सोसाइटी में बना डाला मिनी फॉरेस्ट: भीषण गर्मी में भी ‘ फील हो रहा कूल-कूल

फरीदाबाद की एक सोसाइटी इन दिनों शहर भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। जहां एक ओर पूरा देश भीषण गर्मी की चपेट में…

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फरीदाबाद की एक सोसाइटी इन दिनों शहर भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। जहां एक ओर पूरा देश भीषण गर्मी की चपेट में है और लोग पहाड़ों व ठंडे प्रदेशों की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं फरीदाबाद की समर पाम सोसाइटी (Summer Palm Society) के निवासी अपनी सोसाइटी में ही ‘कूल-कूल’ महसूस कर रहे हैं। कैसे? उन्होंने अपनी सोसाइटी को एक हरे-भरे मिनी फॉरेस्ट में बदल दिया है


यह कोई जादू नहीं, बल्कि जापान की एक खास तकनीक का कमाल है, जिसने समर पाम सोसाइटी को गर्मी के इस मौसम में भी प्राकृतिक रूप से ठंडा और हरा-भरा बनाए रखा है। आइए जानते हैं इस अद्भुत पहल के बारे में विस्तार से।


मियावाकी तकनीक का कमाल: 4 साल में 1200 से अधिक पौधे बने घने पेड़
फरीदाबाद की समर पाम सोसाइटी में रहने वाले जागरूक निवासियों ने मिलकर 500 स्क्वायर यार्ड के क्षेत्र में 1200 से भी अधिक पौधे लगाए हैं। इनमें मुख्य रूप से नीम, पीपल और जामुन जैसे पेड़ शामिल हैं, जो अब 4 साल में घने वृक्षों में तब्दील हो चुके हैं। यह सब संभव हो पाया है जापानी मियावाकी तकनीक (Miyawaki Technique) के जरिए।


जैसा कि ईटीवी भारत में छपी एक खबर के अनुसार सोसाइटी की निवासी बबीता सिंह ने बताया, “फरीदाबाद की जितनी भी सोसाइटी हैं, उन सब में हमारी सोसाइटी में ग्रीनरी (हरियाली) सबसे ज्यादा है। चार साल पहले हमने मिलकर फैसला लिया था कि क्यों न अपनी सोसाइटी में ही मिनी फॉरेस्ट बनाया जाए। इस पर हमने काफी रिसर्च की, कई लोगों से मिले और आखिरकार मियावाकी तकनीक को अपनाया।”


बबीता सिंह ने आगे मियावाकी तकनीक के बारे में समझाते हुए कहा, “यह एक जापानी तकनीक है जिसमें कम जगह में छोटे-बड़े पौधों को पास-पास लगाकर एक घना जंगल तैयार किया जाता है। हमारे यहां लगाए गए पौधों में 100% सफलता मिली है, जो आमतौर पर पेड़-पौधे लगाने के बाद नहीं देखने को मिलती। यह सब मियावाकी तकनीक की वजह से ही संभव हुआ है।”


कचरे से खाद: ‘वेस्ट’ नहीं, ‘बेस्ट’ मैनेजमेंट!
इस मिनी फॉरेस्ट की खासियत सिर्फ पेड़-पौधे ही नहीं, बल्कि यहां का कचरा प्रबंधन भी है। सोसाइटी में 700 से अधिक घर हैं और इन घरों से निकलने वाले गीले व सूखे कचरे को अलग-अलग करके एक सोलर-संचालित मशीन में डाला जाता है। यह मशीन 40 दिनों के भीतर कचरे को उच्च गुणवत्ता वाली खाद में बदल देती है। इस खाद का उपयोग इन्हीं पेड़-पौधों में किया जाता है। बबीता सिंह बताती हैं, “हमारे यहां कूड़ा भी वेस्ट नहीं जाता। यहां तक कि हम कागज के थैलों से भी खाद बनाते हैं।” यह दिखाता है कि कैसे एक सोसाइटी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकती है।

एक सपना, एक रिसर्च और एक हरा-भरा भविष्य
समर पाम सोसाइटी के निवासी प्रभदीप आनंद, जो पिछले 8 सालों से हर साल 100 पेड़ लगाते आ रहे हैं, ने बताया कि उन्होंने ही सबसे पहले सोसाइटी में मिनी फॉरेस्ट बनाने का विचार रखा था। ईटीवी भारत की खबर के अनुसार, प्रभदीप ने कहा, “मैंने सोसाइटी के लोगों से बात की और वे इस मुहिम में जुड़ने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद मैंने मिनी फॉरेस्ट बनाने को लेकर रिसर्च करना शुरू किया। हमने वन विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटे, जहां से जानकारी मिली, वहां से इकट्ठा की और इसी दौरान मुझे मियावाकी तकनीक के बारे में पता चला।”


प्रभदीप आनंद का मानना है कि बढ़ते प्रदूषण, हीट वेव और बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने में पेड़-पौधे ही सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। उनका कहना है, “अगर जंगल खत्म हो जाएंगे तो धरती पर इंसान का रहना भी मुश्किल हो जाएगा। हम सबको चाहिए कि अपने आस-पास पेड़ जरूर लगाएं।”
उन्होंने सरकार से भी अपील की है कि वे ऐसे और स्थानों को उपलब्ध कराएं जहां इसी तरह के मिनी फॉरेस्ट का निर्माण किया जा सके।


गर्मी में भी ‘नेचुरल AC’ का एहसास
वहीं, सोसाइटी के एक और निवासी पीवी वर्मा ने बताया कि मियावाकी तकनीक से लगाए गए पौधों पर विदेशों में भी रिसर्च हुई है और यह साबित हुआ है कि यह पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाती है। पीवी वर्मा के अनुसार, “जहां बाहर का तापमान 42 डिग्री है, वहीं मिनी फॉरेस्ट के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से बहुत कम मिलता है। यही वजह है कि मियावाकी तकनीक इतनी सफल है। इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विदेशों में भी वन तैयार किए जाते हैं।”


यह मिनी फॉरेस्ट न सिर्फ सोसाइटी के निवासियों को भीषण गर्मी से राहत दे रहा है, बल्कि यह अन्य सोसाइटियों और शहरों के लिए भी एक बेहतरीन उदाहरण बनकर उभरा है। समर पाम सोसाइटी के लोगों ने प्राकृतिक तरीके से अपने आसपास के माहौल को ठंडा रखा है और यह पहल निश्चित रूप से आने वाले समय में और भी लोगों को प्रेरणा देगी। फरीदाबाद में इस ‘मिनी फॉरेस्ट’ की चर्चा हर जुबान पर है!