अहमदाबाद के मेघानी नगर इलाके में सोमवार सुबह उस वक्त अफरा-तफरी मच गई जब एयर इंडिया का एक यात्री विमान टेक-ऑफ के कुछ ही क्षणों बाद रिहायशी इलाके में आकर गिर गया। विमान में कुल 242 लोग सवार थे। अचानक हुए इस हादसे से इलाके में अफरा-तफरी मच गई और मौके से काले धुएं का विशाल गुबार उठता देखा गया। चारों ओर चीख-पुकार मच गई और लोग सहम गए। राहत-बचाव का कार्य युद्धस्तर पर जारी है, जबकि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अहमदाबाद एयरपोर्ट के आसपास के तमाम रास्तों को फिलहाल बंद कर दिया गया है। इस हादसे ने एक बार फिर लोगों के मन में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि हवाई यात्रा करते समय विमान में कौन सी सीट सबसे सुरक्षित मानी जाती है, जिससे जान बचने की संभावना सबसे अधिक हो।
पिछले कुछ वर्षों में हुए विमान हादसों और उनके अध्ययन से पता चलता है कि अक्सर विमान का पिछला हिस्सा अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित रहता है। टेक-ऑफ या लैंडिंग के समय विमान जब ज़मीन से टकराता है तो पहला असर आगे के हिस्से पर पड़ता है जिससे वहां बैठे यात्रियों को गंभीर चोटें आती हैं या उनकी मौत हो जाती है, जबकि कई बार पीछे का हिस्सा टक्कर के प्रभाव से बच जाता है या कम क्षतिग्रस्त होता है। दक्षिण कोरिया और कजाखस्तान में हुए दो अलग-अलग हादसों में भी पीछे की सीटों पर बैठे यात्री जिंदा बचे थे, जबकि आगे और बीच में बैठे यात्री जान गंवा बैठे। टाइम मैगजीन के एक अध्ययन में यह सामने आया कि पिछले 35 वर्षों के विमान हादसों में पीछे की सीटों पर मौत का खतरा 28% रहा, जबकि अन्य हिस्सों में यह आंकड़ा 44% तक पहुंच गया। हालांकि, यह भी समझना जरूरी है कि हर दुर्घटना की प्रकृति अलग होती है और उसमें पायलट का निर्णय, मौसम की स्थिति, रनवे की बनावट और हादसे के समय विमान की गति जैसी कई बातें अहम भूमिका निभाती हैं। इसलिए सुरक्षा की गारंटी केवल सीटों से तय नहीं होती, बल्कि यात्रियों की सजगता, सुरक्षा निर्देशों का पालन और आपात स्थिति में समझदारी से लिया गया फैसला ही जान बचाने में मददगार साबित होता है।