लोहाघाट। काली कुमाऊं के लोहाघाट स्टेशन बाजार में सड़क के ऊपरी हिस्से में लगभग छोटी-छोटी एक दर्जन फड़नुमा दुकानें पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से चलाई जा रही हैं। इस बाजार में रेडीमेड के अलावा महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन के सामान की दुकानें सजी रहती हैं। कम कीमत पर किफायती सामान के मिलने के चलते यह दुकानें स्थानीय ग्रामीणों की पसंदीदा बाजार रही है।
चम्पावत जिले के लोहाघाट मेन बाजार का स्वरूप वक्त के साथ बदलता गया। कभी सड़क के दोनों तरफ इक्का दुक्का पक्के मकानों को छोड़कर लकड़ी और तख्तों से बनी झौपड़ी ही मौजूद थीं। जिनमें दुकानें सजी रहती थी। चाय नाश्ता, परचून, पान आदि इन खोखे फड़ों में मिलता था। आज दोनों तरफ ऊंची अट्टालिकाओं के खड़े हो जाने से स्टेशन का स्वरूप ही बदल कर रह गया है। यहां पर यदि कुछ नहीं बदला है तो यह छोटी सी रेडीमेड और कास्मेटिक बाजार है, जो लंबे समयांतराल से जुकरिया भवन और करायत काम्प्लेक्स से लगी सरकारी भूमि पर बने सार्वजनिक शौचालय से लगी हुई है। बताते चलें इनमें से दो दुकानों में स्वयं व्यापारी पिछले तीन साल से रात में पहरा देने के लिए मजबूर हैं।
यहां कच्ची पक्की झोपड़ी नुमा दुकानों के अर्जन से यह लोग अपना परिवार पाल रहे हैं। इन फड़ व्यवसायियों का कहना है कि वह पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से तहबाजारी के रूप में अब तक लाखों रुपए नगर पालिका में जमा करा चुके हैं लेकिन उनके हालातों पर पालिका को अभी तक तरस नहीं आया। जबकि इन दुकानों के काफी बाद बसे बाहरी लोगों की कोठियां तक लोहाघाट नगर की शान बनी हुई हैं।
रोजाना १० की रसीद कटने के अलावा ६० रुपए का अतिरिक्त बोझ
लोहाघाट। पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से यहां दुकान लगा रहे उमेश जजरिया का कहना है कि इन दुकानों में से किसी में तो तीसरी पुश्त के लोग भी दुकानों में बैठने लगे हैं। लेकिन दुकानों की स्थिति अभी तक नहीं बदल पाई है। कहना है इन फड़ों को टिन शैड बनाने के लिए नगर पंचायत में धनराशि जमा की है। दुकानों के कच्चा झोपड़ी नुमा रहने से इन व्यापारियों को ६० रुपए रोज अतिरिक्त लेबर खर्च अदा कर अपनी दुकान का सामान अन्यत्र रखना पड़ रहा है। इसके अलावा स्टोर का किराया अलग वहन करना पड़ रहा है। बावजूद इसके सस्ती चीजों के लिए मशहूर यह बाजार रोजाना उसी तरह सजा रहता है जैसा वह तीन चार दशक पहले से सजा रहता था।