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बालश्रम (child labour)उन्मूलन दिवस- 18 साल तक के बच्चों को मिले बाल श्रम से मुक्ति, बच्चों के लिए शिक्षा की पैरोकारी

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा, 13 जून 2021- कैंपेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (CACL) की ओर से बाल श्रम(child labour) उन्मूलन दिवस के उपलक्ष्य में एक वेबीनार का आयोजन किया गया।

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जिसमें देशभर से जुड़े बच्चों व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने 18 वर्ष तक बाल श्रम (child labour)के सभी प्रारूपों के उन्मूलन की जरूरत जताई। 30 अप्रैल से 44 दिन तक सीएसीएल ने यह अभियान चलाया था जिसके समापन पर इस वेबीनार का आयोजन किया गया।

सीएसीएल की स्थापना सन 1992 में अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर बाल मजदूरी(child labour) को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के एक नेटवर्क के रूप में की गई थी। 

Child labour

तब से यह यूएनसीआरसी और बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2013 के अनुरूप 18 वर्ष की आयु तक बाल श्रम के सभी रूपों में पूर्ण उन्मूलन की पैरवी कर रहा है और बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा पर जोर देता है। आज, सीएसीएल के लगभग 21 राज्यों में मौजूद है और बाल श्रम के उन्मूलन के लिए सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहा है।

वेबीनार में कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2021 को बाल श्रम उन्मूलन का वर्ष घोषित किया है। इस वैश्विक अभियान को मजबूती देने के लिए, कैंपेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (CACL) की राष्ट्रीय समिति ने CLPRA 2016 के 5 साल के बाद जमीन पर स्थिति और बाल श्रम (child labour)पर कोविड 19 के प्रभाव की समीक्षा करने के लिए 30 अप्रैल 2021 को 44-दिवसीय अभियान ‘श्रम नहीं शिक्षा’ शुरू किया। 

पिछले डेढ़ महीने में वयस्क हितधारकों के साथ वेबिनार और बच्चों के साथ परामर्श की श्रृंखला आयोजित की गई और अभियान ने बाल श्रम के मुद्दे को उठाने के लिए विभिन्न  मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से अपनी पहुंच को सफलतापूर्वक बढ़ाया। श्रम नहीं शिक्षा अभियान का समापन 12 जून (बाल श्रम के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस) पर एक ऑनलाइन कंसल्टेशन के साथ हुआ, जिसमें 100 बच्चों व अनेक बच्चों ने प्रतिभाग कर अपनी बात रखी।

 
कंसल्टेशन के उद्देश्य को साझा करते हुए  सीएसीएल के नेशनल एडवोकेसी यूनिट के संयोजक अशोक कुमार ने कहा कि श्रम नहीं शिक्षा के 44 दिनों के अभियान के एज मुख्य मील के पत्थर के रूप में हम इस राष्ट्रीय परामर्श को देखते हैं। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर 18 वर्ष तक के लिये सभी प्रकार  के बाल श्रम का पूर्णतः उन्मूलन के लिए एक सामुहिक प्रयास का साझा मंच उपलब्ध करना है। साथ ही, बाल श्रम के मुद्दे पर जागरुकता और हर स्तर पर लोगों को प्रेरित करना है। 

उन्होंने कहा कि CLPRAA 2016 के  पांच वर्ष होने पर उसकी समिक्षा भी अपेक्षित है कि यह कितना बाल श्रम (child labour)के उन्मूलन में कितना सफल या असफल रहा।”

 प्रत्येक राज्य में बच्चों ने बाल मजदूर बनने की अपनी कहानियां और सरकार और अन्य जिम्मेदार हितधारकों से अपनी मांगों को साझा किया और अपने दो प्रतिनिधियों का चुनाव किया।  इन चुने हुए बच्चों ने अपने-अपने राज्यों के हजारों बच्चों का प्रतिनिधित्व किया और कंसल्टेशन में अपनी कहानियाँ साझा कीं।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर के 14 वर्षीय जयेश ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वह  गारा ईंट, मिट्टी की खुदाई, गोबर उठाने और कृषि क्षेत्र में मजदूरी करता हूँ। अक्सर उनका पैर कट जाता है, हाथों में छाले पड़ जाते हैं। 5 साल पहले उनके पिता की मृत्यु हो गई, और घर की सारी जिम्मेदारी उन पर आ गई, इसलिए 8 वीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं कर पाया। कोविड के दौरान, हमें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि कोई काम उपलब्ध नहीं था। सरकार द्वारा दिया गया राशन पूरे महीने नहीं चल पाता था, इसलिए हम अपने पड़ोसियों से मांग कर खाना खाते थे।“

फिजी के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी लोकुर ने कहा- “आज का कार्यक्रम बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। हमारे पास एक संवैधानिक और नीतिगत ढांचा है, लेकिन इस बात का जायजा लेने की जरूरत है कि यह कहां तक ​​सफल हुआ है। पुनर्वास कोष और इसके उपयोग के बारे में जानकारी सार्वजनिक डोमेन में क्यों उपलब्ध नहीं है और श्रम निरीक्षकों को प्रशिक्षित क्यों नहीं किया जाता है।“ न्यायमूर्ति लोकुर ने सामाजिक लेखा परीक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसमें कानून और नीति की वित्तीय लेखा परीक्षा भी शामिल है। 
 
