श्राद्ध श्रद्धा और कलयुग

Newsdesk Uttranews
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नकुल पन्त की कलम से

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 वैसे सुना तो था राजा भगीरथ अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे । उन्होंने अपने पूर्वजों का उद्धार तो कर लिया लेकिन ! इस कलयुग में गंगा की गंदगी खुद कहने लगी है कोई मेरा उद्धार करे।

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खैर छोड़ो। अपने पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म श्राद्ध है ।श्राद्ध शब्द जैसा कि श्रद्धा से बना हुआ है “श्रद्धया इदं श्राद्धम” जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है। हिंदू धर्म अनुसार वैदिक शास्त्रों में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृ पक्ष कहलाता है। जिसमें लोगों द्वारा अपने माता पिता की मृत्यु पश्चात मृत्यु तिथि में श्रद्धा पूर्वक पके हुए चावल, दूध द्वारा मिश्रित पिंड बनाया जाता है जो शरीर रूपी माना जाता है ।

हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार केवल पुत्र कर सकता है। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा बताई गई है। श्राद्ध माता-पिता एवं पूर्वजों को याद करने का माध्यम है, लोग अपने माता पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें भूल न जाए इसीलिए हिंदू धर्म में इसका बहुत बड़ा विधान बताया गया है और इसी पितृ पक्ष में हम अपने पूर्वजों को श्रद्धा अर्पण करते हैं। लेकिन इस देश के वृद्ध आश्रमों की संख्या बताती है कि हम अपने माता पिता के प्रति कितने मातृ -पितृ भक्त एवम कर्तव्य निष्ठ हैं।

पुराणों की मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध में कौवों, गाय व कुत्तों को भोजन दिया जाता है क्योंकि कौवा यम का प्रतीक  माना जाता है जिसे भोजन कराने से देवता तथा पितृ तृप्त होते हैं।गाय को वैतरणी पार कराने तथा स्वर्ग प्राप्त करने वाली बताया गया है । तथा कुत्ता यमराज का पशु है।  कहा जाता है कि कुत्ते को भोजन कराने से यमलोक के श्याम और शबल नाम के कुत्ते प्रसन्न होते हैं । लेकिन इस कलयुग में आपकी पितृ श्राद्ध करने की कितनी श्रद्धा है यह आपको अपने अंतर्मन से सोचनी होगी। क्योंकि न तो भोजन खिलाने के लिए आपके आसपास कौवे हैं  ना कुत्ता है ना ही गाय है केवल श्रद्धा है और उसी से श्राद्ध है।

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