थी और अब वह 15 साल से ज्यादा उम्र की हो चुकी है। यहां के बेहतर देखभाल और खानपान की वजह से गुलदारों की उम्र जंगल के मुकाबले ज्यादा हो रही है।

इसी तरह ‘दारा’ नाम का गुलदार भी चिड़ियापुर सेंटर में है, जिसे पोखाल से लाया गया था। दारा ने भी तीन लोगों को अपना शिकार बनाया था। अब उसका वजन 80 किलो से ज्यादा है और वह पूरी तरह स्वस्थ है।

चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर अब उन आदमखोर गुलदारों की सुरक्षित जगह बन चुका है, जिन्हें दोबारा जंगल में छोड़ना संभव नहीं है।