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पिथौरागढ के नैनी सैनी हवाई पट्टी की कहानी….

Newsdesk Uttranews
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बरसों पहले की बात है जब पिथौरागढ़ सोर घाटी के नैनी-सैनी सेरे में धान की फसल लहलहाती थी. बढ़िया सिंचित जमीन, चौरस पट्टी। इसमें तब बांजा पड़ गया जब ये तय हुआ कि इतनी दूर तक फैली जमीन पर तो हवाई जहाज उतर सकता है.आस-पास के पहाड़ भी संकरे नहीं. बस खुला आसमां साफ दीखता है। खेती की ये जमीन पहाड़ के किसानों की थी।

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इन परिवारों का जीवन निर्वाह कृषि, साग सब्जी, मसाले उगा लेने के साथ पशु पालन था, जिसके बूते वो कब से अपने बाल बच्चों को बेहतर पढ़ाई लिखाई के अपने परिवार को पालने पोसना के हर जतन कर रहे थे। इनकी राठ में सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द के सिपाही भी थे, तो कई ब्रिटिश फ़ौज का हिस्सा भी थे।स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन की कहानियाँ भी कई घरों के बुजुर्गों की आपबीती थी। मिलिट्री और पैरा मिलिट्री फ़ोर्स में भी काफी तादात थी. तब का पहाड़ मनी आर्डर इकॉनमी का मॉडल था।


फिर नैनी सैनी के इन खेतों पर हवाई पट्टी की नज़र लगी। लम्बे समय तक बातचीत, प्रलोभन दबाव, विकास की सुनहरी सोच का प्रलोभन, पूरी सोर घाटी का कायाकल्प। यहाँ के बाशिदों ने अपने खेतों का मुआवजा भले ही जेब में डाला पर ये अफ़सोस आज भी धुंधली पड़ रही आँखों में साफ झलकता है कि क्या करते? कितना विरोध किया कि बाप दादा की जमीन हवाई पट्टी बनाने के लिए नहीं देंगे, अड़े भी रहे। अखबार में भी लगातार खबर बनी। हो हल्ला भी मचा, स्कूल कॉलेज के लड़कों ने भी कई बार आवाज उठाई। प्रशासन तक पहुंचे उनसे विनती की, गुस्सा भी दिखाया, पर कौन सुने।


कोई अनूप पांडे होते थे तब डीएम, उन्होंने तो दिमाग मून दिए सबके। वैसे भी मुलायम सिंह का राज था. पता नहीं ऐसी क्या-क्या तिकड़म चलाई इन लोगों ने कि सब चुप्पे हो गए।
और एक दिन इसी नैनी सैनी में खूब बड़ा पंडाल लगा,वंदना गायी स्कूली बच्चों ने। बड़ों ने झोड़ा चांचरी पर कदम चलाये। नाच गाने हुए. कुछ अफसर अँग्रेजी भी झाड़ गए और इनके बीच मुख्यमंत्री अपनी तोतली लटपटी जुबान से हवाई जहाज के आने के पता नहीं क्या-क्या फायदे गिना गए। ये जो हो जाएगा वो जो हो जाएगा। अब कहाँ इन खेतों में साल भर की दो फसल. अब तो घेरबाड़ चारदीवारी हुई।


सब देखते रहे कब आएगा उड़न खटोला। कब सोर के भाग जगेंगे. पर कहाँ, थोड़ा काम शुरू हुआ कि पता चला ये हवा पट्टी तो छोटी पड़ रही। इसपर भौत ही छोटा जहाज आएगा सो अब अगल बगल की और जमीन पर कब्ज़ा होगा, और जमीन घेरी जाएगी, फिर वही चक्कर शुरू, जितना कहो जमीन नहीं देंगे उतनी बड़ी गुड़ की डली। कई चाहते भी थे कि रकम ज्यादा मिले तो शहर में मकान डाल दें, गेहूं चावल तो सरकार राशन कार्ड में सस्ता दे ही रही।


फिर ये हवा पट्टी बनने से बाकी रहे बचे नैनी सैनी, देवल, देवल समेत का क्या भला होना होगा? फैलेगा तो शहर. तो जमीन फिर ली गई, फिर ली गई. हां हो हवाई जहाज भी तब आया जब आकाश तकते सालों गुजर गए. कभी कंपनी ने काम बंद किया कभी किसी विभाग की अनुमति प्रतीक्षा में रही। आसमां को एरोप्लेन आने की इंतजारी रही।