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मजबूत इरादे,भरपूर हौसलें की मिशाल है,देश के पहली दृष्टिबाधित आइएएस प्रांजल पूरे देश में मिल रही है सराहना

Newsdesk Uttranews
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डेस्क। लक्ष्य प्राप्ति के लिए मजबूत इरादा और भरपूर हौसला ही जरूरी होता है यह दोनों चीजें आप में हैं तो दुनिया की कोई मुश्किल और परेशानी आपका रास्ता अवरुद्ध नहीं कर सकती है।
यह सभी बातें महाराष्ट्र की रहने वालीं प्रांजल पाटिल पर एकदम सटीक बैठतीं हैं। प्रांजल ने महज 6 वर्ष की उम्र में अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी, लेकिन अपने सपनों को कभी अपनी आंखों के सामने से ओझल नहीं होने दिया। आखिरकार उन्हें उनकी मंजिल मिल ही गई। प्रांजल पाटिल ने आईएएस बनकर न केवल अपने सपनों में रंग भरा, बल्कि देश की पहली दृष्टिबाधित आईएएस अफसर बनने का गौरव भी हासिल किया है। अब प्रांजल ने बीते 14 अक्तूबर 2019 को तिरुवनंतपुरम में उप कलेक्टर का पद ग्रहण किया है।
इस प्रेरणादयक कहानी को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली प्रांजल की आंखों की रोशनी बचपन से ही कमजोर थी। लेकिन 6 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी आंखें पूरी तरह से खो दी। जिंदगी में हुए इतने बड़े बदलाव के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज वह देश-दुनिया की सभी लड़कियों के लिए मिसाल बन गईं हैं। बचपन से ही कड़ी मेहनत में विश्वास रखने वालीं प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773 वां रैंक हासिल की थी।
पद ग्रहण करने के बाद देश की पहली दृष्टिबाधित महिला आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल ने सीख दी है कि हमे कभी भी पराजित महसूस नहीं करने और हिम्मत नहीं हारने की सीख दी है। केरल काडर की 30 वर्षीय अधिकारी ने कहा, हमारे बुलंद हौसले और निरंतर प्रयासों से एक दिन वह मौका जरूर मिलता है जो हमें कामयाबी की ओर ले जाता है। इसलिए कभी खुद को पराजित महसूस नहीं करना चाहिए।
प्रांजल पाटिल ने बताया कि बेशक मैं आंखों की रोशनी न होने के चलते इस दुनिया के रंगों को देख नहीं सकती, लेकिन उन्हें महसूस करती हूं। पिछला साल बेहद कड़वे अनुभवों से बीता। प्रांजल ने भावुक होते हुए बताया कि महज छह साल की उम्र में अचानक आंखों की रोशनी चली जाने के बाद से मैं अपनी मां ज्योति पाटिल की आंखों से दुनिया को देख रही हूं। यूपीएससी परीक्षा 2015 में 773 रैंक लाने के बाद भी रेलवे मंत्रालय ने मुझे नौकरी देने से इनकार कर दिया। इसके लिए उन्होंने मेरी सौ फीसदी नेत्रहीनता को आधार बनाया था। इस घटना के बाद मैंने जिद ठान ली थी कि मैं अपने सपने को टूटने नहीं दूंगी। यूपीएससी परीक्षा की दोबारा तैयारी शुरू की और मैंने 124वां रैंक हासिल की। प्रांजल के पिता एलजी पाटिल सरकारी कर्मचारी हैं, जबकि मां ज्योति घरेलू महिला हैं।
उन्होंने दो बार यूपीएससी परीक्षा पास की। 2016 में उन्हें ऑल इंडिया 773वीं रैंक हासिल हुई थी। उन्होंने दोबारा मेहनत की और पिछले साल रैंकिंग में सुधार के साथ 124वां स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एर्नाकुलम का सहायक कलक्टर नियुक्त किया गया।
बताते चले कि स्नातक के दौरानप्रांजल और उनके एक दोस्त ने पहली दफा यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा। प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा से संबंधित जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं। उस वक्त प्रांजल ने किसी से जाहिर तो नहीं किया, लेकिन मन ही मन आईएएस बनने की ठान ली। बीए करने के बाद वह दिल्ली पहुंचीं और जेएनयू से एमए किया। इस दौरान प्रांजल ने आंखों से अक्षम लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर ‘जॉब ऐक्सेस विद स्पीच’ की मदद ली।

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