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हिंदी दिवस पर विशेष— “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल”

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डॉ बसुन्धरा उपाध्याय


भारतवर्ष बहुभाषी देश है। भाषा की दृष्टि से भारत बहुत समृद्ध देश माना जाता है।भाषा किसी भी राष्ट्र और समाज की आवाज नहीं होती बल्कि यह तो उस देश की संस्कृति को जीवित रखती है।यहाँ हिंदी के अलावा और तमाम भाषाएं हैं।

कोई भी भाषा स्वतंत्र होकर आगे बढ़ ही नहीं सकती।हिंदी का मूल संस्कृत है। कोई भी भाषा जब विस्तार कर लेती है और उस विस्तार करने के सहयोग के क्रम में अपने साथ अपनी सहयोगी बोलियों (कटुम्ब) को भी साथ लेकर चलती है।


आज के समय में किसी भी भाषा के लिये साहित्य आवश्यक नहीँ है। अगर उस भाषा को जीवित रखना है तो उस भाषा को रोजगार परख बनाइये। नहीं तो वह धीरे धीरे सिमट जाएगी। किसी भाषा को हम कई कारणों से सीखते हैं-सबसे बड़ा कारण है कि जीविकोपार्जन का। अतः हिंदी में भी रोजगार के अवसर हों। आज हिंदी भाषा को वैश्विक रूप प्राप्त हो गया है। सरकार पहल भी कर रही है।हिंदी में आज कई तरह के रोजगार मिल रहे हैं।जहाँ पहले कभी अंग्रेजी में ही कार्य होते थे आज वहाँ हिंदी में भी कार्य किये जाते हैं।सरकारी दफ्तरों में हिंदी में कामकाज करना अब अनिवार्य कर दिया गया है।आदेश, नियम ,अधिसूचना, प्रतिवेदन,प्रेस -विज्ञप्ति,निविदा,अनुबंध तथा विभिन्न प्रारूपों को हिंदी में बनाना अब अनिवार्य है। आज केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के सभी विभागों उपविभागों में हिंदी अधिकारी, अनुवादक, प्रबन्धक, उप-प्रबन्धको जे रूप में रखे जा रहे हैं।सभी राष्ट्रीय बैंकों में हिंदी अधिकारी के पद सुनिश्चित हैं।अनुवाद में भी आज रोजगार के अवसर हैं।

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आज पत्रकारिता ,फ़िल्म में, तकनीकी के रूप में हिंदी का प्रयोग हो रहा है।आज समाचार पत्र के अतिरिक्त हिंदी चैनल भी हैं जो हंमे रोजगार के अवसर दे रहा है।आज हिंदी का दायरा बढ़ता ही जा रहा है।आज हिंदी बाजार की जरूरत बन चुकी है। कभी सोचा भी नहीं था कि हम हिंदी में टाईप भी कर संकेगे पर आज हम मोबाइल में भी हिंदी में टॉइप करते हैं।

आज चहुं ओर हिंदी बढ़ रही है।भाषा चेतना के कारण हिंदी ने अपना स्थान प्राप्त कर लिया है।आज हिंदी दुनिया की तीसरी भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है।आज चिंतनीय विषय यह है कि हमारी लगभग 20 विलुप्त होने की अवस्था मे हैं।अधिकतर भाषाएं आदिवासी और बंजारा समुदाय में बोली जाती हैं।यदि यह भाषाएं विलुप्त हो गईं तो इन समुदायों की संस्कृति ,रीति रिवाज, गीत संगीत, स्वत ही विलुप्त हो जाएगा।अतः वर्तमान में यही आवश्यकता है कि हम अपने मौलिक विचार अपनी मात्र भाषा मे रखें।अंग्रेजो से आजादी तो मिली परन्तु वैचारिक रूप से हम अंग्रेजी के आज भी उनके गुलाम है। में मानती हूँ कि भाषायी ज्ञान होना चाहिए परन्तु जो भाव हम अपनी भाषा के द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं अन्य भाषा मे नहीं कर सकते।

लेखिका के बारे में — डॉ बसुन्धरा उपाध्याय,लक्ष्मण सिंह महर परिसर पिथौरागढ़ उत्तराखंड में हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक के तौर पर कार्यरत है।

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