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Supreme court का बड़ा फैसला, ससुराल से मांगा हुआ कोई भी सामान या पैसा दहेज ही माना जाएगा

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Supreme Court की तरफ से दहेज के खिलाफ एक बड़ा फैसला सामने आया है। supreme court ने घर के निर्माण के लिए पैसे की मांग को भी दहेज बताते हुए अपराध करार दिया है। आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, दहेज शब्द को एक व्यापक अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए, ताकि एक महिला से किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी तरह की मूल्यवान चीज।

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निचली अदालत ने इस मामले में मृतक के पति और ससुर को आईपीसी (IPC) की धारा-304-बी (दहेज हत्या), आत्महत्या के लिए उकसाने और दहेज उत्पीड़न के तहत दोषी ठहराया था।

क्या है पूरा मामला
दरअसल, आरोपी मरने वाली महिला से घर बनाने के लिए पैसे की मांग कर रहा था, जो उसके परिवार के सदस्य देने में असमर्थ थे। समाज में एक निवारक के रूप में कार्य करने और दहेज की मांग के बड़े अपराध पर अंकुश लगाने के लिए एक provision, court के हिसाब से बदलाव सख्त से उदारवादी होना चाहिए।

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इसे लेकर महिला को लगातार परेशान किया गया, जिसके कारण उसने suicide कर लिया। इस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर Madras High court ने कहा, घर के निर्माण के लिए पैसे की मांग को दहेज की मांग के रूप में नहीं माना जा सकता है।

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एक महिला ही दूसरी को न बचाए, तो यह गंभीर अपराध

एक अन्य दहेज प्रताड़ना में आत्महत्या मामले में सास की अपील खारिज करते हुए supreme court ने कहा, जब एक महिला ही दूसरी महिला को न बचाए तो यह गंभीर अपराध है। Court ने सास को दोषी ठहराते हुए 3 महीने की सजा सुनाई। पीठ ने कहा, यह बेहद भयावह स्थिति है जब एक महिला अपनी ही बहू पर इस कदर क्रूरता करे कि वह आत्महत्या का कदम उठा ले।

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Registry अधिकारियों को supreme court के rule को अच्छी तरह जानना चाहिए: supreme court

एक अन्य मामले में supreme court ने कहा कि registry अधिकारियों को supreme court के rule को अच्छी तरह जानना चाहिए। Supreme court ने कहा कि जमानत order को रद्द किये जाने के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ आत्मसमर्पण से छूट की मांग करने वाली अर्जी दायर करने की आवश्यकता नहीं है।जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने ऐसे ही एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे application नियमित रूप से दायर किए जाते हैं जबकि इस तरह की process को अपनाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।

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यह केवल उन मामलों पर लागू होता है जहां याचिकाकर्ता को ‘किसी अवधि के कारावास की सजा दी जाती है’ और इसे जमानत रद्द करने के साधारण आदेशों के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता है। आपको बता दें कि महिला (गीता बाई) की मृत्यु उनके विवाह के सात साल के भीतर उनके ससुराल में हुई।