अल्मोड़ा। “पर्यावरण एक सामाजिक मुद्दा है। इस पर केवल औपचारिक चर्चा से काम नहीं चलेगा।
उत्तराखंड चिपको वन बचाओ जैसे जन आंदोलनों से पर्यावरण की ओर देश व दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है लेकिन वर्तमान में विकास का मॉडल हमें विनाश की ओर ले जा रहा है।”
“उत्तराखंड जैसा संवेदनशील प्रदेश पूंजीपतियों कॉरपोरेट जगत की निर्मम लूट से बेहाल है। जबकि प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों जल जंगल जमीन की समूची व्यवस्था स्थानीय समाज के अधिकार में होनी चाहिए थी।”
यह विचार पर्यावरण दिवस पर राजनैतिक व सामाजिक संगठनों की ओर से नगर के मालरोड स्थित सालम समिति के राम सिंह धौनी पुस्तकालय सभागार में गुरुवार को आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए।
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि पर्यावरण की औपचारिक बात हो रही है जबकि यह समाजिक मुद्दा है। उत्तराखंड प्राकृतिक संशाधनों पर स्थानीय समाज का हक होना चाहिए। कहा कि चिपको आंदोलन का मूलतत्व संसाधनों पर जनता का अधिकार ही रहा है। उन्होंने कहा कि सामान्य लोगों के हितों की बात जब तक नहीं होगी पर्यावरण को लेकर परिस्थितियां अनुकूल नहीं हो सकती हैं।
इतिहासविद् डॉ निर्मल जोशी ने उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थिति को पर्यावरण के लिए संवेदनशील बताते हुए ग्लेशियरों के पीछे खिसकने जैसी घटनाओं को सामने रखा। कहा कि स्थानीय हालातों को ध्यान में रख, पर्यावरण को केंद्र में रख कर पर्यावरण संरक्षण के लिए एक ठोस नीति बनाने की दरकार है। इसमें स्थानीय लोगों की राय को शुमार किया जाना चाहिए। इस प्रकार की संगोष्ठियों से आने वाली भावनाएं आम जन की राय जानने का माध्यम बन सकती हैं।
वक्ताओं में एडवोेेकेट माधो सिंह बिष्ट, कर्मचारी नेता सीएम भट्ट, सालम समिति के अध्यक्ष राजेंद्र रावत, शिक्षाविद् सीएस बनकोटी, प्रेस क्लब के सचिव रमेश जोशी, एक्स पैरामिलट्री संगठन के मनोहर सिंह नेगी, वरिष्ठ रंगकर्मी पत्रकार नवीन बिष्ट, शंकर दत्त पांडे, सोनी मेहता, पत्रकार जगदीश जोशी, अशोक पांडे, डीके कांडपाल, उछास की भावना पांडे, दीपांशु पांडे, ममता जोशी, वसीम अहमद, सुरेंद्र धामी, राहुल जोशी, आशा साह, एडवोकेट नारायण राम, धीरेंद्र पंत, मोहम्मद साकिब, पत्रकार अशोक पांडे, विनोद तिवारी, ममता बिष्ट, भारती पांडे आदि ने विचार रखे।