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श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)— श्रद्धापूर्वक पूर्वजों को याद करने का पक्ष

Newsdesk Uttranews
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Shraddha Paksha – The favor of reverentially remembering ancestors श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

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अल्मोड़ा, 25 अगस्त 2020— हिंदू धर्म में गर्भधारण से मृत्यू तक कई परंपराएं या संस्कार मौजूद हैं। यह ऐसा धर्म है जो मृत्यु या जातक के देहत्याग करने के बाद भी कई परंपराओं का आयोजन करता है खासकर अपनी वंशावली या पूर्वजों के निमित्त इस धर्म में पूरा एक पखवाड़ा या पक्ष इसी कार्य के लिए रखा गया है। जिसे श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष कहा जाता है(श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

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इस पक्ष को पितृ पक्ष,श्राद्ध पक्ष या कई स्थानों पर 16 श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। पूर्णिमा तिथि इस श्राद्ध पक्ष की पहली ​तिथि होती है जबकि आमावस्या को पितृ विसर्जन कहा जाता है यानि आमावस्या इस पक्ष का अंतिम दिन होता है। मान्यताओं और नियमों के मुताबि​क हर दिवंगत व्यक्ति की मृत्यु की तिथि इस एक पक्ष में पूरा हो जाती है।

श्राद्ध पक्ष पितृ पक्ष
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इसमें भी पुरुष और महिलाओं के लिए एक—एक दिन निश्चित किए गए हैं। चक्र ऐसा बनाया गया है कि हर व्यक्ति जो अपने दिवंगत माता पिता या वंशावली पूर्वज को याद करना चाहता है वह इस एक पक्ष में कर सकता है।यह ऐसा धर्म है जो मृत्यु या जातक के देहत्याग करने के बाद भी कई परंपराओं का आयोजन करता है खासकर अपनी वंशावली या पूर्वजों के निमित्त इस धर्म में पूरा एक पखवाड़ा या पक्ष इसी कार्य के लिए रखा गया है। जिसे श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष कहा जाता है।(श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष))

श्राद्ध कर्म ऐसा कर्म है जिसे मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है। हालांकि हर हिन्दु पंचाग की प्रत्येक माह में आमावस्या तिथि आती है इस दिन को श्राद्ध कर्म दिवस भी कहते है लेकिन भाद्रपद मास यानि भादो माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिये अपने पूर्वज़ों को के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष) का महत्व

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिये। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि इस पूरे पखवाड़े भर लोग अपने दिवंगत पूर्वजों यानि माता पिता का श्राद्ध तर्पण आदि करते हैं। तीर्थ स्थलों में भी इस पूरे पक्ष में काफी भीड़ भाड़ रहती है। मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाये तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है। जब जातक सफलता के बिल्कुल नज़दीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं। इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है। श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

मृत्यु की तिथि अनुसार किया जाता है श्राद्ध

श्राद्ध पक्ष में पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म उनकी मृत्यु की तिथि के अनुसार किया जाता है। या​नि 15 दिनों में के अंतराल में एक पूर्णिमा और आमावस्या के अलावा जितनी भी ​तिथियां होती हैं उन तिथियों में मृतक की मृत्यु तिथि को याद करते हुए श्राद्ध कर्म कि किये जा सकते हैं । मान लीजिए कोई व्यक्ति साल में किसी भी महिने पूर्णिमा के दिन दिवंगत हुआ है तो पितृ पक्ष में पूर्णिमा के दिन उसका श्राद्ध होगा। इ​सी तरह द्वितीया के दिन दिवंगत होने वाला का श्राद्ध द्वितीया को,तृतीया का श्राद्ध ​तृतीया को होगा इसी तरह चतुर्थी का श्राद्ध चतुर्थी को,पंचमी का पंचमी को,षष्टी का षष्टी को और सप्तमी का सप्तमी को होगा।

इसी तरह अन्य तिथियों का श्राद्ध उसी तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाएगा। आमावस्या के दिन अंतिम श्राद्ध होगा इस तिथि को किसी कारणवश जिसके श्राद्ध छूट जाएंगे उनका श्राद्ध किया जा सकता है। यह कई स्थानों में मान्यता है। श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

अष्टमी को पुरुष और नवमी को महिला पितृ का होता है श्राद्ध

श्राद्ध के पूरे पाक्षिक अवधि में दो तिथियां ऐसी भी होती है जो महिला पुरुषों के लिए आरक्षित होती हैं। यानि पुरुष के लिए अष्टमी और महिला के लिए नवमी की तिथि आरक्षित होती है। यानि यदि किसी श्राद्ध कर्ता के माता पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी हो तो वह इन तिथियों का इस्तेमाल श्राद्ध कर्ता कर सकता है यानि पिता के श्राद्ध के लिए अष्टमी और माता के श्राद्ध के लिए नवमी की तिथि का प्रयोग किया जाएगा। इन ​पाक्षिक श्राद्धों को पार्वण श्राद्ध भी कहा जाता है। इस कारण अष्टमी और नवमी का श्राद्ध तिथि काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन दो दिनों को कई लोग आम बोलचाल में कौतिक श्राद्ध भी कहते हैं। श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

एकापार्वण श्राद्ध का भी है विकल्प

श्राद्ध पक्ष साल में एक ही बार आता है लेकिन जीवन मरण कभी भी हो सकता है ऐसी स्थिति में श्राद्धों के दौरान यदि किसी जातक की मृत्यु हो जाए तो उसकी वार्षिक तिथि और श्राद्ध पक्षीय तिथि एक ही दिन हो जाएगी। ऐसे में श्राद्ध पर्व के दिन होने वाले श्राद्ध को एकोपार्वण श्राद्ध कहा जाता है। इस श्राद्ध में ​पिंडदान के लिए पिंडो की संख्या भी अलग—अलग होती है। श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

इस बार के श्राद्ध तिथियां पितृ पक्ष 2020

पूर्णिमा का श्राद्ध 1 सिंतबर को होगा यानि एक सितंबर से श्राद्ध शुरू हो जाएंगे। 17 सितंबर को आमावस्या का श्राद्ध होगा।शास्त्री पूरन चन्द्र जोशी ने बताया कि इस बार अष्टमी का श्राद्ध 10 सितंबर को तथा नवमी का श्राद्ध 11 सितंबर को होगा।श्राद्ध पक्ष(पितृ पक्ष)

पूर्णिमा श्राद्ध – 1 सितंबर 2020

सर्वपितृ अमावस्या – 17 सितंबर 2020

अष्टमी— 10 सितंबर 2020
नवमी — 11 सितंबर 2020

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