पिथौरागढ़ उपचुनाव : मुद्दे रहे गायब

Newsdesk Uttranews
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कुन्डल सिंह

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पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर सोमवार को होने जा रहे उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों की अपनी-अपनी रणनीतिक बिसात बिछ चुकी है। इस रणनीति में कुछ अंतिम और निर्णायक चालें रविवार देर रात तक चलीं। इस सबके बावजूद देखना यह है कि सोमवार को आम मतदाता किन मुद्दों और मसलों को ध्यान में रख ईवीएम में कौन सा बटन दबाता है। इस उप चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और सपा प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन नामांकन से लेकर मतदान की पूर्व संध्या तक तीनों प्रत्याशी अपने बलबूते ऐसे कोई मुद्दे नहीं उछाल पाए, जिन्हें मतदाता लपक लें और उन्हें अपना बना लें। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह उपचुनाव अब तक मुद्दाविहीन ही नजर आ रहा है। कांग्रेस अपने पिछले कार्यकाल में हुए विकास कार्यों और बाद में उनके ठप पड़ जाने के सवाल उठा रही है तो बीजेपी भी अपनी उपलब्धियां गिना रही है और अधूरे कार्य-सपनों को पूरा करने के लिए साथ देने की बात कह रही है। वहीं समाजवादी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस में बंटी चुनावी हवा को अपने प्रत्याशी की तरफ मोड़ने की जुगत में लगी है।

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पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. प्रकाश पंत के निधन से रिक्त हुई पिथौरागढ़ सीट पर सोमवार 25 नवंबर को मतदान होगा। बीजेपी ने स्व. प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को उम्मीदवार बनाया है। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का मुख्य फोकस इस विधानसभा क्षेत्र में प्रकाश पंत की उपलब्धियों-प्रयासों और कैबिनेट मंत्री के नाते प्रदेश में उनके योगदान को याद करने में रहा। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा मतदाताओं से प्राय: यही अपील करती नजर आई कि स्व. प्रकाश पंत को ध्यान में रखकर मतदान करना। प्रत्याशी चंद्रा पंत भी प्रकाश पंत के अधूरे सपनों को पूरा करने और विस क्षेत्र में अन्य विकास कार्यों के लिए प्रयासरत रहने की बात करतीं रहीं। उनके पर्चे पोस्टरों में उनके पति स्व. प्रकाश पंत हर जगह प्रमुखता से दिखाई दिये।

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वहीं पूर्व विधायक मयूख महर के चुनाव लड़ने से इन्कार के बाद कांग्रेस ने बीजेपी की काट ढूंढने के लिए विण ब्लाॅक की पूर्व प्रमुख और हाल में निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतीं अंजू लुंठी को उम्मीदवार बनाया। प्रचार में कांग्रेस का पूरा जोर पूर्व विधायक महर के कार्यकाल में विधानसभा क्षेत्र में हुए कामों पर रहा। कांग्रेस प्रत्याशी के पर्चे-पोस्टरों में भी पूर्व विधायक महर की तस्वीर प्रमुखता से नजर आई। कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता और प्रत्याशी अंजू भी चुनावी सभाओं व प्रेस वार्ताओं में यही बात कहतीं रहीं कि क्षेत्र के विकास के लिए किसने काम किया, और बाद में विकास के कार्य क्यों रूक गए। अंजू ने कहा कि वह ठप पड़ गए विकास कार्यों को आगे बढ़ाएंगी और जनता की ज्वलंत समस्याओं के लिए संघर्ष करेंगी। सपा उम्मीदवार मनोज कुमार भट्ट की ओर से प्रचार का ऐसा शोर दिखाई नहीं दिया जैसा कि बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से दिखा। उनकी जनसभाएं भी नहीं नजर आई। डोर-टू-डोर प्रचार नुक्कड़ मीटिंग में वह अपनी बात ज्यादा कहते रहे और उप्र में अखिलेश यादव के समय हुए विकास कार्यों को भी दोहराते रहे।

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बहरहाल यदि हम भाजपा और कांग्रेस की बात करें तो प्रचार के दौरान कुल मिलाकर दोनों पार्टी की प्रत्याशी अपने-अपने पूर्ववर्ती नेताओं की उपलब्धियों व खासियतों को जनता के बीच रख वोट की अपील करतीं नजर आईं। मगर दोनों उम्मीदवार अपने बलबूते जनता व क्षेत्र से जुड़े मुद्दों की गहराई से लोगों के बीच पैठ बना पायी हों, ऐसा नजर नजर नहीं आया। आम मतदाता व्यापक पैमाने पर मुद्दों पर चर्चा कर अपनी राय बना रहा हो ऐसा मुश्किल ही देखने को मिला। विधानसभा क्षेत्र के 1 लाख 5 हजार से अधिक मतदाताओं में अधिकांश खामोश है और इसके एक बड़े हिस्से को अपनी ओर खींचने के लिए पार्टियां व प्रत्याशी रविवार देर रात तक साम-दाम-दंड भेद अपनाते रहे। अब यह 28 नवंबर की शाम ही कुछ स्पष्ट हो पाएगा कि मतदाता किस बात के लिए किसके पक्ष में रहे और उन पर किस तरह की नीति और मुद्दों का कितना असर रहा।

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