काम का पूरा दाम दो, हक और सम्मान दो नारे के साथ अधिकार और सम्मान अभियान चलाएंगी आशा वर्कर्स,30 सितंबर को किया जायेगा प्रदर्शन

Newsdesk Uttranews
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यूनियन की हवालबाग ब्लॉक की नयी कार्यकारिणी का गठन ललिता बिष्ट अध्यक्ष, पूजा बगड़वाल सचिव चुने गए

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अल्मोड़ा। ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की बैठक में बताया गया कि राज्य स्तर पर “काम का पूरा दाम दो, हक और सम्मान दो” नारे के साथ “अधिकार और सम्मान अभियान” चलाये जाने का निर्णय लिया गया। तय किया गया कि इस अभियान के तहत 30 सितम्बर को सभी जिलों, ब्लॉकों व पीएसी स्तर पर प्रदर्शन किया जायेगा। इस बैठक में यूनियन की हवालबाग ब्लॉक की 13 सदस्यीय नयी ब्लॉक कार्यकारिणी का गठन भी किया गया। जिसमें ललिता बिष्ट अध्यक्ष, सरस्वती नेगी उपाध्यक्ष, पूजा बगड़वाल सचिव, कमला रावत कोषाध्यक्ष, अनिता चौहान सहसचिव, हेमा नगरकोटी संगठन मंत्री व चन्द्रा बिष्ट, ममता तिवारी, दुर्गेश्वरी अधिकारी, अनिता नेगी, प्रेमा मेहरा, शान्ति नयाल, पुष्पा बिष्ट कार्यकारिणी सदस्य चुने गए
बैठक को संबोधित करते हुए उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल ने कहा कि आशाएं स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ बन चुकी हैं, स्वास्थ्य विभाग व सरकार के तमाम अभियान व सर्वे आशाओं के दम पर ही संचालित हो रहे हैं। आशा वर्कर्स का कार्य आकस्मिक सेवा की भांति है, रात बारह-एक-दो बजे जब भी गर्भवती महिलाओं को प्रसव पीड़ा होती है आशाओं को तत्काल दौड़ना होता है। पर इस सब के बावजूद न तो आशा वर्कर्स को कर्मचारी का दर्जा प्राप्त है और न ही उन्हें न्यूनतम मासिक वेतन मिल रहा है, यह घोर अन्याय और महिला श्रम का शोषण नहीं तो और क्या है?

उन्होंने कहा कि आशाओं की नियुक्ति मातृ शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए की गई थी, और सरकारी रिपोर्ट्स इस बात की गवाह हैं कि आशाएँ अपने काम में सफल रही हैं, परन्तु इसका इनाम उनपर काम का बोझ लादकर दिया गया है। मासिक वेतन देने के नाम पर सरकार हाथ खड़े कर देती है, जबकि आंध्र प्रदेश की सरकार ने वहाँ की आशाओं को राज्य मद से दस हजार रुपए मासिक मानदेय देने का फैसला किया है। इसी तरह उत्तराखंड सरकार को भी दस हजार रूपये प्रतिमाह राज्य मद से आशाओं को देने की घोषणा करनी चाहिये।

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यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ. कैलाश पाण्डेय ने कहा कि,मासिक वेतन मांग रही आशाओं को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि भी सरकार ने बंद कर दी है, जबकि लोकसभा चुनाव से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री ने स्वयं आशाओं को मिलने वाली वार्षिक प्रोत्साहन राशि को पांच हजार से बढ़ा कर सत्रह हजार करने की घोषणा की थी। परन्तु अब चुनाव के बाद सरकार ने वार्षिक प्रोत्साहन राशि बंद करने की घोषणा कर दी। यह आशाओं के साथ सरासर वादाखिलाफी है।
उन्होंने कहा कि, आशाओं को सरकार न तो राज्य कर्मचारी का दर्जा दे रही है न ही वेतनमान तब वार्षिक प्रोत्साहन राशि को बंद करने का औचित्य समझ से परे है. साथ ही आशाओं के साथ अस्पतालों में आमतौर पर सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता है, एक तो काम का बोझ और कोई मासिक वेतन नहीं उसपर अपमानजनक व्यवहार यह बिलकुल भी स्वीकार्य नहीं है, सरकार को इस पर रोक लगानी होगी।

