नौकरी का जाना मतलब सपनों का टूट जाना, जिंदगी बेनूर हो जाना जेट इयरवेज के 20 हजार कर्मी हुए एक साथ बेरोजगार

Newsdesk Uttranews
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डेस्क— नौकरी जिसके बदौलत आदमी खुद और अपने परिवार के अच्छे परवरिश के सपने देखता है। एक अच्छी जिंदगी जीने की उम्मीद पर खपते रहता है एक झटके में यदि यह आसरा चला जाय तो फिर इसे क्या कहा जाय दुस्वपन्न, हताशा या सपनों का मर जाना। उभोक्तावादी व मशीनरी युग की यही कहानी है। भले ही इसे लोग इन शब्दों के चयन को अतिश्योक्ति कहें लेकिन यह सही है कि आज के दौर में नौकरी जाना भी एक प्रकार से मौत से कम नहीं है।
नौकरी जाने का मतलब केवल नौकरी खत्म होने से नहीं होता खत्म हो जाते हैं सपने, जीवन चक्र का एक ढर्रा जिसे लाइफ स्टाइल का नाम दिया जाता है वह टूट जाती है। घर व वाहन की ईएमआई, बच्चों की फीस व कई अन्य जरूरतों के लिया कर्ज शूल बन जाता है। तब हकीकत में नौकरी जाने के बाद आने वाली बेरोजगारी का पता चलता है। ताजा मामला जेट एयरवेज का है। इसके हजारों कर्मचारी एक साथ बेरोजगार हुए पता चला है कि 20 हज़ार कर्मचारियों पर नौकरी जाने की गाज गिरी है। इन कर्मचारियों को नौकरी जाने से पहले कई महिनों से नियमित वेतन भी नहीं मिला।
इस पूरे प्रकरण के लिए जो कारण भी जिम्मेदार हो लेकिन देश में कई अन्य सेक्टरों में भी यही स्थिति आने वाली है। जेट एयरवेज भले ही निजी कंपनी हो लेकिन बीएसएनएल, डाक विभाग,एचएएल सहित सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों की स्थिति आज ठोस नहीं कही जा सकती है। माना जा रहा है कि इयरवेज इंडस्ट्रीय कठिन दौर से गुजर रही है। लेकिन आर्थिक हालत की कमजोर दशा से वह हर वर्ग हलकाल है जो इनसे जुड़ा है। यह स्थिति धीरे धीरे सभी को प्रभावित कर सकती है। बेरोजगार और बेकार घोषित हो चुके जेट एयरवेज के कर्मचारी अब जंतर मंतर पर पहुंचे हैं लेकिन वहां भी अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे सैकड़ों कर्मचारी पहले से ही मौजूद दिखते हैं। उत्तरखंड की एचएमटी कंपनी की हालत भी ऐसी ही गिरती गई सही पहल और कमजोर रवैये के चलते कभी टॉप कहलाने वाली फैक्ट्ररी वीरान हो गई। पहाड़ी क्षेत्र अल्मोंड़ा में चार दशक से काम कर रही आल्पस दवा कंपनी निरंकुशता का शिकार हो गई छह महिने से यहां के कर्मचारी बेरोजगार बैठे हैं कहीं सुनवाई नहीं है। इसे भी निजी कंपनी बताकर सिस्टम पल्ला झाड़ रहा है । इसलिए जेट एयरवेज कर्मीयों के बेरोजगार होने को मात्र एक खबर या घटना समझकर भूल जाना अब जागरूकता की श्रेणी में नहीं आएगा हो सकता है कि कल आपकी बारी हो और आप सड़कों पर पापी पेट के सवाल को लेकर लड़ रहे हों । इसलिए इस प्रकार की घटनाओं में सरकार को उसकी जिम्मेदारी बतानी होगी। और सरकार को भी इस प्रकार की घटनाओं को घटना मानने के बजाय उसमें जुड़े मैनपावर का​ हित सबसे पहले देखना चाहिए। बाकी घायल की गति घायल जाने।

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