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जैव संशाधन संरक्षण से ही कम हो सकता है मानव वन्यजीव संघर्ष,राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान में वैज्ञानिको ने इस मुद्दे पर रखी बात

उत्तरा न्यूज डेस्क
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अल्मोड़ा:- भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पन्त के 132 वें जन्म दिवस एवं गो.ब.प. राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के स्थापना दिवस समारोह का शुभारम्भ द्वीप प्रज्ज्वलन एवं पं. पन्त जी की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ समारोह के अध्यक्ष माननीय सांसद अजय टम्टा जी एवं मुख्य अतिथि प्रो. रमन सुकुमार भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू एवं विशिष्ट अतिथि डा. एम.पी.एस. बिष्ट निदेशक, उत्तराखण्ड स्पेस एप्लीकेशन सेन्टर, देहरादून, प्रो. एस.पी. सिंह, भूतपूर्व कुलपति, हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विष्वविद्यालय, श्रीनगर, गढ़वाल, डा. राजेन्द्र डोभाल, महा निदेशक, उत्तराखण्ड स्टेट काउंसिल फाॅर साइंस एण्ड टैक्नाॅलोजी, देहरादून, डा. गोपाल सिंह रावत, निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून एवं संस्थान के निदेशक डा. आरएस रावल द्वारा किया गया।
सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक डा. आर.एस. रावल ने स्वागत सम्बोधन के साथ संस्थान की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। डा. रावल ने कहा कि विगत 30 वर्षों में संस्थान ने शोध कार्यों की बदौलत राश्ट्रीय तथा अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर अपनी विषेश पहचान बनायी है। संस्थान द्वारा समय पर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को पर्यावरण संरक्षण एवं जीविकापार्जन से जोड़ने का सफल प्रयास किया है, तथा चीड़ के पिरूल इत्यादि से विभिन्न उत्पादों का निर्माण करने का प्रशिक्षण देकर लोगों को स्वावलम्बी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डा. रावल ने जानकारी दी की इस अवसर पर संस्थान के सभी चारों क्षेत्रीय केन्द्रों में भी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा लोकप्रिय व्याख्यान माला का आयोजन किया जा रहा है।
इसके पश्चात प्रो. रमन सुकुमार, भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू द्वारा संस्थान का 25वाँ गोविन्द बल्लभ पन्त स्मारक व्याख्यान दिया गया। उन्होंने ‘‘मानव वन्यजीव संघर्शों के बीच दोराहे पर संरक्षण’’ विषय पर उनके द्वारा दिए गए व्याख्यान में उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए जिम्मेदार कारक, वन-विखंडन की भूमिका को हाथी-मानव संघर्ष के उदाहरण के साथ रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि विकास से जुड़ी गतिविधियों के कारण प्राकृतिक वनोें में हो रहे लगातार विखंडन से वन्यजीवों के लिए प्राकृतिक खाद्य संसाधनों की कमी हो रही है। कई राज्यों में वन भूमि, खनिजों के लिए खनन या ईंधन, चारा और खपत के लिए बायोमास के संग्रह की वजह से जानवरों के लिए चारा एवं उनके विचरण स्थल पर गहरा संकट गहराता जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह वन्यजीव-मानव संघर्शों के प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीतिगत ढांचा तैयार करने का समय है। लेकिन इसके लिए वित्तीय प्रोत्साहन की आवश्यकता है जो अब कैम्पा (क्षतिपूरक वनीकरण और प्रबंधन योजना प्राधिकरण) के माध्यम से संभव है। हमारी बड़ी आबादी को देखते हुए हमें जैव विविधता संरक्षण और वन्यजीव संघर्ष को कम करने के व्यापक लक्ष्यों में, विशेष रूप से, जलवायु परिवर्तन की चल रही व्यवस्था के तहत लोगों को विषेश रूप से जमीनी स्तर पर सक्रिय रूप से संलग्न करने की आवश्कता है। राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना 2017-32 में इनमें से कईयों को षामिल कर लिया गया है, लेकिन क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर स्तर पर संरक्षण योजना और कार्यान्वयन को सक्रिय रूप से अपनाने की आवष्यकता है।
विशिष्ट अतिथियों ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में संस्थान को उत्कृष्ट शोधकार्य हेतु बधाई दी। उन्होंने कहा कि प्रकृति के संरक्षण एवं उपयोग करने पर हमें अधिक से अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि विकास हेतु शोध एवं आंकड़़ों का उपयोग समाज व अन्य संस्थान के साथ मिलकर लोगों के हित के लिए करना चाहिए जिससे विकास एवं पर्यावरण का संतुलन बना रहता है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में सांसद अजय टम्टा ने भारत रत्न पं. पन्त को नमन करते हुए कहा कि उनके जन्म स्थान खूंट के पास श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए अपार हर्श हो रहा है। उन्होंने हिमालय क्षेत्र के प्रमुख कठिनाइयों की ओर इंगित किया। जिनमें प्राकृतिक आपदा प्रमुख है उन्होंने कहा कि पं. पंत द्वारा देष, समाज, मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों को हमें आत्मसात करने की आवष्यकता है। उन्होंने संस्थान द्वारा प्लास्टिक के इस्तेमाल नहीं करने पर खुशी जताई तथा सबसे सामाजिक, वैज्ञानिक जिम्मेदारी समझकर कार्य करने की अपील की।
इस समारोह में पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के हिमालयी राष्ट्रीय अध्ययन मिषन के अन्तर्गत वित्तपोशित परियोजनाओं के प्रतिनिधियों में इनहेयर, मासी, चिया, नैनीताल, चिराग, मुक्तेश्वर इत्यादि संस्थाओं ने अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई थी|
इस समारोह में शिरकत कर रहे व्यक्तियों में वीपीकेएएस के निदेशक डा. ए. पटनायक, भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डा. बीएस अधिकारी, डा. केएस खण्डूरी, भारतीय वन सेवा, डा. नौटियाल, एच.ए.पी.पी.आर.सी., श्रीनगर, श्री बोनाल, भारतीय वन सेवा, यू.एन.डी.पी. के डा. खंडूरी, संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डा. हेमन्त बडोला, कुमाऊँ विष्वविद्यालय के प्रोफेसर जीत राम, डा. शिवदत्त तिवारी, यूसैक देहरादून के डा. गजेन्द्र रावत, जड़ी-बूटी शोध संस्थान के निदेशक डा. सनवाल, हाई-मैक्स हल्द्वानी के डा. कालाकोटी, ताड़ीखेत जड़ी-बूटी षोध केन्द्र के पूर्व वैज्ञानिक डा. जोशी, वन निगम के डा. गिरीश पन्त, ह्यूमन इंडिया के डा. बुटोला, डा. जे.सी. भट्ट, पूर्व निदेशक, वीपीकेएएस, डा. बिष्ट, डा. लक्ष्मी कान्त, नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश जोशी सहित कई स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा गणमान्य व्यक्ति, विभिन्न विद्यालयों के प्रकृति शिविर में आये प्रशिक्षणार्थी तथा संस्थान के सभी वैज्ञानिक, कर्मचारीगण एवं शोधार्थियों सहित लगभग 350 लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का समापन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. किरीट कुमार के धन्यवाद ज्ञापन द्वारा हुआ। कार्यक्रम का संचालन डा. दीपा बिष्ट द्वारा किया गया।

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