कंसल्टेशन के दौरान बच्चों ने विविध क्षेत्रोंत्रों से आये प्रसिद्ध पैनलिस्टों के सामने अपनी मांगों को प्रस्तुत किया जिसमें प्रो. शांता सिन्हा-पूर्व अध्यक्ष, एनसीपीसीआर, प्रो. बाबू मैथ्यू- नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी-बेंगलुरु, सुश्री अमरजीत कौर- महासचिव, एटक, डॉ. हेलेन आर शेखर – सीनियर फेलो, वी वी गिरी नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट, सुश्री बारबरा कुपर्स- पब्लिक अफेयर्स, टेरे डेस होम्स, श्री इंसाफ निजाम – क्षेत्रीय विशेषज्ञ, एफपीआरडब्ल्यू, आईएलओ और सुश्री वंदना कंधारी – बाल संरक्षण अधिकारी, यूनिसेफ शामिल थे ।
इस परिचर्चा के बाद बच्चों ने जो मांगे उठाई उसमें 
बाल श्रम के सभी रूपों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाने। 18 वर्ष तक के किसी भी बच्चे को स्कूल के बाद या छुट्टियों के दौरान किसी भी घरेलू व्यवसाय में काम करने की अनुमति या मजबूर नहीं किये जाने,बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को सख़्ती से लागू किये जाने, छोटे,  मध्यम और बड़े पैमाने के उद्योगों में बाल श्रमिक के रूप में बच्चों को शामिल न किया जाए, इसकी निगरानी के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने की मांग की।

इसके अतिरिक्त बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 में उल्लिखित ख़तरनाक और गैर-ख़तरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं की सूची की निरंतर समीक्षा और संशोधन किये जाने,निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का दायरा 18 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए बढ़ाया जाने। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मुफ़्त किताबें, वर्दी, मध्याह्न भोजन आदि जैसी सुविधाएं अंतिम सीमा तक खड़े बच्चां तक पहुंचाई जाने की मांग की ।

बच्चों ने कहा कि कोविड-19 के दौरान  बहुत सारे बच्चों के माता-पिता ने अपनी आजीविका खो दी है जिसकी वजह से वह शिक्षा से वंचित होकर बाल श्रमिकों के रूप में काम करने और अपने परिवारों की मदद करने को मजबूर हो गए हैं। सरकारी योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू कराके उनके माता-पिता की आजीविका को सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि हमें बाल श्रमिक बनने के लिए मजबूर न होना पड़े।

इसके अलावा बच्चों ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के बच्चों को संभावित बाल श्रमिक बनने से बचाना चाहिए। प्रवासी श्रमिकों के लिए बनी योजनाओं का लाभ सभी परिवारों तक पहुँचाया जाना चाहिए और उनके बच्चों की मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।

मध्याह्न भोजन योजना के उचित कार्यान्वयन और सभी स्तरों पर स्वास्थ्य सुविधाओं के जरिए हमारी स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा किये जाने की व्यवस्था है। कोविड-19 के दौरान घर ले जाने वाले राशन की स्कीम को ठीक से लागू नहीं किया गया जिससे बच्चों को अपनी व अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाल श्रमिक के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

ग्राम स्तर की बाल संरक्षण समितियों से लेकर सभी स्तरों पर बाल संरक्षण तंत्र स्थापित और सक्रिय किए जाते हैं ताकि सभी बच्चों को दुर्व्यवहार या शोषण से सुरक्षा दी जा सके। ये समितियाँ जरूरत पड़ने पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में भी सहायता कर सकती हैं।

प्रत्येक गांव/समुदाय के स्तर और स्कूलों में बाल समिति/बाल पंचायतों की स्थापना और सक्रियता के माध्यम से बच्चों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि वे खुद से जुड़े विभिन्न मुद्दों जिसमें बाल श्रम भी शामिल हो, पर अपने विचार व्यक्त कर सकें।

विभिन्न विभागों और हितधारकों जैसे महिला एवं बाल विकास विभाग, श्रम विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, पंचायत राज और शिक्षा विभाग को बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 और अन्य संबंधित कानूनों के संबंध में बच्चों,  माता-पिता और समुदाय के सभी स्तरों पर जागरूकता पैदा की जानी चाहिए। जागरूकता पोस्टर, फिल्म और संचार के अन्य संवाद के तरीकों के माध्यम से पैदा की जा सकती है। इस तरह के जागरूकता अभियान स्कूलों, शिक्षकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों तक भी पहुंचने चाहिए।

बच्चों की मांगों के जवाब में प्रो. शांता सिन्हा-पूर्व अध्यक्ष ने राज्य से आग्रह किया कि बाल श्रम की स्थिति को एक आपातकालीन स्थिति के रूप में लिए जाने की ज़रुरत है, सरकार को स्तिथि की गंभीरता को समझते हुए तत्काल प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

सीएसीएल के राष्ट्रीय संयोजक, मैथ्यू फिलिप ने बाल श्रम के खिलाफ अभियान के बयान को साझा करते हुए, सीएसीएल की पोजीशन पर जोर दिया और कहा, “बाल श्रम कानून खराब तरीके से लागू कानूनों में से एक है जिसमें कोई महत्वपूर्ण अभियोजन और सजा नहीं है। बाल-श्रम को ख़त्म करने के नाम पर किये गए  संशोधनों के सन्दर्भ में “तमाम अस्पष्टताओं एवं सुनियोजित चोर-दरवाजों (लूपहोल्स) के साथ” लागू ये कदम तकरीबन अर्थहीन हो जाते हैं। 2016 का संशोधन तथाकथित ‘घर पर आधारित’ व्यवसायों में बाल श्रम की अनुमति देता है और यह बहुत ही नकारात्मक प्रावधान है।“
इस परिचर्चा में अल्मोड़ा से रघु तिवारी, सीएसीएल की प्रदेश संयोजक नीलिमा भट्ट, कशिश आदि ने प्रतिभाग किया।

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