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हाईकोर्ट के फैसले से रामनगर में पर्यटन पर लगा ब्रेक : राजनैतिक दल मौन

Newsdesk Uttranews
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रामनगर। कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटन गतिविधियों में अनियमितताओं, एवं वन एवं वानिकी के संरक्षण के लिए कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित करने को लेकर उच्च न्यायालय, नैनीताल के हालिया आदेशों से हडकंप मचा हुआ है।

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हाईकोर्ट के आदेशों से रामनगर में पर्यटन कारोबार से जुडे हजारों कारोबारी प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन कोर्ट का आदेश किसी ताजातरीन घटनाक्रम के चलते नहीं आया है। आज से छह वर्ष पूर्व नैनीताल हाईकोर्ट में रामनगर के एक गैर सरकारी संगठन हिमालयन युवा ग्रामीण विकास संस्था ने वर्ष 2012 में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें वन भूमि पर अतिक्रमण कर रिजार्ट निर्माण करने एवं सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे को लेकर याचिका दायर की थी। न्यायालय में वाद दायर होने के बाद न्यायालय ने सुनवाई प्रारंभ कर दी। लेकिन इसी बीच याचिका संख्या 6/12 में हिमाद्री जनविकास समिति की ओर से तत्कालीन पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष और वर्तमान में भाजपा के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने न्यायालय को हस्तक्षेप प्रार्थनापत्र देकर स्वयं को भी पक्षकार बनाने की बात कही थी । जिसमें उन्होंने वन गूजरों के विस्थापन, टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन, वन्य जीवों के अवैध शिकार पर रोक लगाने की मांग की थी। जिस पर न्यायालय ने प्रार्थनापत्र को सम्मिलित कर अनिल बलूनी को भी एक पक्षकार के रूप में याचिका में सम्मिलित कर लिया । एक याचिका के पैरोकार हाईकोर्ट के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली तो दूसरी के राकेश थपलियाल थे। करीब छह वर्ष पुरानी इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 3 अगस्त 2018 को अपना फैसला सुनाया। जिसमें कोर्ट ने पार्क क्षेत्र में हो रही अनियमितताओं पर रोक लगाने के आदेश दिए। इससे पूर्व कोर्ट ने रामनगर की कोसी नदी क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले 44 रिर्जोटों को दोषी पाया था। इसमें कोर्ट ने कई रसूखदार कब्जेदारो को चिन्हित किया था।

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जबकि कोर्ट पूर्व में 13 रिर्जोटों को जिनमें सीवर ट्रीटमैंट प्लांट नहीं लगे थे उनमें प्लांट लगाने के आदेश दे चुका था। आरोपी होटल और रिर्जोट अपना सीवर सीधे कोसी नदी में गिरा रहे थे। इस पूरे वाद में कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्णय सुनाएं हैं। हिमालयन युवा ग्रामीण विकास संस्था एवं राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की हिमाद्री जनविकास समिति की ओर से दाखिल याचिका पर कोर्ट ने निर्णय दिए इसी बीच पीएफए की गौरी मौलेखी और ढिकुली ग्रामसभा की ओर से अधिवक्ता धर्मेन्द्र बर्थवाल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुए।

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जिसके बाद न्यायालय ने इन्हें भी पूरे वाद में सम्मिलित करते हुए पूरे वाद की सुनवाई एक साथ की। जिसमें ढिकुली ग्रामसभा के अधिवक्ता धर्मेन्द्र बर्थवाल के शपथपत्र प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय ने वाद की सुनवाई करते हुए राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को आदेश दिए हैं कि रिर्जोटों से हाथियों को मुक्त करवाकर राजाजी नेशनल पार्क में रखा जाए और उनके उचित प्रबंध किए जाएं। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने यह भी कहा है कि पार्क में प्रतिदिन मात्र 100 वाहनों को ही प्रवेश दिया जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा है कि इन वाहनों के लिए डीएफओ और आरटीओ से अनुमति लेनी आवश्यक होगी।

