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बचाने होंगे पारम्परिक हिमालयी जल स्रोत नौले-धारे : नौला मित्र गणेश कठायत

उत्तरा न्यूज डेस्क
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द्वाराहाट : जल शक्ति अभियान, भारत सरकार को समर्थित जल जीवन मिशन पर आधारित  पारम्परिक हिमालयन जल स्रोत पद्धति नौले धारे के सरंक्षण व संवर्धन पर केंद्रित पहाड़ पानी परम्परा प्रोजेक्ट के तहत नौला फाउंडेशन द्वारा अल्मोड़ा के विकास खंड द्वाराहाट के बग्वालीपोखर थामण ईडा सेरा में पारम्परिक नौले धारे ,जल जंगल जमीन को बचाने की मुहीम के सफल परिणाम आने शुरू हो गए हैं | गगास घाटी में इस मुहिम को अब सराहना भी मिल रही है|
युवा पर्यावरण प्रेमी गनेश कठायत ने बताया समस्त गांव वासियो द्वारा निःशुल्क श्रम दान करके गांव में नौले धारे के विशेष रिचार्ज जोन ( स्प्रिंगशेड ) में वर्षा जल संग्रहण पद्धति के तहत विशेष प्रकार के चाल खाल व मिक्स्ड वन क्षेत्र को विकसित करने के लिए किया गया पौधरोपण से अब तक हुई बारिश से काफी हद तक पानी रोकने में कामयाब भी हुए हैं | नौला संरक्षक किशन सिंह कठायत ने बताया फाउन्डेशन का पहली प्रयोगशाला भटकोट पहाडी से निकलने वाली सदानीरा गगास नदी के आसपास पास का ही क्षेत्र है।नौला फाउन्डेशन यहा के  नौलो,धारो,गधेरो को संरक्षित करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।फाउन्डेशन द्वारा प्रकृति की गोद मे बसा थामण गांव मे नौलो धारों के संरक्षण पर कार्य किया जा रहा है।गगास घाटी के इस सुरम्य वादियों में फाउन्डेशन द्वारा चाल खाल खंतियो आदि खुदाकर विभिन्न प्रकार के पौधो को भी रोपने का कार्य किया जा रहा है।महिलाओ के सिर बोझ को कम करने हेतु एंव पशुओ के पर्याप्त चारे हेतु चारा प्रजाति के पौधे भी लगाये जा रहे है। थामण निवासी वरिष्ठ ग्रामीण60 वर्षीय जैत सिंह बिष्ट के आह्वान पर समस्त ग्रामीण, पंचायत सदस्य, महिला मंगल सदस्य व् प्रवासी ग्रामीण भी एकजुट होकर जल शक्ति अभियान, भारत सरकार को समर्थित मन की बात जल की बात कार्यक्रम नौला फाउंडेशन के तत्वाधान में एकजुटता के साथ श्रम दान करके वर्षा जल को संग्रहण करके पारम्परिक नौले धारे को बचाने के साथ जैव विविधता को बचाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं I  इस जल सरंक्षण व विशेष प्रकार के वृक्षारोपण कार्यक्रम पहाड़, पानी, परम्परा की अगुवाई क्षेत्र नौला संरक्षक खीम सिह कठायत कर रहे हैं जो पलायन वापसी के साथ जल सरंक्षण पर गंभीर हैं |जैत सिंह कठायत के अनुसार नौला मध्य पहाड़ी भाषा का शब्द है, जिसका सीधा सम्बन्ध नाभि से हैं अथार्त जैसे नाभि नल से नवजात बच्चे को गर्भाशय में पोषण मिलता हैं उसी तरह से नौला के पानी के जरिये माँ धरती हमको पोषित करती हैं  । नौला उत्तराखंड में भूमिगत जलस्त्रोत के लिए सीढ़ीदार जल मंदिर प्रकोष्ठ के किया जाता था जिसका निर्माण एक विशिष्ट वास्तु-विधान के अन्तर्गत किया गया होता है। प्राचीन काल में मानव अपनी जल की आवश्यकता को या तो नदियों से पूरा किया करते थे या फिर किसी स्त्रोत वाले धारा के रूप में बहने वाला जल अपने उपयोग में लाया करते थे। इसके अतिरिक्त वर्षा का जल भी कहीं एकत्र करके उपयोग में लाया जाता था। प्राचीन मध्य काल कत्यूरी राजाओं के शासनकाल में पेयजल की सुविधा के लिए नौले का निर्माण कराया। नौलों की आवश्यकता मनुष्य को तब महसूस हुई जब पहाड़ी और उचाई वाले क्षेत्रों में नदियां तो निचली धारा में बहती है और धारा रूप प्रवाह भी हर जगह मिलना मुश्किल होता है। किसी-किसी स्थान पर पानी बहुत कम मात्रा में निकलता है। ऐसे में उस पानी को नौले के रूप में को इकट्ठा करने की आवश्यकता हुई। गनेश कठायत ने बताया, शहर की नौकरी छोड़कर पलायन वापसी करके यह चिंता है कि गांव के बुजुर्गों,दादा परदादाओं ने जिन पुश्तैनी नौलों और प्राकृतिक जलस्रोतों की देखभाल करके उनकी रक्षा की थी वे नौले और जलस्रोत अब सूख चुके हैं। जब गांव के आसपास के वन, मिश्रित जंगल ही नहीं बचेंगे, वहां के जलस्रोत ही नष्ट हो जाएंगे, तो उस सड़क, उस कंकरीट विकास का क्या करेंगे जो जलस्रोतों को नष्ट करने की कीमत पर मिलेगा|

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