इन्हीं सवालों को लेकर उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन ने संगठित रहो-प्रतिरोध करो अभियान चलाया था, जिसके साथ राज्य के मुख्यमंत्री को पूरे प्रदेश के विभिन्न जिला व ब्लॉक मुख्यालयों से ज्ञापन प्रेषित किये गए थे परन्तु सरकार द्वारा इसका कोई भी संज्ञान नहीं लिया गया जो कि काफी अफसोसजनक है।
तय किया गया कि यूनियन “अधिकार और सम्मान अभियान” के समापन पर सभी जिला, ब्लॉक व पीएसी स्तर पर प्रदर्शन किया जायेगा। यदि इसके पश्चात भी मांगे न मानी गई या न्यायसंगत समाधान नहीं किया गया तो आन्दोलन को तेज़ करते हुए अगले चरण में ले जाया जायेगा.

बैठक के माध्यम से प्रदेश सरकार से मांग की गई कि—आंध्र प्रदेश की सरकार की भांति उत्तराखंड सरकार भी दस हजार रूपये प्रतिमाह राज्य मद से आशाओं को देने की घोषणा करे, आशाओं को दी जाने वाली वार्षिक प्रोत्साहन राशि को पूर्व की भांति आशाओं को दिया जाय, आशाओं को रिटायरमेंट के बाद पेंशन का प्रावधान किया जाय तथा वर्तमान में रिटायर होने वाली आशाओं को न्यूनतम 500000 (पाँच लाख)रुपये धनराशि देने की व्यवस्था की जाय, मासिक मानदेय 2000 रूपये देने की घोषणा संबंधी राज्य सरकार के शासनादेश के अनुरूप पैसा आशाओं के खाते में तत्काल डाला जाय, आशाओं की विभिन्न मदों की बकाया राशि का तत्काल भुगतान किया जाय, सभी सरकारी अस्पतालों में महिला व बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन की नियुक्ति की जाय, जिससे मातृ-शिशु सुरक्षा सुनिश्चित हो सके तथा जनता को स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए प्राइवेट अस्पतालों में न भटकना पड़े. साथ ही सभी सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड व ब्लड टेस्ट की अनिवार्य व्यवस्था की जाय. जिससे अल्ट्रासाउंड व ब्लड टेस्ट के लिए आम लोगों और गर्भवती महिलाओं को परेशानी का सामना न करना पड़े, अस्पतालों में आशा वर्कर्स के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाय, इसके लिए राज्य सरकार की ओर से आदेश जारी कर सभी अस्पतालों में भेजा जाय, सभी सरकारी अस्पतालों में आशा घरों का निर्माण किया जाय. जहाँ-जहाँ आशा घर बन गए हैं उन्हें रात बिरात गर्भवती महिलाओं को लेकर आने वाली आशाओं के विश्राम हेतु खोला जाय व आशा घरों की समुचित सफाई की व्यवस्था की जाय, सभी आशाओं की ट्रेनिंग स्वास्थ्य विभाग द्वारा ही करायी जाय तथा ट्रेनिंग के दौरान पहले 350 रुपये प्रतिदिन का भुगतान आशाओं को दिया जाता था । अब 150 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है इसको पुनः 350 रुपये किया जाय।
बैठक में रेनू,आशा अधिकारी, मीना डांगी, रोमा देवी, हेमा नगरकोटी, नीलम, तारा चौहान, जानकी काण्डपाल, नंदी रौतेला, मंजू भट्ट, पुष्पा बिष्ट, सुनीता मेहरा, विमला डंगवाल, दीपा वर्मा, भगवती कपकोटी,नीमा, किरन आर्य, सीमा आर्य, शान्ति, चंद्रावती भंडारी, प्रेमा मेहरा, जानकी जोशी, रमा देवी समेत बड़ी संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रहीं।

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