अल्मोड़ा। अर्न्तराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस 2020 के उपलक्ष्य में गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल अल्मोड़ा द्वारा वर्तमान में कोविड-1़9 के लॉकडाउन के मध्यनजर अर्न्तराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस 2020 की थीम “हिमालय जैवविविधता एवं भविष्य के समाधान” पर आनलाईन वेबीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान हिमालय क्षेत्र में आजीविका वृद्वि किस प्रकार से भी की जाय, हिमालयी क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर उत्पादो को कैसे बढावा दिया जाय तथा हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता को कैसे संरक्षित किया जाय आदि विषयों पर प्रमुखता से चर्चा की गई।
संस्थान के निदेशक डा. आर.एस. रावल द्वारा अर्न्तराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए वेबीनार में बताया कि हिमालय पूरे विश्व भर में बायोडाइविर्सीटी हाटस्पॉट है तथा सभी को इसके सतत् मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता है। कहा कि जैव-विविधता में लोगों की जीवन सुधारने की क्षमता एवं दूसरा जैव-विविधता संरक्षण हेतु लोगों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। अतः इन दोनो पहलुओं में धरातल पर कितना कार्य हुआ है के ऊपर मंथन की आवश्यकता है। उन्होंने बताया अतः इस कोविड -19 महामारी के दौर में हम समाज को जैव-विविधता संरक्षण के माध्यम से आजीविका सवर्धन के उपाय एवं जैव-विविधता के सतत् उपयोग हेतु कार्य करना होगा।
कार्यक्रम को आगे बढाते हुए विभिन्न विभागो के विषय विशेषज्ञो ने अपनी बाते रखी जिसमें प्रमुखतः उत्तराखण्ड सरकार के पूर्व मुख्य वनसंरक्षक आर0 बी0 एस0 रावत, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व सयुक्त सचिव वृज मोहन राठौर, आई एम0 आई के श्री सुशील रमोला, पालमपुर से डा0 राजन कोटेरू, भारतीय वन्य विभाग के पूर्व डीन डा0 जी0 एस0 रावत, संस्थान के वरिष्ठम वैज्ञानिक डा0 जी0 सी0 एस0 नेगी, डा0 आई0 डी0 भटृ एवं विभिन्न एन0 जी0 ओ0, विद्यालयों एवं अन्य विभागो के विषय विशेषज्ञ आदि शामिल रहे।
परिचर्चा के अंत में यह निष्कर्ष निकाल गया कि हिमालयी क्षेत्र की सम्भावनाओ को देखते हुए जडी़ बूटी के रोपण, बागवानी, बजंर भूमि विकास खाद्य पदार्थ संस्करण, पारम्परिक कृषि वनो के संरक्षण आदि गतिविधियों को बढावा दिया जाय। साथ ही इस प्रकार के कार्य करने वालो को समय समय पर प्रोत्साहित किया जाय। बाहर से जो लोग इस महामारी के दौर में वापस पहाडो़ की तरफ आ रहे है उनको स्वरोजगार एवं मनरेगा आदि से जोड़कर बंजरभूमि विकास करवाया जाय एवं उनकी क्षमता निर्माण का उपयोग कर छोटे छोटे कुटीर उधोग लगाया जाय। धन्यवाद प्रस्ताव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 आई0 डी0 भटृ ने दिया।