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Uttarakhand- 26 गांवों में सामने आया लापरवाही का बड़ा मामला, गलत आदेश की वजह से लोगों को हुई ये मुश्किल

Newsdesk Uttranews
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सलीम मलिक

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रामनगर। विकासखंड रामनगर के 26 गांवों की कृषि भूमि के दाखिल-खारिज पर बीते दो साल से बिना किसी सक्षम आदेश के लगी रोक को जिलाधिकारी ने हास्यापद स्थिति बताते हुए दाखिल-प्रकिया पुनः आरम्भ करने के निर्देश दिये हैं।

बिना किसी सक्षम आदेश के यह रोक बीते दो सालों से चली आ रही थी, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग न केवल आवाज़ मुखर किये हुए थे, बल्कि इस रोक को हटाने के लिए धरना-प्रदर्शन भी कर चुके थे।

इस हास्यापद स्थिति की वजह बना उच्च न्यायालय का एक आदेश जो कि न्यायालय ने फल पट्टी के संरक्षण के आलोक में दिया था। लेकिन नौकरशाही ने आदेश का बिना अध्ययन किये इलाके के 26 गांवों में कृषि भूमि का दाखिल-खारिज किये जाने पर जबरन बिना किसी आदेश के रोक लगा दी।

इस दिलचस्प मामले के तार राज्य की पहली निर्वाचित सरकार से जुड़ते हैं, जब रामनगर विकासखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में फैले आम-लीची के बगीचो के संरक्षण के लिए सरकार इन गांवों को फल-पट्टी घोषित किया था। फल-पट्टी घोषित होने के बाद भी इन गांवों में आवासीय कॉलोनी बसाने के नाम पर बेरहमी से कटते आम-लीची के बागान को बचाने की गुहार 2018 में एक पीआईएल के माध्यम से उच्च न्यायालय में लगाई गयी।

वर्ष 2019 में उच्च न्यायालय ने फल-पट्टी के संरक्षण के लिए ज़रूरी निर्देश देते हुए शासन-प्रशासन के लिए कुछ हिदायतें दी। सारे नियम-कानून ठेंगे पर रखकर आम-लीची के बगीचों के अंधाधुंध कटान पर उच्च न्यायालय का हिदायत भरा आदेश आते ही नौकरशाही में हड़कम्प मच गया।

जिसके बाद न्यायालय का गम्भीरता से अध्ययन किये बिना नौकरशाही ने इसे कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त से जुड़ा मानते हुए कृषि भूमि के दाखिल-खारिज पर ही रोक लगा डाली। दाखिल-खारिज पर रोक लगाने के लिए भी किसी स्तर से कोई आदेश जारी नहीं किया गया।

अधिकारी व जनप्रतिनिधि सभी स्तर पर बस यह मान लिया गया कि दाखिल-खारिज पर रोक उच्च न्यायालय के आदेश के कारण लगी हुई है। जबकि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में दाखिल-खारिज पर कोई रोक नहीं लगाई थी।

अब जनता की कई बार की मांग के बाद सरकार ने जब इस मामले की सुध लेते हुए दाखिल-खारिज पर लगी रोक के आदेश की खोजबीन करवाई तो रामनगर तहसील कार्यालय, उपजिलाधिकारी कार्यालय, जिलाधिकारी कार्यालयों में दाखिल-खारिज को रोकने वाले आदेश की युद्धस्तर पर खोजबीन आरम्भ की गयी।

तीनों कार्यालय के दर्जनों बाबू आदेश को तलाशने के लिए फाइलों के पुलंदो में माथापच्ची करते रहे लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी बाबुओं को इस प्रकार का कोई आदेश नहीं मिल पाया।

बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के अभाव में क्षेत्र में दाखिल-खारिज न होने की स्थिति स्पष्ट होने पर शासन-प्रशासन में नीचे से ऊपर तक सभी के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति बन गयी। जिसके बाद खुद जिलाधिकारी धीरज गब्र्याल ने विकासखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में कृषि भूमि के दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को हाईकोर्ट के आदेशों को ध्यान में रखते हुए जारी रखने के आदेश दे दिये।

अपने आदेश में जिलाधिकारी ने बिना किसी आदेश के दो साल तक इन गांवों की कृषि भूमि का दाखिल-खारिज न होने को हास्यापद करार दिया।