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इसके अतिरिक्त कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वन गूजरों को वन क्षेत्र से हटाने की कार्यवाही जल्द की जाए। इसके साथ ही न्यायालय ने कार्बेट नेशनल पार्क के क्षेत्र में प्राईवेट वाहनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है । न्यायालय के निर्णय के बाद रामनगर में पर्यटन कारोबार से जुडे लोगों में हडकंप मच गया है ।स्थानीय पर्यटन कारोबार से जुडे लोग न्यायालय के निर्णय में सरकार द्वारा बेहतर पैरवी नहीं किए जाने को मुख्य कारण मान रहे हैं । यहां एक बात और विशेष रूप से सामने आई है कि फैसला देने से पूर्व हाईकोर्ट ने सरकार से इस पूरे मामले में पर अपना जबाब दाखिल करने को कहा था।

लेकिन सरकार न्यायालय में जवाब दाखिल नहीं कर सकी राज्य में पूर्व में सीएम रहते डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने भाजपा नेता अनिल बलूनी को वन एवं पर्यावरण सलाहकार समिति का उपाध्यक्ष बनाया था। तब बलूनी ने ही वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी लागु करवाई थी। पार्क क्षेत्र की सीमा से लगे होटल एवं रिर्जोटों से वन्यजीवों पर असर नहीं पडे इसके लिए गाइडलाइन तय की गई थी। लेकिन उस गाइडलाइन का अनुपालन होता नहीं दिखा। अलबत्ता इस याचिका के बाद न्यायालय के आदेश पर वन भूमि, नदी क्षेत्र और सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के मामले में 44 रिर्जोटों को नोटिस और 13 रिर्जोटों के विरूद्व कार्यवाही की जा चुकी है।


मिली जुली प्रतिक्रियाओं से भरा है सोशल मीडिया

रामनगर । हाईकोर्ट के आदेश के बाद सोशल मीडिया पर भी इसका असर दिख रहा है । पर्यटन कारोबार से जुडे लोग जहां इसे सरकार द्वारा मामले की सही पैरवी नहीं होना मान रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे याचिकाकत्र्ताओं की सस्ती लोकप्रियता भी बता रहे हैं। वहीं पर्यटन कारोबारियों के इतर एक बडा वर्ग इसे जनहित के क्षेत्र में न्यायालय का बडा आदेश मान रहे हैं। दरअसल कई बार अनैतिक पर्यटन गतिविधियों के चलते ही मानव वन्य जीव संघर्ष बढा है, जिसका खमियाजा स्थानीय ग्रामीणों को भुगतना पडता है।

हांलाकि सांसद अनिल बलूनी के द्वारा हिमाद्री जन विकास समिति की ओर से गुजरों के विस्थापन के विषय में न्यायालय में की गई याचिका से कई जनवादी संगठन सहमत नहीं दिखते। वह इस विषय में उच्चतम न्यायालय जाने की बात भी कह रहे हैं। वहीं करोडों का राजस्व प्राप्त करने वाले कार्बेट नेशनल पार्क के द्वारा आम स्थानीय नागरिकों के हित में इस राजस्व का कोई लाभ नहीं है। यह विशुद्व कार्बेट प्रशासन की आय होती है। जबकि वन कानूनों की कडाई के चलते स्थानीय ग्रामीण जो जंगल से सटे क्षेत्रों में वास करते हैं, वह जलौनी लकडी और चारे के लिए जंगल नहीं जा सकते।

हाईकोर्ट के आदेश से राजनैतिक दलों के समक्ष उहापोह की स्थिति रामनगर कार्बेट पार्क में पर्यटन को लेकर आए फैसले से सत्ता में काबिज भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के समक्ष अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है। रामनगर के कार्बेट पार्क में पर्यटन से जुडी गतिविधियों और यूनियनों में इन दो प्रमुख राजनैतिक दलों की विचारधारा के लोगों का दबदबा है । प्रदेश में भाजपा की सरकार है । भले ही मामला 2006 से विचाराधीन है, लेकिन मौजूदा समय में सरकार पर न्यायालय में मामले की सही तरीके से पैरवी नहीं करने का आरोप लग रहा है।

वहीं याचिकाकत्र्ता के रूप में हिमाद्री जन विकास समिति का नाम सामने आने से भाजपा संगठन के स्थानीय कार्यकत्र्ता कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। स्थानीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट मामले में पर्यटन से जुडे रोजगारों को बचाने की बात कह रहे हैं । वहीं 2006 से लंबित वाद में राज्य की सत्ता में काबिज पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय सही तरीके से वाद की पैरवी नहीं करने का आरोप है। न्यायालय का आदेश होने के चलते दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा है।