देश की दो सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां अमेजन और फ्लिपकार्ट अब कानूनी मुश्किलों में फंसती दिख रही हैं। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने इन कंपनियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी शुरू कर दी है। आरोप है कि दोनों प्लेटफार्मों पर बिना BIS प्रमाणन के उत्पादों की बिक्री की जा रही थी।
इस साल मार्च में BIS की टीमों ने चेन्नई स्थित अमेजन और फ्लिपकार्ट के वेयरहाउसों पर छापेमारी की थी। इस कार्रवाई में करीब 36 लाख रुपये मूल्य का ऐसा सामान जब्त किया गया था, जो BIS सर्टिफाइड नहीं था। जब्त किए गए उत्पादों में इंसुलेटेड फ्लास्क, मेटल की बोतलें, बेबी डायपर, सीलिंग फैन और कैसरोल जैसे कई घरेलू इस्तेमाल के सामान शामिल थे।
BIS अधिनियम 2016 के तहत, ब्यूरो को यह अधिकार प्राप्त है कि वह गैर-प्रमाणित सामान जब्त कर सके और उस पर कंपनियों से 10 गुना तक मुआवजा भी वसूल सके। BIS की योजना है कि इस मामले को पहले एक मजिस्ट्रेट अदालत में दायर किया जाए।
सूत्रों के मुताबिक, यदि अदालत में BIS के पक्ष में फैसला आता है तो अमेजन और फ्लिपकार्ट को जब्त किए गए सामान की कुल कीमत का दस गुना तक मुआवजा देना पड़ सकता है। यानी 36 लाख रुपये के सामान पर कंपनियों को 3.6 करोड़ रुपये तक की भरपाई करनी पड़ सकती है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाली BIS संस्था भारत में उत्पादों की गुणवत्ता और मानक सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होती है। इस संस्था का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाला हर सामान निर्धारित मानकों पर खरा उतरे।
BIS ने साफ किया है कि वह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। छापेमारी में जिन उत्पादों को जब्त किया गया, उनमें से किसी पर भी अनिवार्य BIS मार्किंग नहीं मिली। ऐसे में यह कार्रवाई उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और बाजार में गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिहाज से एक बड़ी पहल मानी जा रही है।
अब यह देखना होगा कि अदालत में मामला किस दिशा में बढ़ता है और क्या वाकई ई-कॉमर्स कंपनियों को इतनी बड़ी राशि के मुआवजे का सामना करना पड़ेगा या नहीं। फिलहाल अमेजन और फ्लिपकार्ट की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।